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सुप्रीम कोर्ट अस्पतालों को मरीजों के इलाज संबंधी आदेश के खिलाफ नोटिफिकेशन जारी करने पर हुए सख्त, गुजरात सरकार से मांगा जवाब
Deepa Sahu
19 July 2021 10:14 AM GMT
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कोरोना से संक्रमित मरीजों के उचित इलाज और सम्मानजनक तरीके से शवों को परिजनों को देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से लिए गए
कोरोना से संक्रमित मरीजों के उचित इलाज और सम्मानजनक तरीके से शवों को परिजनों को देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से लिए गए स्वतः संज्ञान मामले में कोर्ट ने सोमवार को अस्पतालों में आग से सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ नोटिफिकेशन जाने करने के मामले में जवाब मांगा है
गुजरात सरकार की तरफ से नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें कहा गया था अस्पताल में आग से सुरक्षा के प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने वाले अस्पतालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. जस्टिस शाह ने कहा कि गुजरात में 40 अस्पताल ऐसे थे, जहां अग्नि सुरक्षा का इंतजाम नहीं था और वो हाई कोर्ट पहुंच गए. बाद में अग्नि सुरक्षा का उल्लंघन करने के लिए अस्पतालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए, ऐसा आदेश सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है.
ऐसे कैसे कोई सरकार इस तरह का आदेश दे सकती है- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से मामले में संज्ञान लेने को कहा और कहा कि ऐसे कैसे कोई सरकार इस तरह का आदेश दे सकती है कि अस्पतालों के खिलाफ एक्शन ना लिया जाए. वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि गुजरात में हमारे परिवार के सदस्य अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में मौत हुई. गुजरात का ये अस्पताल आवासीय भवनों में शुरू किया गया था. आईसीयू ऐसी जगह था, जहां फायर टेंडर तक पहुंचना असंभव था और आग से सुरक्षा के लिए कोई तंत्र नहीं था.
जस्टिस शाह ने कहा कि हमने आदेश दिया था सभी कोविड अस्पताल में नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाए और महीने में आग से सुरक्षा को लेकर निरीक्षण किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि दिसंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी अस्पतालों में नोडल अधिकारी की नियुक्ति का आदेश दिया था और आग से सुरक्षा की प्रोटोकॉल का पालन करने को कहा था. साथ ही ऐसे कोविड अस्पताल जिनके पास फायर डिपार्टमेंट का एनओसी नहीं है, उसके खिलाफ एक्शन लेने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अस्पताल मरीजों के इलाज पर बहुत कम ध्यान देने वाला रियल एस्टेट उद्योग बन गया है. अस्पताल संकट में मरीजों को सहायता प्रदान करने के लिए होते हैं, लेकिन ये व्यापक रूप से महसूस किया जाता है कि वो पैसे कमाने की मशीन बन गए हैं, जो मरीजों को परेशानी को बढ़ाते हैं.
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