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सुप्रीम कोर्ट ने जीएन साईबाबा को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त किया

jantaserishta.com
19 April 2023 8:10 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने जीएन साईबाबा को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त किया
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नई दिल्ली (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें माओवादियों से कथित संबंध के मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी.एन. साईंबाबा को बरी कर दिया गया था। न्यायमूर्ति एम.आर. शाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को फिर से विचार करने के लिए उच्च न्यायालय को वापस भेज दिया और क्वे श्चन ऑफ लॉ (सैंक्शन सहित) को भी ओपन रखा है।
शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि मामले की सुनवाई एक अलग पीठ द्वारा की जानी चाहिए, न कि उसी के द्वारा जिसने आदेश पारित किया था, क्योंकि पिछली पीठ ने सैंक्शन के मुद्दे पर पहले ही एक राय बना ली थी।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय से अपीलों का शीघ्रता से निपटान करने को कहा, संभव हो तो चार महीने के भीतर।
शीर्ष अदालत का आदेश अक्टूबर 2022 में पारित उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर आया है, जिसने साईंबाबा द्वारा 2017 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने और उसे उम्रकैद की सजा सुनाने को चुनौती देने वाली अपील की अनुमति दी थी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अधिवक्ता सिद्धार्थ धर्माधिकारी, आदित्य पांडे और अभिकल्प प्रताप सिंह के साथ महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व किया।
सुप्रीम कोर्ट ने 15 अक्टूबर 2022 को माओवादियों के साथ संबंध मामले में साईंबाबा और पांच अन्य को आरोप मुक्त करने वाले बॉम्बे हाई कोर्ट के 14 अक्टूबर 2022 के आदेश को निलंबित कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने तब कहा था कि उच्च न्यायालय ने गुण-दोष के आधार पर मामले पर विचार नहीं किया बल्कि मामले को तय करने के लिए शॉर्टकट लिया था।
इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने अभियुक्तों को केवल इस आधार पर आरोप मुक्त कर दिया कि सैंक्शन अवैध था और यह बताया गया कि संबंधित प्राधिकारी द्वारा सैंक्शन देने में अनियमितता की गई थी।
महाराष्ट्र सरकार ने सैंक्शन के अभाव में प्रतिबंधित माओवादी संगठनों से संबंध रखने के मामले में साईंबाबा और पांच अन्य को बरी करने के बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता पर सवाल उठाते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
राज्य सरकार ने अपनी अपील में कहा, हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर विचार नहीं कर गलती की है कि सैंक्शन के बिंदु को न तो उठाया गया था और न ही ट्रायल कोर्ट के सामने तर्क दिया गया था और फिर भी ट्रायल कोर्ट ने सही निष्कर्ष निकला था कि न्याय की कोई बड़ी विफलता नहीं थी।
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