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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कोरोना महामारी की वजह से अनाथ हो चुके बच्चों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करें सरकारें
Deepa Sahu
28 May 2021 10:33 AM GMT
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सुप्रीम कोर्ट
बाल संरक्षण गृहों और बाल केयर संस्थाओं में बच्चों के बीच कोरोना के फैलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए शुक्रवार को सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोरोना महामारी ने एक अभूतपूर्व स्थिति पैदा कर दी है और संवेदनशील बच्चों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. साथ ही कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं, जो माता-पिता की मौत से अनाथ हो गए हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों को ऐसे बच्चों की जानकारी पोर्टल पर अपलोड करने का आदेश दिया, जो मार्च 2020 के बाद से अनाथ हुए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने जिलाधिकारियों को ऐसे सभी बच्चों की जानकारी शनिवाार शाम तक अपलोड करने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र और और राज्य के वकील को इस मामले में नवीनतम जानकारी मिलनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे बच्चों के अधिकारों की रक्षा और बिना सरकारी आदेश के भी उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का आदेश दिया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से कहा कि ऐसे आप बच्चों की पीड़ा को समझेंगे और तुरंत स्थिति का समाधान करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से मामले में रविवार तक जवाब दाखिल करने को कहा है. सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया बालस्वराज नाम का पोर्टल सभी संबंधित जिलाधिकारियों की तरफ से संचालित किया जा रहा है और उन्हें ऐसे बच्चों की पहचान के लिए पासवर्ड दिया गया है जो अनाथ हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र ने संबंधित अधिकरियों को ऐसे बच्चों की रक्षा के लिए किए जाने वाले कदमों के बारे में पहले ही निर्देश जारी किए हैं, जिन्होंने अपने माता-पिता को कोरोना में खो दिया है.
एमिकस क्यूरी ने गौरव अग्रवाल ने कहा कि एनसीपीसीआर ने अप्रैल में अवैध रूप से बाल अनाथों को गोद लेने का संज्ञान लिया है, जिनके माता-पिता की कोविड की वजह से मौत हो चुकी हैं. साथ ही कहा कि उन बच्चों के लिए नियम बनाया गया है, वेब पोर्टल पर बच्चों के पुनर्वास के तरीके के बारे में आंकड़ें तैयार करना चहिए और दूसरा बाल न्याय अधिनियम की धारा 14 के तहत ध्यान रखा जाए.
एमिकस क्यूरी ने गौरव अग्रवाल ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस समिति के पास एक बच्चे को पालक देखभाल देने का अधिकार है, इसके बारे में केंद्र की तरफ से 2016 में नियम पारित किया गया था. अगर 60 दिनों तक परित्याग के बाद कोई देखभाल करने वाला नहीं है तो सीएआरए (CARA) अधिग्रहण कर लेगा. वहीं उत्तर प्रदेश सरकार और महाराष्ट्र सरकार ने बताया कि ऐसे बच्चों की पहचान के लिए डिस्ट्रिक टास्क फोर्स बनाई गई है.
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