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राजद्रोह की धारा के खिलाफ डाली गई याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कही ये बात

Admin2
9 Feb 2021 10:58 AM GMT
राजद्रोह की धारा के खिलाफ डाली गई याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कही ये बात
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नई दिल्ली। राजद्रोह की धारा IPC 124A (भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए) के खिलाफ याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश (CJI) एस. ए. बोबडे ने कहा कि याचिकाकर्ता इससे कैसे प्रभावित है? आप पर क्या कॉज ऑफ एक्शन है. आपके खिलाफ कोई केस नहीं है. हमने पहले ही तय कर रखा है कि जब तक कोई कॉज ऑफ एक्शन नहीं होगा तो आप इसी तरह कानून को चुनौती नहीं दे सकते हैं. हमारे पास ऐसा कोई केस नहीं है जो जेल में सड़ रहा हो. आप अगर ठोस केस के साथ आते हैं तो देखेंगे.

याचिकाकर्ता ने कहा कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है. ये जनहित का मुद्दा है. इस मामले में संवैधानिक पीठ के फैसले का उल्लंघन हो रहा है. दरअसल, राजद्रोह से संबंधित कानून को गैर-संवैधानिक घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि औपनिवेशिक काल का यह कानून लोकतांत्रिक देश में जारी रखने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है और नागरिकों के मौलिक अधिकार का गला घोंटा जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट आदित्य रंजन, वरुण कुमार और अन्य की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि आईपीसी की धारा-124 ए के दुरुपयोग के मामले बढ़े हैं. संवैधानिक लोकतंत्र और लोगों को मिले मौलिक अधिकार पर उसका डरावना प्रभाव पड़ रहा है. कानून का गलत तरीके से दुरुपयोग किया जा रहा है. पत्रकारों, महिलाओं, बच्चों और स्टूडेंट्स के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल हो रहा है और इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या की ये अवहेलना है. देश में लोकतांत्रिक सिद्धांत का विकास हो रहा है और धारा-124 ए औपनिवेशिक काल की निशानी के तौर पर अभी भी बरकरार है.

याचिका में कहा गया है कि आईपीसी की धारा-124 ए (राजद्रोह) ब्रिटिश काल का औपनिवेशिक कानून है. ये कानून ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज को कुचलने के लिए था जिसे लोकतंत्र में जारी रखने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. यह कानून अब अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट रहा है. जो सरकार में है अगर कोई उसकी नीति के विपरीत अभिव्यक्ति करता है तो 124 ए का प्रावधान उसकी अभिव्यक्ति का गला घोंट रहा है और इस तरह से जीवन और लिबर्टी के अधिकार को खतरा है.

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