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अनुसूचित जाति छात्रों में 864 वां स्थान
तकनीकी खामियों की वजह से शुल्क का ऑनलाइन भुगतान न कर पाने के कारण आईआईटी बॉम्बे में दाखिले से वंचित एक दलित छात्र को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आईआईटी से इस छात्र को एक सीट देने के लिए कहा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह न्याय का एक बड़ा उपहास होगा यदि एक युवा दलित छात्र को ऐसी स्थिति में राहत नहीं दी जाए।
अनुसूचित जाति छात्रों में 864 वां स्थान
सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए यह आदेश पारित किया कि दलित छात्र तकनीकी गड़बड़ियों के कारण प्रवेश प्रक्रिया को पूरा नहीं कर सका। कोर्ट ने कहा है कि यदि लड़के को वर्तमान शैक्षणिक वर्ष में समायोजित नहीं किया गया तो वह अगली बार प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिए पात्र नहीं होगा क्योंकि वह लगातार दो प्रयासों को पूरा कर चुका है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अपीलकर्ता छात्र मई 2021 में जेईई मुख्य परीक्षा में शामिल हुआ था और इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद वह तीन अक्टूबर को आयोजित हुई आईआईटी - जेईई एडवांस 2021 प्रवेश परीक्षा में शामिल हुआ। अपीलकर्ता ने अखिल भारतीय रैंक 2525894 स्थान हासिल किया की। अनुसूचित जाति छात्रों में उसका स्थान 864 था। 27 अक्टूबर को अपीलकर्ता को आएआईटी, बॉम्बे में बीटेक(सिविल इंजीनियरिंग) डिग्री कोर्स में एक सीट आवंटित की गई थी।
ज्वाइंट सीट एलोकेशन अथॉरिटी(जोसा) पोर्टल 31 अक्टूबर तक पहले दौर के लिए ऑनलाइन रिपोर्टिंग के लिए खुला था। ऑनलाइन रिपोर्टिंग पोर्टल दस्तावेज़ अपलोड, उम्मीदवारों द्वारा प्रश्नों के उत्तर और अन्य सुविधाओं के लिए प्रदान किया गया था। 29 अक्टूबर को अपीलकर्ता ने जोसा पोर्टल तक पहुंचने के लिए लॉग इन किया और आवश्यक दस्तावेज अपलोड किए। दुर्भाग्य से 29 अक्टूबर को वह शुल्क का भुगतान नहीं कर सका क्योंकि उसके पास धन की कमी थी और उसे 30 अक्टूबर 2021 को अपनी बहन से पैसे उधार लेने पड़े। धन की व्यवस्था करने के बाद उसने फीस का भुगतान करने के लिए 10-12 प्रयास किए लेकिन पोर्टल और सर्वर पर तकनीकी त्रुटि के कारण उसका प्रयास सफल नहीं हुआ।
31 अक्टूबर 2021 को अपीलकर्ता ने साइबर कैफे से भुगतान की प्रक्रिया पूरी करने का प्रयास किया, लेकिन तकनीकी त्रुटियों के कारण उसका प्रयास सफल नहीं हुआ। इसके बाद उसने फोन और ईमेल के जरिए अथॉरिटी से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उसे कोई सहायता नहीं मिली। उसके बाद वह पैसे उधार लेकर आएआईटी खड़गपुर गया लेकिन वहां अधिकारियों ने अपनी असमर्थता जताई। जिसके बाद छात्र ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वहां से राहत नहीं मिलने पर उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अनुछेद-142 का इस्तेमाल किया
सुनवाई के शुरुआत में अथॉरिटी का कहना था कि सभी सीटें भर चुकी है। अपीलकर्ता को दाखिला किसी अन्य छात्र के एवज में देना होगा। इस पर जस्टिस चंद्रचूड ने अथॉरिटी से कहा, 'आप कुछ करने के लिए बाध्य हैं। विकल्प तलाशने का कोई सवाल ही नहीं है। अभी हम आपको यह मौका दे रहे हैं नहीं तो हम अनुच्छेद-142 के तहत एक आदेश पारित करेंगे। बेहतर होगा कि आप इस युवक के लिए कुछ करें। उसकी पृष्ठभूमि देखें। यह एक अलग मामला है। उसने पिछले साल परीक्षा पास की, उसने इस साल उसे पास किया। उसके साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। आप सब कुछ कर सकते हैं। यह केवल नौकरशाही है। अपने अध्यक्ष से बात करें और कोई रास्ता निकालें। आप उसे अधर में नहीं छोड़ सकते।'
पीठ ने कहा, 'यह कॉमन सेंस की बात है। कौन सा छात्र आईआईटी, बॉम्बे में प्रवेश पाएगा और 50 हजार रुपए का भुगतान नहीं करेगा? यह स्पष्ट है कि उसे कुछ वित्तीय समस्याएं थीं। आपको यह देखना होगा कि जमीन पर वास्तविकता क्या है। सामाजिक जीवन की वास्तविकता क्या है?' यह कोई ऐसा मामला नहीं है जहां छात्र ने लापरवाही की है या गलती की है। यह एक वास्तविक मामला है।'
लंच के बाद अथॉरिटी से निर्देश लाने के बाद वकील ने पीठ को बताया कि किसी भी आईआईटी में सीट खाली नहीं है, सभी सीटें भर चुकी हैं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अनुछेद-142 का इस्तेमाल करते हुए इस छात्र को दाखिला देने के लिए कहा है।
पिछले हफ्ते इस मुद्दे पर हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अदालत को कभी-कभी कानून से ऊपर उठकर भी देखना चाहिए। क्या पता अगले 10 साल में ये लड़का हमारे देश का नेता बन जाए।
क्या है अनुच्छेद 142
भारत के संविधान द्वारा देश के सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) को अनुच्छेद 142 के रूप में खास शक्ति दी गई है। सुप्रीम कोर्ट किसी भी व्यक्ति को पूर्ण न्याय देने के लिए इस अनुच्छेद के तहत जरूरी निर्देश दे सकता है।
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