शीर्ष अदालत ने ऐसा कोई भी आदेश पारित नहीं किया था जिसमें यासीन मलिक को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने के लिए कहा गया हो।
इस बीच केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में यासीन मलिक की उपस्थिति पर चिंता व्यक्त की। बता दें कि आतंकी फंडिंग मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे यासीन मलिक को जम्मू कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत के समक्ष पेश किया जाना था।
क्या कोर्ट ने पारित किया था आदेश?
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को जानकारी दी कि शीर्ष अदालत ने ऐसा कोई भी आदेश पारित नहीं किया कि यासीन मलिक को शारीरिक रूप से कोर्ट के समक्ष पेश किया जाए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग किया। हालांकि, उन्होंने कहा कि ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया गया था, जिसमें यासीन मलिक को उनके सामने पेश होने के लिए कहा गया हो।
गृह मंत्रालय का क्या है आदेश?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को इस बात की जानकारी दी कि गृह मंत्रालय ने उसे (यासीन मलिक) जेल से बाहर नहीं ले जाने का आदेश पारित किया था। दरअसल, जम्मू कोर्ट के खिलाफ सीबीआई की याचिका को लेकर शीर्ष अदालत के समक्ष यासीन मलिक को पेश किया गया। ऐसे में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने इसे गंभीर सुरक्षा मुद्दा बताया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि कोर्ट में पेश होने के लिए वर्चुअल तरीके उपलब्ध हैं। न्यायमूर्ति कांत ने मामले को चार हफ्ते बाद सूचीबद्ध करते हुए कहा कि इसकी सुनवाई किसी अन्य पीठ को करने दें। इस पीठ में न्यायमूर्ति दत्ता सम्मिलित नहीं होंगे।