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बंगाल विधानसभा चुनाव में 'जय श्री राम' के नारे पर सुप्रीम कोर्ट ने नहीं लगाई रोक, जानें पूरा मामला

Deepa Sahu
9 March 2021 5:03 PM GMT
बंगाल विधानसभा चुनाव में जय श्री राम के नारे पर सुप्रीम कोर्ट ने नहीं लगाई रोक, जानें पूरा मामला
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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से दो जीत मिली।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से दो जीत मिली। कोर्ट ने एक तरफ कोर्ट ने चुनाव कैंपेन में 'जय श्री राम' के नारे के इस्तेमाल के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी तो एक अन्य केस में बीजेपी के डेरबा से उम्मीदवार पूर्व आईपीएस ऑफिसर भारती घोष के खिलाफ जारी अरेस्ट वारंट पर स्टे लगा दिया।

सुप्रीम कोर्ट के वकील मनोहर लाल शर्मा की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया कि धार्मिक नारे का इस्तेमाल जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) और 125 के तहत अपराध है। इन प्रावधानों के मुताबिक, कोई भी उम्मीदवार या चुनाव प्रक्रिया से जुड़े किसी शख्स को धर्म, जाति, समुदाय या भाषा के नाम पर भावनाएं भड़काने की इजाजत नहीं है।
याचिका में गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी का भी नाम लिया गया था और मांग की गई थी कि सीबीआई उनके खिलाफ केस दर्ज करे। साथ ही राजनीति पार्टी को धार्मिक नारे के इस्तेमाल से रोकने की मांग की गई थी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे की अगुआई में तीन जजों की बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाने को कहा।
सीजेआई के साथ जस्टिस एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने कहा, ''इस स्थिति में, धर्म के नाम पर वोट मांगने पर, एकमात्र उपाय चुनाव याचिका से हाई कोर्ट जाना है।'' याचिका में पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में चुनाव कराने के चुनाव आयोग के फैसले पर भी सवाल उठाया गया था। शर्मा ने याचिका में कहा कि दूसरे राज्यों में एक फेज में ही चुनाव हो रहा है जबकि बंगाल में 8 फेज में चुनाव कराया जा रहा है, जबकि यह किसी आतंकी हमले का सामना नहीं कर रहा है ना ही अशांत क्षेत्र है, यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है। जब शर्मा ने इस बिंदु पर बहस करना चाहा, तो पीठ ने कहा, "हमने आपकी पूरी याचिका पढ़ ली है। हम इसे नहीं सुनेंगे। याचिका खारिज की जाती है। " वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे चुनाव आयोग की ओर से पेश, लेकिन उन्हें कोई दलील देने की आवश्यकता नहीं पड़ी।


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