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सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर की टिप्पणी, कहा- पोर्न देखना अपराध नहीं लेकिन...

jantaserishta.com
19 April 2024 2:59 PM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर की टिप्पणी, कहा- पोर्न देखना अपराध नहीं लेकिन...
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नई दिल्ली: चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि किसी बच्चे का पोर्न देखना अपराध नहीं है, लेकिन पोर्न में बच्चे का इस्तेमाल किया जाना, अपराध के दायरे में आता है.
सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी मद्रास हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की. मद्रास हाईकोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी को पॉक्सो और आईटी एक्ट के तहत अपराध के दायरे से बाहर रखने का फैसला दिया था.
इस मामले पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच सुनवाई कर रही है. शुक्रवार को सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा, 'पोर्न देखना अपराध नहीं हो सकता है, लेकिन हाईकोर्ट का कहना है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अपराध नहीं होगा. किसी बच्चे का पोर्न देखना शायद अपराध न हो, लेकिन पोर्नोग्राफी में बच्चे का इस्तेमाल होना अपराध है.'
मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को दो एनजीओ 'जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस' और 'बचपन बचाओ आंदोलन' ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है. अदालत ने फैसला सुरक्षित लिख लिया है.
इंटरनेट से चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करने के आरोप में 28 साल के युवक पर POCSO एक्ट और IT एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ था.
ये मामला अम्बत्तूर पुलिस थाने में दर्ज हुआ था. लेकिन हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद वेंकटेश ने इस केस को ये कहते हुए रद्द करते कर दिया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना POCSO और IT एक्ट के तहत अपराध नहीं है.
कोर्ट ने ये भी कहा था कि आरोपी को पोर्न देखने की आदत थी, लेकिन उसने पहले कभी चाइल्ड पोर्न नहीं देखी थी. न ही उसने डाउनलोड किया वीडियो किसी से शेयर किया था.
केस रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि GenZ को पोर्न देखने की लत है और उन्हें सजा देने की बजाय जागरूक करना चाहिए. कोर्ट ने आरोपी को सलाह दी थी कि अगर उसे अभी भी पोर्न देखने की लत है तो उसे काउंसलिंग लेना चाहिए.
मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले को दो एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच इस पर सुनवाई कर रही है.
'जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस' की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट एचएस फुल्का ने कहा कि पॉक्सो एक्ट कहता है कि अगर ऐसा कोई वीडियो या फोटो है भी तो उसे तुरंत डिलीट किया जाना चाहिए, लेकिन इस मामले में आरोपी लगातार उस वीडियो को देख रहा था. उसके पास दो साल से ये वीडियो था और वो उसे लगातार देख रहा था.
चीफ जस्टिस ने पूछा, 'क्या वॉट्सऐप पर चाइल्ड पोर्न को रिसीव करना अपराध नहीं है?' इसके बाद जस्टिस पारदीवाला ने सवाल किया कि 'क्या वीडियो को दो साल तक अपने मोबाइल में रखना अपराध है?'
आरोपी के वकील ने दलील देते हुए कहा, 'वो वीडियो वॉट्सऐप से ऑटोडाउनलोड हुआ था. अगर वॉट्सऐप पर कोई फाइल आती है और किसी ने ऑटो डाउनलोड की सेटिंग ऑन रखी है तो वो अपने आप ही डाउनलोड हो जाती है.'
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, 'आपको कैसे नहीं पता चला कि आपके फोन में वीडियो है. आपको पता होना चाहिए कि ये अपराध है.'
कोर्ट ने कहा कि सवाल है कि क्या किसी ओर के भेजे गए चाइल्ड पोर्न के वीडियो को डाउनलोड करना POCSO के तहत अपराध है या नहीं?
हमारे देश में प्राइवेट में पोर्न देखने में कोई दिक्कत न हो, लेकिन अश्लील वीडियो या फोटो देखने, डाउनलोड करने और उसे वायरल करना अपराध है. ऐसा करने पर इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 67, 67A, 67B के तहत जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है.
धारा 67 के तहत, पोर्न कंटेंट देखने, डाउनलोड करने और वायरल करने पर पहली बार 3 साल की जेल और 5 लाख रुपये के जुर्माने की सजा है. दूसरी बार पकड़े जाने पर 5 साल की कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है.
धारा 67A के तहत, मोबाइल में पोर्न कंटेंट रखने और वायरल करने पर पहली बार पकड़े जाने पर 5 साल की जेल और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है. दूसरी बार पकड़े जाने पर 7 साल की जेल और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा का प्रावधान है.
वहीं, धारा 67B कहती है कि अगर किसी के मोबाइल में चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़ा वीडियो या फोटो मिलता है तो पहली बार पकड़े जाने पर 5 साल जेल और 10 लाख के जुर्माने की सजा होगी. दूसरी बार पकड़े जाने पर 7 साल जेल और 10 लाख रुपये का जुर्माना चुकाना होगा.
पोर्नोग्राफी या अश्लीलता को लेकर इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) में भी सजा का प्रावधान है. आईपीसी की धारा 292 और 293 में इसके लिए सजा का प्रावधान किया गया है.
धारा 292 के तहत, अश्लील वस्तुओं को बेचने, बांटने, प्रदर्शित करने या प्रसारित करना अपराध है. ऐसा करते हुए पहली बार पकड़े जाने पर 2 साल तक की जेल और 2 हजार तक का जुर्माना लग सकता है. दूसरी बार पकड़े जाने पर 5 साल तक जेल और 5 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है.
जबकि धारा 293 के तहत, 20 साल से कम उम्र के व्यक्ति को अश्लील वस्तु दिखाना, बेचना, किराये पर देना या बांटना अपराध है. ऐसा करने पर पहली बार दोषी पाए जाने पर 3 साल तक की जेल और 2 हजार रुपये की सजा का प्रावधान है. दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 7 साल तक की जेल और 5 हजार रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है.
इस कानून की धारा 14 में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति बच्चे या बच्चों को अश्लील कंटेंट के लिए इस्तेमाल करता है तो उसे उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
वहीं, पॉक्सो एक्ट की धारा 15 कहती है कि अगर कोई व्यक्ति चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़ा कंटेंट अपने पास रखता है तो उसे तीन साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.
पिछले साल एक मामले में फैसला देते हुए केरल हाईकोर्ट ने कहा था, 'पोर्नोग्राफी सदियों से प्रचलित है. लेकिन आज के नए डिजिटल युग में और ज्यादा सुलभ हो गई है. बच्चों और बड़ों की उंगलियों पर ये मौजूद है. सवाल ये है कि अगर कोई अपने निजी समय में दूसरों को दिखाए बगैर पोर्न वीडियो देख रहा है तो वो अपराध है या नहीं? अदालत इसे अपराध के दायरे में नहीं ला सकती, क्योंकि ये व्यक्ति की निजी पसंद हो सकती है और इसमें दखल करना उसकी निजता में घुसपैठ करने के बराबर होगा.'
इससे पहले 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि निजी स्पेस में पोर्न देखना गलत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि अकेले पोर्न देखने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन चाइल्ड पोर्नोग्राफी या महिलाओं के खिलाफ बलात्कार या हिंसा से जुड़े अश्लील कंटेंट को देखना या इकट्ठा करना अपराध के दायरे में आता है.
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