दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया है. और कहा कि योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है, इससे बदले की भावना पैदा हो सकती है. काले धन पर अंकुश लगाना और दानकर्ताओं की गुमनामी सुनिश्चित करना चुनावी बांड का बचाव करने या राजनीतिक निष्कर्षों में पारदर्शिता की आवश्यकता का आधार नहीं हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को रद्द किया.
योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था. इसके मुताबिक चुनावी बॉण्ड को भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई खरीद सकती है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है. जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड स्वीकार करने के पात्र हैं.
शर्त बस यही है कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों. चुनावी बॉण्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा. बॉन्ड खरीदने के पखवाड़े भर के भीतर संबंधित पार्टी को उसे अपने रजिस्टर्ड बैंक खाते में जमा करने की अनिवार्यता है. अगर पार्टी इसमें विफल रहती है तो बॉन्ड निरर्थक और निष्प्रभावी यानी रद्द हो जाएगा.