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चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेकर सुखबीर बादल ने पेश किया इस्तीफा, लेकिन...

jantaserishta.com
18 March 2022 2:58 AM GMT
चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेकर सुखबीर बादल ने पेश किया इस्तीफा, लेकिन...
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नई दिल्ली: पंजाब में ऐतिहासिक जीत के बाद आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई है. इस बीच शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने इस्तीफे की पेशकश की है. गुरुवार को पंजाब विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सुखबीर सिंह बादल ने अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की है. हालांकि उनके इस्तीफे की पेशकश को पार्टी के जिला अध्यक्षों और वरिष्ठ नेताओं ने खारिज कर दिया है. वही खबर ये भी है कि पार्टी ने चुनावी पराजय पर अपने नेताओं के साथ-साथ लोगों से प्रतिक्रिया लेने के लिए एक उच्चस्तरीय पैनल बनाने का भी फैसला किया. प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीटें जीतकर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. आम आदमी पार्टी की ऐसी हवा चली कि दोबारा सत्ता में लौटने की आस देख रही कांग्रेस को बड़ा झटका लगा.

पंजाब विधानसभा चुनावों में शिरोमणि अकाली दल (SAD) का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा. पार्टी को महज तीन सीटों पर ही जीत हासिल हुई. सुखबीर बादल खुद जलालाबाद से चुनाव हार गए जबकि उनके पिता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल लंबी से हार गए. पार्टी के जिलाध्यक्षों और वरिष्ठ नेतृत्व से बातचीत के दौरान सुखबीर बादल ने कहा कि मेरे लिए पार्टी और उसकी भलाई सर्वोपरि है. मैंने हमेशा पार्टी के हित में काम किया है. पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी मेरी है. और पद छोड़ने को तैयार हैं. बयान में कहा गया है कि पार्टी नेतृत्व ने कई जिलाध्यक्षों के साथ मिलकर उनके प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त करने के लिए सर्वसम्मति से एक औपचारिक प्रस्ताव भी पारित किया गया. नेताओं ने कहा कि न केवल बादल ने मोर्चे से नेतृत्व किया बल्कि पार्टी नेतृत्व के साथ-साथ कैडर को भी अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित किया. पार्टी नेताओं ने कहा कि हालांकि नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे, लेकिन पार्टी अध्यक्ष को किसी भी तरह से दोष नहीं दिया जा सकता. उन्होंने कहा कि लोगों ने बदलाव के लिए भारी मतदान किया और आम आदमी पार्टी की सुनामी में पूरा विपक्ष बह गया. अकाली दल के नेताओं ने कहा कि कई जगहों पर मतदाताओं को आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार का नाम भी नहीं पता था, लेकिन उन्होंने बदलाव के लिए मतदान किया. इससे अकाली दल को भारी कीमत चुकानी पड़ी.
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