सोर्स न्यूज़ - आज तक
साल 2020 में सुसाइड के देशभर में 1 लाख 53 हजार 52 मामले सामने आए थे. इनमें से 37 हजार 666 दिहाड़ी मजदूर थे यानी कुल सुसाइड में दिहाड़ी मजदूरों की तादाद चिंताजनक रूप से 24.6 फीसदी पहुंच गई थी. अब चिंता की बात ये है कि आखिर दिहाड़ी मजदूरों में सुसाइड करने की प्रवृत्ति बढ़ क्यों रही है? साल 2020 से दिहाड़ी मजदूरों के सुसाइड में आए उछाल के पीछे विशेषज्ञ कोरोना महामारी को प्रमुख कारण बता रहे हैं.
विशेषज्ञों और मजदूर संगठनों के लोग कह रहे हैं कि पिछले दो साल में कोरोना और इसके कारण बने हालात ने दिहाड़ी मजदूरों को काफी अधिक प्रभावित किया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय महासचिव रवींद्र हिमटे ने दिहाड़ी मजदूरों के सुसाइड रेट में वृद्धि के लिए कोरोना महामारी को जिम्मेदार बताया है.
आजतक से बात करते हुए रवींद्र हिमटे ने कहा कि देश में 1 करोड़ 12 लाख से अधिक मजदूर हैं. इसलिए साफ है कि इनकी संख्या अधिक होगी. उन्होंने कहा कि कोरोना काल में संगठन यदि शवों की गिनती करने की बजाय दिहाड़ी मजदूरों की सहायता करने के लिए आते तो हम हालात संभाल सकते थे. संघ से जुड़े श्रमिक संगठन के नेता ने ये भी कहा कि 2022 के आंकड़ों में दिहाड़ी मजदूरों का सुसाइड रेट कम होगा.
उन्होंने कहा कि 2021 में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दिहाड़ी मजदूरों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा. अब कोरोना का प्रभाव कम हुआ है, ऐसे में दिहाड़ी मजदूरों के सुसाइड रेट में भी कमी आएगी. श्रमिक संगठनों के लोग भी दिहाड़ी मजदूरों के बढ़े सुसाइड रेट के पीछे कोरोना को एक प्रमुख कारण मान रहे हैं लेकिन इसके पीछे कोरोना के साथ ही कुछ अन्य कारण भी हैं.
कोरोना महामारी
साल 2020 और 2021 में कोरोना महामारी ने सामान्य जन-जीवन पर एक तरह से ब्रेक सा लगा दिया था. इसकी वजह से श्रम की मांग में काफी कमी आई थी. कल-कारखाने और दुकानें बंद थे. कई रिपोर्ट्स में ये तथ्य सामने आया था कि किस तरह से दिहाड़ी मजदूरों को ठेकेदारों ने बकाया धनराशि का भुगतान नहीं किया था जिससे वे कर्ज के जाल में फंस गए. दिहाड़ी मजदूरों की आय शून्य हो गई और खर्च में इजाफा हुआ.
कॉन्ट्रैक्ट्स का अभाव
दिहाड़ी मजदूरों का रोजगार आसानी से छिन जाता है तो इसके पीछे एक प्रमुख कारण कॉन्ट्रैक्ट्स का अभाव भी है. पीरियडिक लेबर फोर्स सर्वे 2017-18 के मुताबिक देश के कुल लेबर फोर्स का एक चौथाई यानी करीब 25 फीसदी ऐसे आकस्मिक मजदूर हैं, जिनका कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं है. ऐसे मजदूरों के पास कॉन्ट्रैक्ट नहीं होने के कारण नौकरी की सुरक्षा नहीं होती और नौकरी छूटने का खतरा अधिक रहता है.