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बना ग्रीन कॉरीडोर: भारत में पहली बार दोनों फेफड़ों का सफल ट्रांसप्लांट, कोरोना संक्रमित होने के बावजूद सफल ऑपरेशन

jantaserishta.com
17 Jan 2022 4:20 AM GMT
बना ग्रीन कॉरीडोर: भारत में पहली बार दोनों फेफड़ों का सफल ट्रांसप्लांट, कोरोना संक्रमित होने के बावजूद सफल ऑपरेशन
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मशीनों की मदद से व्यक्ति के फेफड़ों का सफल ट्रांसप्लांट।

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के अस्पताल में पल-पल के लिए सांसों को मोहताज एक शख्स को जीवन देने के लिए अहमदाबाद से मदद मिली. उत्तर भारत में पहली बार किसी अस्पताल ने खास मशीनों की मदद से एक व्यक्ति में दोनों फेफड़ों का सफल ट्रांसप्लांट किया है. एक खास बात ये भी है कि मरीज के कोरोना संक्रमित होते हुए भी ये डबल लंग ट्रांसप्लांट सफल हुआ है.

पूरे उत्तर भारत में पहली बार एक्सटेंडेड एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ईसीएमओ) सपोर्ट की मदद से एक 55 वर्षीय मरीज पर डबल लंग ट्रांसप्लांट सर्जरी की गई है. मैक्स हेल्थकेयर में ट्रांसप्लांट सर्जन, पल्मोनोलॉजिस्ट, क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट और डॉक्टरों की कार्डियोपल्मोनरी रिहैब टीम ने इस बहुत ही जटिल ऑपरेशन को अंजाम दिया है जो उत्तर भारत का पहला डबल लंग ट्रांसप्लांट ऑपरेशन भी है. यह मरीज कोरोना से संक्रमित था बावजूद इसके उस मरीज का प्रत्यारोपण सफल हुआ.
मेरठ उत्तर प्रदेश के रहने वाले 55 वर्षीय ज्ञान चंद क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) से पीड़ित थे. उनके फेफड़े कोविड-19 के कारण क्षतिग्रस्त हो गए थे. वे बहुत अस्थिर और गंभीर हालत में थे. वह हाई फ्लो ऑक्सीजन पर थे. उनके जीवन को बचाने का एकमात्र विकल्प फेफड़े का ट्रांसप्लांट था. मैक्स अस्पताल (साकेत, दिल्ली) में उनकी जांच की गई और डॉ. राहुल चंदोला के नेतृत्व में हार्ट-लंग्स ट्रांसप्लांट टीम ने उन्हें फेफड़ों के ट्रांसप्लांट के लिए वेटिंग लिस्ट में रखा गया था.
22 दिसंबर 2021 को अहमदाबाद में एक ब्रेन डेड डोनर के ऑर्गन रजिस्ट्री (NOTTO) की जानकारी मिली. इस मरीज की उम्र 44 साल थी जिसकी ब्रेन हेमरेज से मौत हो गई थी. इसके बाद टीम फेफड़ों को डिलोकेट करने के लिए अहमदाबाद चली गई. रोगी की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए अस्पताल के अधिकारियों द्वारा उचित व्यवस्था की गई थी और हर कदम सही समय पर उठाया गया था. अहमदाबाद में सिविल अस्पताल और हवाई अड्डे के बीच एक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया और फिर आईजीआई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और दिल्ली के साकेत में मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के बीच अंग को तुरंत लाने के लिए भी ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था. 3 घंटे में 950 KM की दूरी तय करते हुए फेफड़ों को बिना किसी गड़बड़ी के ले जाया गया.
डॉक्टर्स ने बताया कि यह रोगी उनके पास फेफड़ों की बीमारी के साथ आया था जहां फेफड़े में पहले से ही कई सारे कांप्लीकेशन्स थे और मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. वह लगभग एक साल से ऑक्सीजन पर था और उसमें सुधार नहीं हो रहा था और इसका कोई दूसरा इलाज नहीं था. तमाम चिकित्सा प्रबंधन के बावजूद मरीज में किसी तरह का सुधार नहीं दिखा. तब इस ट्रांसप्लांट के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया गया.
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल (साकेत) के एसोसिएट डायरेक्टर, एडल्ट सीटीवीएस, हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट स्पेशलिस्ट डॉ. राहुल चंदोला ने कहा कि यह एक बहुत ही जटिल सर्जरी थी और मैक्स हेल्थकेयर में हमने उत्तर भारत में पहली बार विस्तारित ईसीएमओ लाइफ सपोर्ट पर यह डबल लंग ट्रांसप्लांट किया. अब मरीज पूरी तरह से ठीक हो गया है और दोनों फेफड़े पूरी तरह से काम कर रहे हैं.
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