अनुविभागीय अधिकारी गिरफ्तार, 146 करोड़ के सायबर फ्रॉड मामले में पुलिस ने लिया एक्शन
सोर्स न्यूज़ - आज तक
बदमाशों ने वारदात को अंजाम देने के लिए 18 महीने की प्लानिंग की. इसके लिए एक करोड़ रुपए खर्च किए और आठ बार असफल हुए. इसके बाद 146 करोड़ की धोखाधड़ी की, लेकिन मकसद 300 करोड़ रुपए को पार करने का था. साइबर क्राइम पुलिस ने जिन पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया है, उनमें वारदात का मास्टर माइंड रामराज है. वह लोक भवन लखनऊ में अनुभाग अधिकारी है. दूसरा मास्टर माइंड ध्रुव कुमार श्रीवास्तव है. तीसरा आरोपी कर्मवीर सिंह यूपी को-आपरेटिव बैंक के महमूदाबाद कार्यालय में भुगतान विभाग में तैनात था. चौथा आरोपी आकाश कुमार और पांचवा आरोपी भूपेंद्र सिंह है.
गिरफ्तार ध्रुव कुमार श्रीवास्तव ने पूछताछ में पुलिस को बताया, ''मैं अपने मित्र ज्ञानदेव पाल के साथ मई 2021 में लखनऊ आया था. यहां मेरी मुलाकात आकाश कुमार से हुई. आकाश के जरिए हम एक ठेकेदार से मिले. उसने बताया कि मेरे पास एक हैकर है. यदि हम लोग यूपी सहकारी बैंक के किसी अधिकारी को सेट कर लें, तो बैंक के सिस्टम को रिमोट एक्सेस करके लगभग तीन सौ करोड़ रुपए अपने फर्जी खातों में ट्रांसफर कर सकते हैं. ध्रुव कुमार ने आगे बताया, ''भूपेंद्र सिंह के जरिए बैंक के महमूदाबाद सहायक प्रबंधक कर्मवीर सिंह से मुलाकात हुई. हम लोगों ने मुंबई से एक हैकर बुलाया. उसे लखनऊ के होटल कंफर्ट जोन चारबाग में ठहरा गया. यहां उसने एक डिवाइस तैयार की, जिसे कर्मवीर सिंह और ज्ञानदेव पाल बैंक के सिस्टम में लगाते रहे. हम लोगों ने आठ बार हेराफेरी की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली.
ध्रुव ने आगे बताया, ''बाद में हम लोगों की मुलाकात लोक भवन में अनुभाग अधिकारी रामराज से हुई. इनकी टीम में उमेश गिरी था. उसने पूर्व बैंक प्रबंधक आरएस दुबे से संपर्क किया. इसके बाद 14 अक्टूबर 2022 को दुबे, रवि वर्मा और ज्ञानदेव पाल शाम छह बजे के बाद बैंक गए. यहां आकर इन लोगों ने सिस्टम में कीलॉगर इंस्टॉल किया और हैकर की बनाई गई डिवाइस फिट की.''
ध्रुव ने आगे बताया, ''15 अक्टूबर 2022 की सुबह हम लोग पांच टीम में बंट गए. कुल मिलाकर 15 से 20 लोग इन टीमों में थे. सभी केडी सिंह बाबू स्टेडियम के पास पहुंचे. इसके बाद रवि वर्मा और आरएस दुबे बैंक के अंदर गए.जब बाहर से ट्रांजेक्शन होता, तो ये लोग सिस्टम में इंस्टॉल साफ्टवेयर को अन-इंस्टॉल कर देते. इसके बाद सिस्टम में लगे डिवाइस और बैंक में लगे डीवीआर को निकाल लेते. मगर, बैंक के गार्ड ने इनको टोक दिया. इसके बाद सभी वापस आ गए.
उसी दिन लंच के टाइम मौका मिलते ही ज्ञानदेव पाल, उमेश गिरी, बैंकर ने साइबर एक्सपर्ट के साथ मिलकर 146 करोड़ रुपए गंगासागर सिंह की कंपनियों के अलग-अलग खातों में आरटीजीएस के जरिए ट्रांसफर कर दिया. पैसे ट्रांसफर होने के बाद गैंग के सभी सदस्य ब्रेक प्वाइंट ढाबा लखनऊ-अयोध्या रोड़ बाराबंकी पहुंचे. हमें जानकारी लगी कि गंगासागर की कंपनियों के वे सभी अकाउंट फ्रीज हो गए हैं, जिनमें पैसा ट्रांसफर किया गया था. हमने उसके बाद दो-तीन घंटे तक पैसे ट्रांसफर होने का इंतजार भी किया. फिर उसके बाद भी पैसे ट्रांसफर नहीं हुए, तो मैं अपनी टीम के साथ नैनीताल भाग गया. दूसरे गैंग मेंबर भी फरार हो गए. आरोपियों के पास से एक बैंक आईडी कार्ड, 25 सेट आधार कार्ड और हस्ताक्षरित ब्लैंक चेक, 25 सेट निवास प्रमाण पत्र और सादे भारतीय गैर न्यायिक स्टाम्प साइन किए हुए, आठ मोबाइल फोन, सात एटीएम कार्ड, एक आधार कार्ड, एक पैन कार्ड, एक मैट्रो कार्ड, एक निर्वाचन कार्ड, एक ड्राइविंग लाइसेंस, 15,390 रुपए नकद, 25 सेट हाईस्कूल और इंटर की मूल अंक पत्र और प्रमाण पत्र, एक चार पहिया वाहन और दो टू-व्हीलर बरामद किए गए हैं.