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चाय की दुकान में बैठकर की पढ़ाई, अब दिव्यांग बनेगा डॉक्टर, स्टोरी पढ़कर लोग कर रहे सलाम
jantaserishta.com
5 Feb 2022 10:48 AM GMT
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कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों...!
गुवाहाटी: कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों...! इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है कि असम में चाय बेचने वाले युवक राहुल दास ने. काम के साथ-साथ अपने सपनों को साकार करने का राहुल में जुनून कुछ इस कदर सवार था कि उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से NEET की परीक्षा पहली ही बार में क्लीयर कर लिया.
24 वर्षीय राहुल को दिल्ली के AIIMS में सीट मिल गई है. वह असम के बजारी जिले के रहने वाले हैं. उनका इस मुकाम तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था. राहुल और उनके भाई की देखभाल उनकी मां ही करती थीं. उनके पिता 11 साल पहले बच्चों और मां को अकेला छोड़कर कहीं चले गए. जिसके बाद मां ने ही अपने बच्चों का पालन-पोषण किया.
गरीबी इतनी थी कि राहुल को 12वीं कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. लेकिन डॉक्टर बनना उनका सपना था. जिसके लिए उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. पटाचरकुची चौक में स्थित अपनी चाय की दुकान पर काम करके राहुल अपनी मां का हाथ बंटाते थे. लेकिन बीच-बीच में समय निकालकर वह अपनी पढ़ाई भी करते थे.
उन्होंने बताया, "मैंने अपनी मां को हमारे लिए कड़ी मेहनत करते देखा है. हम दुकान पर एक सहायक नहीं रख सकते थे. इसलिए मैंने मां की मदद करने की सोची. मैं चाय बना-बनाकर बेचता था और जब भी समय मिलता. दुकान पर बैठकर ही पढ़ाई करता था.''
राहुल ने बताया, ''मैंने साल 2015 में बारहवीं की परीक्षा पास की. फिर पैसों की कमी के चलते मुझे पढ़ाई वहीं रोकनी पड़ी. हालांकि, उच्च शिक्षा के लिए मैंने दो साल बाद पेट्रोकैमिकल्स इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPET) में दाखिला लिया.''
क्वालिटी इंजीनियर की नौकरी छोड़ी
उन्होंने तीन साल की इस डिग्री में 85 प्रतिशत अंक हासिल किए. इसके बाद वह साल 2020 में गुवाहाटी की एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर क्वालिटी इंजीनियर काम करने लगे. राहुल ने कहा, ''मैं भले ही अच्छा काम कर रहा था. लेकिन इससे मुझे संतुष्टि नहीं मिल पा रही थी. मैं हमेशा से ही एक डॉक्टर बनना चाहता था. इसलिए मैंने जॉब छोड़ने का फैसला लिया. मेरा एक भाई भी डेंटल सर्जन है. उसे देखकर मुझै हौसला मिला और मैंने NEET की तैयारी शुरू कर दी.''
'इंटरनेट की मदद से की पढ़ाई'
उन्होंने बताया, ''मेरे पास किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. इसलिए मैं इंटरनेट की मदद से पढ़ाई करने लगा. मेरी यह मेहनत रंग लाई और मैंने NEET में 12,068वां रैंक हासिल किया. लेकिन मैं दिव्यांग हूं. मेरा एक हाथ खराब है. जिस वजह से मुझे सीट मिलने में और आसानी हुई.''
राहुल की दुकान के मालिक ने कभी नहीं लिया किराया
राहुल ने बताया कि उनकी दुकान के मालिक मंटू कुमार शर्मा भी बहुत भले इंसान हैं. उन्होंने कभी भी उनसे दुकान का किराया नहीं लिया. और जब राहुल को AIIMS में एडमिशन मिल गया है, तो दिल्ली तक टिकट भी उन्होंने ही उसके लिए बुक की.
असम सरकार उठाएगी सारा खर्च
उधर राहुल की इस सफलता को देखते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को घोषणा की थी कि राहुल की पढ़ाई का सारा खर्च राज्य सरकार वहन करेगी.
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