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सोनागाछी शब्द आपके कानों में कई बार गूंजा होगा. कभी रसीली और चटपटी गप के रूप में...तो कभी दर्दभरी लड़ियों जैसी दुखांत कहानियों की तरह. यहां की 10 बाई 10 की खोलियों से कराह और कहकहों के स्वर एक साथ निकलते हैं. इन ध्वनियों के अपने-अपने मायने हैं. किसी के लिए ये खालिस मनोरंजन है, जहां रकम के बदले एक सौदा है...तो अगले ही पल ये जिल्लत और जिंदगी की कहानी है, जहां घोर अंधियारा है. न कोई सितारा है...न आफताब.
नगमा निगार साहिर लुधियानवी सोनागाछी के इस विरोधाभास को फिल्म चांदी की दीवार के एक गीत में बड़ी तकलीफ के साथ पेश करते हैं. इस रचना में दुनिया से उनकी शिकायत है. मोहम्मद रफी इस गीत को जब स्वर देते हैं तो सोनागाछी अपनी रौ में अपनी पहचान के साथ सामने आ जाता है.
ये दुनिया दो रंगी है
एक तरफ से रेशम ओढ़े, एक तरफ से नंगी है
एक तरफ अंधी दौलत की पागल ऐश परस्ती
एक तरफ जिस्मों की कीमत रोटी से भी सस्ती
एक तरफ है सोनागाछी, एक तरफ चौरंगी है
ये दुनिया दो रंगी है
कोलकाता का वो कोना जिसे दुनिया सोनागाछी कहती है
जानकारी के दोहराव का खतरा उठाते हुए भी हम आपको बताना चाहते हैं कि सोनागाछी कोलकाता का एक इलाका है. 300 साल से भी पुराने हुगली नदी के तट पर बसे कोलकाता शहर की कई चीजें खास हैं मसलन रसगुल्ला ही कह लें, हिल्सा मछली, गीत संगीत, फिल्म, क्रांति, हस्तियां बहुतेरी बातें हैं. लेकिन कोलकाता से जुड़ी एक और भी चीज फेमस है. जिसका नाम भद्रलोक दबी जुबान से लेता है. कोने में, यार दोस्तों की महफिल में, ये नाम है सोनागाछी.
दबी जुबान से इसलिए क्योंकि सोनागाछी रेडलाइट एरिया है. लाल रंग में बहुत उष्मा होती है, हमारे सामान्य जीवन में यह खतरे का संकेत होता है, हमें रुकने और सुस्ताने का इशारा करता है. लेकिन इसके आकर्षण का संवरण उतना ही मुश्किल है. सोनागाछी में एशिया का सबसे बड़ा देह व्यापार का केंद्र है. एक कच्चे अनुमान के अनुसार 10000 से ज्यादा सेक्स वर्कर यहां काम करती हैं. हर उम्र...हर क्षेत्र और धर्म की लड़कियां यहां उस धंधे से जुड़ी हैं, जिसकी चर्चा करते हुए हमारा समाज मुंह बिचकाता है, अच्छा नहीं कहता है. लेकिन फिर भी इस इलाके की मौजूदगी को लेकर सरकारों और शासन में एक तरह की स्वीकारोक्ति है. इन्हें यहां से कोई हटा नहीं सकता.
इसलिए ये बस्ती सालों से मौजूद है. उत्तरी कोलकाता के शोभाबाजार के नजदीक स्थित चितरंजन एवेन्यू में मौजूद इलाके को लोग कई सौ सालों से सोनागाछी के नाम से जानते आए हैं.
सोनागाछी यानी सोने का पेड़
जैसा कि नाम ही बताता है. सोनागाछी यानी सोने का पेड़. आखिर इस इलाके का नाम सोनागाछी कैसे पड़ा? तो क्या इस इलाके में सोने के पेड़ जैसा कुछ है? हम तो यही जानते हैं कि सोना निर्जीव वस्तु है. कीमती धातु है और इसका कोई पेड़ नहीं होता तो फिर शोभाबाजार के पास सोने का गाछ कहां से आया? दरअसल किवंदतियां हैं कि एशिया के सबसे बड़े रेडलाइट का नाम एक मुस्लिम वली (संत) के नाम पर पड़ा है.
सोनागाछी का सोने से क्या लेना देना है?
चलिए आपको फ्लैशबैक में ले चलते हैं. 300 साल पहले का समय. तब कलकत्ता नया-नया बसा था. हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित ये क्षेत्र व्यापार का फलता-फूलता केंद्र था. इतिहासकार पीटी नायर की किताब 'A history of Calcutta's streets' के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस सोनागाछी की कहानी बताते हुए लिखता है कि इस इलाके में सनाउल्लाह नाम का एक खूंखार डकैत अपनी मां के साथ रहा करता था.
कुछ दिन बाद उस डकैत की मौत हो गई. एक दिन सनाउल्लाह की रोती हुई मां ने अपनी झोपड़ी से एक आवाज सुनी. झोपड़ी से आवाज आ रही थी, "मां तुम मत रो...मैं एक गाजी बन गया हूं. इस तरह निकला सनाउल्लाह से सोना गाजी का लेजेंड.
लेजेंड यानी कि किंवदंती, माने...इतिहास की बेतरतीब घटनाओं के आधार पर लोकजीवन में प्रचलित कथा कहानियां. जल्द ही कथा आस-पास फैलने लगी. इस झोपड़ी में लोग पहुंचने लगे और इबादत करने लगे. यहां आकर कथित रूप से लोग बीमारियों से चंगे होने लगे. कहते हैं लोगों को यहां रुहानी एहसास होता था. इस तरह से कालांतर में किंवदंतियों में डकैत सनाउल्लाह को कथित रूप से संतत्व प्राप्त हुआ.
इतिहासकार नायर कहते हैं कि सनाउल्लाह की मां ने अपने बेटे की याद में यहां एक सुंदर मस्जिद बनवा दी. इसे सोना गाजी के मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा. कुछ दिन के बाद सनाउल्लाह की मां की मौत हो गई. इसके बाद इस मस्जिद की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहा और धीर-धीरे लंबे कालखंड के बाद ये मस्जिद पूरी तरह से गायब हो गई. इस मस्जिद की वजह से पड़ोस के इलाके का नाम मस्जिद बाड़ी पड़ा. जबकि सनाउल्लाह गाजी बदलकर सोना गाजी हुआ और फिर बदलते-बदलते सोनागाछी हो गया.
हालांकि सोनागाछी का प्रारंभिक इतिहास हमें नहीं मिलता है. इस बात की भी सही जानकारी नहीं है कि कैसे सोनागाछी एक रेडलाइट एरिया में बदल गया. लेकिन कोलकाता शहर पर पिछले 30 सालों से लिखने वाले पत्रकार गौतम बासु मलिक उन परिस्थितियों की ओर इशारा करते हैं जिससे यहां देह व्यापार पनपा.
सोनागाछी में कैसे पनपा देह व्यापार
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार सोनागाछी ओल्ड पिलग्रिम रोड पर है जिसे अब रबींद्र सारणी के नाम से जाना जाता है. ये इलाका बड़े बाजारों का केंद्र रहा है. अंग्रेजों के यहां आने से पहले भी यहां व्यावसायिक गतिविधियां होती थीं, व्यापारी पानी के जहाज से आते थे. इनमें पुर्तगाल और अर्मेनिया के तिजारती प्रमुख थे. यहां मजदूर काम करते थे और लोगों की भीड़ जमा होती थी.
पत्रकार मलिक कहते हैं कोई भी जगह बड़ी संख्या में व्यापारी/सैलानी आते हैं, जहां रुपया पैसा, माल असबाब पैदा होता है, जो व्यवसाय का बड़ा केंद्र है वहां रेड लाइट एरिया का पनपना बहुत सहज है.
कभी सोनागाछी के देह व्यापार को नामी बंगाली परिवार चलाते थे. आज इन जर्जर कोठों को किराए पर दिया जाता है. यहां सनाउल्लाह की दरगाह आज भी है. ये कई बार टूटी और कई बार इसकी मरम्मत की गई. दुर्भाग्यवश इस दरगाह पर सनाउल्लाह की मौत की तारीख नहीं लिखी हुई है.
अभी चुनाव का शोर
सोनागाछी में अभी चुनाव का शोर है. ये इलाका कोलकाता जिले के श्यामपुकुर विधानसभा सीट में आता है. हालांकि साल भर से चल रहे कोरोना के कहर ने सोनागाछी की रंगत फीकी कर दी है. चुनाव में यहां थोड़ी हलचल बढ़ी है. इस क्षेत्र में इस बार 29 अप्रैल को चुनाव है. 2016 के चुनाव में यहां टीएमसी की डॉ शशि पांजा ने जीत हासिल की थी. दूसरे स्थान पर ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक रही थी और तीसरा नंबर बीजेपी का था.
इस सीट से इस बार भी टीएमसी ने शशि पांजा को टिकट दिया है. जबकि बीजेपी की ओर से संदीपन विस्वास और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक की ओर से जीवन प्रकाश साहा चुनाव लड़ रहे हैं. सोनागाछी की बस्ती चुनाव और देश-दुनिया के दूसरे घटनाक्रम से इतर अपनी लय में चलती जा रही है. यहां हर शाम रौशन होती रही है...सालों साल
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