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भोपाल (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए एक साल से कम का वक्त बचा है। यही कारण है कि चुनाव की आहट धीरे-धीरे तेज होने लगी है। संभावना इस बात की बढ़ने लगी है कि आगामी चुनाव में प्रमुख दोनों दलों भाजपा और कांग्रेस के लिए छोटे दल बड़ी चुनौती बनकर उभर सकते हैं।
राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारियों में तमाम राजनीतिक दल जुट गए हैं। भाजपा और कांग्रेस जमीनी तैयारी में अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। दोनों दलों की उस वोट बैंक पर खास नजर है जो छोटे दल अपनी ओर खींच सकते हैं।
राज्य की सियासत पर और पिछले चुनावों पर गौर किया जाए तो यहां समाजवादी पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के अलावा कम्युनिस्ट पार्टी का भी प्रभाव रहा है। वर्ष 2003 के चुनाव से एक बात साफ जान पड़ती है कि 230 विधायकों के सदन में 18 विधायक छोटे दलों के जीत कर आए थे। इस संख्या में उतार-चढ़ाव होता रहा है। वर्ष 2008 में दोनों प्रमुख दलों के अलावा छोटे दलों के 13 विधायक निर्वाचित हुए थे, वहीं 2013 में यह संख्या चार पर सिमट गई थी तो 2018 में सिर्फ तीन विधायक छोटे दलों के निर्वाचित हुए थे।
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों के नतीजों से दोनों ही प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस सबक ले चुके हैं। वे हर हाल में पूर्ण बहुमत पाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस सत्ता में जरूर आई थी मगर उसे पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ था। 230 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस को 114 स्थानों पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा 109 स्थानों पर ही जीत हासिल कर सकी थी। यह बात अलग है कि बड़े दल बदल के कारण भाजपा ने लगभग सवा साल बाद फिर सत्ता में वापसी कर ली थी।
राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मिश्रा का मानना है कि अगला चुनाव कशमकश भरा हो सकता है, इस संभावना को कोई नहीं नकार सकता। इसकी वजह भी है क्योंकि भाजपा में भी अब कांग्रेस की तरह गुटबाजी बढ़ रही है तो वही कांग्रेस भी एकजुट होने की कोशिश में है। इसके अलावा छोटे दल चुनावी गणित को बना और बिगाड़ सकते हैं।
राज्य में पिछले दिनों हुए नगरीय निकाय के चुनाव में यह बात खुलकर सामने आ गई है कि चुनावों में छोटे दल अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। ओबैसी की पार्टी एआईएमआईएम के नगरीय निकाय के चुनाव में जहां कई स्थानों पर पार्षद का चुनाव जीतने में कामयाब हुए तो नतीजे भी बदले, इसके अलावा आप के पार्षद के अलावा सिंगरौली में तो महापौर पद पर भी जीत हासिल की। छोटे दलों की सक्रियता पर नजर दौड़ाई जाए तो एक बात साफ है कि आगामी चुनाव में आम आदमी पार्टी, एआईएमआईएम के अलावा आदिवासी युवाओं का संगठन जयस, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा पिछड़ा वर्ग की लामबंद हो रहा है और वह किसी एक छोटे दल से समझौता करने की कोशिश में भी है।
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