सम्पादकीय

सिरिशा और समीर

Triveni
13 July 2021 4:23 AM GMT
सिरिशा और समीर
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सिरिशा बांदला का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं रह गया।

आदित्य चोपड़ा| सिरिशा बांदला का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं रह गया। कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स जैसे बड़े नामों के बाद अब सिरिशा बांदला का नाम भी अंतरिक्ष की यात्रा करने वालों की सूची में शामिल हो चुका है। दूसरी तरफ अमेरिकी टेनिस खिलाड़ी समीर बनर्जी ने विम्बलडन में लड़कों का एकल खिताब जीतकर इतिहास रच दिया। उसने फाइनल में अमेरिका के विक्टर लिलोव को मात दी। सिरिशा और समीर में समानता यह है कि दोनों ही भारतीय मूल के हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि अधिकांश भारतीयों ने विदेश में जाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। भारत में भी प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं लेकिन उन्हें न तो सही ढंग से तराशा जाता है और न ही उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए अवसर मिलते हैं। सिरिशा और समीर पर हमें गर्व है। कुछ लोग इस पर आलोचना जरूर करेंगे कि इसमें गर्व वाली क्या बात है। ऐसा सोचना संकीर्ण मानसिकता होगी। सबसे रोचक बात तो यह है कि भारतीय प्रवासी आबादी का डिस्ट्रीब्यूशन पूरी दुनिया में है। प्रवासी भारतीयों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। जो दुनिया के अलग-अलग देशाें में रह रहे हैं और ये सबसे ज्यादा विविधता और जीवटता वाले समुदाय में से एक हैं। 2020 के आंकड़ों के अनुसार 1.8 करोड़ भारतीय अपने देशों से दूर दुनिया के अलग-अलग देशाें में रहते हैं और इस मामले में यह दुनिया का सबसे बड़ा प्रवासी समूह है। प्रवासी भारतीय जहां भी रहते हैं, उन्होंने वहां की संस्कृति और संविधान काे आत्मसात कर वहां के विकास में योगदान डाला है। उन्होंने न केवल अपने जीवन को सुखद बनाया है बल्कि वहां की सियासत, खेल, विज्ञान और मेडिकल क्षेत्र में भी धाक जमाई है। हमें न केवल उनकी उपलिब्धयां पर गर्व होना चाहिए बल्कि इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि हम भारतीय ही दुनिया की सबसे विविधता युक्त और गतिशील समुदाय हैं।

​सिरिशा बांदला का जन्म 1987 में आंध्र प्रदेश में हुआ था। वह आंध्र प्रदेश के गुंटूर की रहने वाली हैं। सिरिशा के दादा कृषि विज्ञानी हैं। उसके पिता डा. मुरलीधर खुद एक वैज्ञानिक हैं। अंतरिक्ष की सैर करने वाली सिरिशा बांदला बचपन से ही उड़ान भरने के लिए तत्पर थी। उसका पालन-पोषण टैक्सास के ह्यूस्टन में हुआ है और इस कारण ही उन्होंने शुरूआत से ही राकेट और अंतरिक्ष यानों को भी करीब से देखा। कल्पना चावला के बाद सिरिशा बांदला भारत की दूसरी ऐसी महिला हैं जिनका जन्म भारत में हुआ और वे अंतरिक्ष के सफर पर गई। इसके साथ ही समूचे विश्व में अंतरिक्ष यात्रा पर जाने वाली वे चौथी भारतीय भी बन चुकी हैं। सिरिशा बांदला वर्जिन गैलेक्टिक कंपनी के गवर्नमेंट अफयर्स एंड रिसर्च आप्रेशन की उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। उसने इस पोस्ट के लिए कड़ी मेहनत की। कुछ समय पहले ही रिचर्ड ब्रैन्सन ने अंतरिक्ष की सैर पर जाने वाले 6 लोगों की टीम की घोषणा की थी जिसमें सिरिशा बांदला का नाम शामिल था। तब से ही वह चर्चा में आ गई थी। जब रविवार को 6 मिनट की उड़ान भर कर अंतरिक्ष यान वर्जिन आ​हर्बट लौटा तो अरबपति रिचर्ड ब्रैन्सन ने जमकर जश्न मनाया। उन्होंने सिरिशा को अपने कंधों पर बैठा लिया। यह दृश्य हर भारतीय के लिए स्मरणीय रहेंगे।
अब बात करते हैं समीर बनर्जी की। समीर के माता-पिता भी भारत के रहने वाले थे और 1980 के दशक में वह अमेरिका गए और फिर वहीं के होकर रह गए। समीर की टेनिस की रुचि को देखकर माता-पिता ने उसे प्रोत्साहित किया। हालांकि समीर इस वर्ष जूनियर फ्रैंच ओपन में कुछ खास कमाल नहीं कर पाए और उन्हें पहले दौर से ही बाहर होना पड़ा था लेकिन इसके बाद उसने हार नहीं मानी और विम्बलडन में लड़कों का जूनियर खिताब जीतकर वापसी की। युकी भांवरी जूनियर एकल खिताब जीतने वाले आखिरी भारतीय थे। उन्होंने 2009 में आस्ट्रेलियन ओपन में जीत हासिल की थी। सुमित नागल ने 2015 में वियतनाम के ली होआंग के साथ विम्बलडन लड़कों का युगल खिताब जीता था। वहीं रामनाथन कृष्णन 1954 जूनियर विम्बलडन चैंपियनशिप जीतकर जूनियर ग्रैंड स्लैम जीतने वाले पहले भारतीय थे। उनके बेटे रमेश कृष्णन ने 1970 जूनियर विम्बलडन और जूनियर फ्रैंच ओपन खिताब जीता था। ​लिएंडर पेस ने 1990 में जूनियर विम्बलडन और जूनियर यू ओपन जीता था। सवाल यह है कि बच्चों की रुचि को देखकर और उनकी प्रतिभा की परख कर उनकी ग्रूमिंग उसी के हिसाब से करनी पड़ती है। आधी पर​वरिश से ही प्रतिभाएं निखरकर सामने आती हैं। भारत में अभी तक अभिभावक अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए बच्चों पर मानसिक दबाव बनाए रखते हैं। सिरिशा और समीर भारतीय किशोरों के लिए आदर्श होने चाहिए और कुछ करने का जज्बा भी होना चाहिए। हमें दोनों पर गर्व है।


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