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झारखंड सरकार को झटका, आरक्षण की सीमा बढ़ाने का बिल राज्यपाल ने लौटाया

jantaserishta.com
19 April 2023 7:47 AM GMT
झारखंड सरकार को झटका, आरक्षण की सीमा बढ़ाने का बिल राज्यपाल ने लौटाया
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रांची (आईएएनएस)| झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने राज्य में ओबीसी, एससी, एसटी आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने से संबंधित बिल राज्य सरकार को वापस लौटा दिया है। उन्होंने राज्य सरकार की ओर से मंजूरी के लिए आए इस बिल पर भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से राय मांगी थी। अटॉर्नी जनरल ने अपने मंतव्य में आरक्षण बढ़ाने के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और कई अन्य न्यायादेशों के विपरीत बताया है। राज्यपाल ने इसी आधार पर सरकार को बिल वापस करते हुए उसकी समीक्षा करने का निर्देश दिया है।
हेमंत सोरेन सरकार ने बीते वर्ष 11 नवंबर को विधानसभा का एकदिवसीय विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने के अलावा राज्य में 1932 के खतियान पर आधारित डोमिसाइल पॉलिसी से जुड़े दो विधेयक एक साथ पारित कराया था। सरकार ने इन दोनों विधेयकों को ऐतिहासिक फैसला बताया था। ये दोनों विधेयक राज्यपाल के अनुमोदन के लिए भेजे गए थे। इसके साथ ही सरकार ने दोनों विधेयकों को राष्ट्रपति को भेजने का प्रस्ताव विधानसभा से पारित किया था, ताकि दोनों विधेयकों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जा सके।
राज्यपाल ने एक-एक कर दोनों विधेयक सरकार को लौटा दिए। डोमिसाइल पॉलिसी के विधेयक को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत बताते हुए पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने पहले ही लौटा दिया था। अब विशेष सत्र में पारित दूसरे विधेयक को भी राज्यपाल द्वारा लौटा दिया जाना राज्य सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
सनद रहे कि राज्य सरकार द्वारा पारित कराए गए 'झारखंड में पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण संशोधन विधेयक 2022' में पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को मिलने वाले आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का प्रस्ताव था। इसी तरह अनुसूचित जाति (एससी) को मिलने वाला आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का आरक्षण 26 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत करने का प्रावधान किया गया था। यह बिल मंजूर होने की सूरत में कुल मिलाकर राज्य में आरक्षण का प्रतिशत 50 से बढ़कर 67 प्रतिशत हो जाता।
राज्यपाल ने अटॉर्नी जनरल के मंतव्य का हवाला देते हुए बताया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में जातिगत आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित कर दी है। अटॉर्नी जनरल ने अपने मंतव्य में आरक्षण से संबंधित अन्य न्यायादेशों का भी जिक्र किया है।
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