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नदीं में नहीं गिरेगी सीवर की गाद, सीवर की गाद से बन रही हैं टाइल और ईंटें

jantaserishta.com
4 Nov 2022 10:30 AM GMT
नदीं में नहीं गिरेगी सीवर की गाद, सीवर की गाद से बन रही हैं टाइल और ईंटें
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नई दिल्ली (आईएएनएस)| दिल्ली में अब 2025 तक यमुना की सफाई पूरी करने के दावे किए जा रहे हैं। दरअसल राजधानी दिल्ली में सीवर गाद प्रबंधन एक बड़ी समस्या है। रोजाना सीवेज उपचार संयंत्रों से निकलने वाले अवशेष और तरल पदार्थ को गाद कहा जाता है। सीवेज से निकला गाद ठोस, अर्ध-ठोस या घोल अवशिष्ट सामग्री वाला होता है, जो सीवेज उपचार प्रक्रियाओं के दौरान बच जाते हैं। इस गाद से अब ईट बनाने की तकनीक शुरू की गई है।
दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) प्रतिदिन सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से कई टन गाद का उत्पादन करती है। इसे आधुनिक तकनीक का उपयोग करके संसाधन में परिवर्तित किया जाता है। कोंडली एसटीपी से निकलने वाले 200 टन गाद को गाद उपचार संयंत्र में 300 डिग्री सेल्सियस पर बर्न किया जाता है। इसके बाद इससे 20 टन राख निकलता है जिससे ईंटे तैयार होती हैं।
शुक्रवार को दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कोंडली स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और गाद उपचार संयंत्र का औचक निरीक्षण किया। इस दौरान सिसोदिया ने दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों को 45 एमडीजी क्षमता वाले एसटीपी को आधुनिक तकनीक से अपग्रेड कर सीवेज के पानी को बेहतर तरीके से शोधित करने के निर्देश दिए, ताकि गंदे पानी के बायोलॉजिकल ऑक्सीडेशन डिमांड (बीओडी) स्तर को शोधित कर 10 तक लाया जाए।
45 एमडीजी क्षमता वाले कोंडली एसटीपी को सीवेज के गंदे पानी को बेहतर तरीके से शोधित के लिए अपग्रेड किया जाएगा। दरअसल, सीवर के पानी की बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) 250 तक होती है। गंदे पानी को शोधित कर 10 तक लाया जाता है। इसके बाद नाले में डाल दिया जाता है। सीवर के शोधित पानी में दो बातों को देखा जाता है। पहला बीओडी और दूसरा सीओडी होता है। बीओडी ऑक्सीजन की मात्रा है जो एरोबिक स्थितियों के तहत कार्बनिक पदार्थों को विघटित करते हुए बैक्टीरिया द्वारा खपत होती है। वहीं, सीओडी पानी में कुल कार्बनिक पदार्थों के रासायनिक ऑक्सीकरण के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा है।
इसके अलावा टीएसएस (टीएसएस) भी पानी की गुणवत्ता जांचने का एक महत्वपूर्ण उपाय है। टोटल सस्पेंडेड सॉलिड (टीएसएस) सूक्ष्म कणों का वह भाग है जो पानी में निलंबन में रहता है। कोंडली में मौजूदा 45 एमडीजी क्षमता वाले एसटीपी में बीओडी, टीएसएस को 20 व 30 मिलीग्राम प्रति लीटर के हिसाब से सीवर के पानी को उपचारित करने के लिए डिजाइन किया गया था।
सिसोदिया ने कोंडली एसटीपी के परिसर के अंदर बनाए गए विशाल गाद उपचार संयंत्र का भी मुआयना किया। उपमुख्यमंत्री ने कहा कि इस 'गाद उपचार संयंत्र' में रोजाना 200 टन गाद (कीचड़) उपचार करने की क्षमता है। गाद उपचार संयंत्र गर्म हवा के ऑक्सीडाइजेशन की तकनीक पर आधारित है, जिसमें गर्म हवा का उपयोग करके गाद को सुखाया जाता है और बायोचार में परिवर्तित किया जाता है। यहां सीवेज से निकालने वाले गाद का उपचार किया जाता है और गाद के अवशेषों का उपयोग आगे ईंट और टाइल बनाने के लिए किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि डंपयार्ड में डाला गया गाद दुगर्ंध पैदा करता है, जो आसपास में रह रहे लोगों के लिए असुविधा का कारण बनता है और आसपास के निवासियों के लिए एक स्वच्छता का मुद्दा बन जाता है। इसके अलावा, बायोगैस के उत्पादन के बाद बचा हुआ अवशेष अक्सर लैंडफिल साइटों तक पहुंच जाता है, जिससे गाद के पानी का मिट्टी में रिसने का खतरा बढ़ जाता है। यह मिट्टी के प्राकृतिक छिद्रों को भरता है और बारिश के दौरान भूमिगत जलभृतों को रिचार्ज होने से भी रोकता है, इससे यह भूमि प्रदूषण का एक बड़ा कारक बन जाता है और साथ ही क्षेत्र के आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा भी होता है। ऐसे में इस समस्या के समाधान के लिए सरकार वन-स्टॉप सोल्यूशन निकाला है। जिसके तहत सरकार द्वारा कोंडली स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में प्रति दिन 200 टन गाद के उपचार की क्षमता के साथ 'गाद उपचार संयंत्र' का निर्माण किया गया है।
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