मणिपुर की दो स्त्रियों को भीड़ द्वारा नग्न घुमाने और यौन उत्पीड़न के वीडियो ने पूरे राष्ट्र को झकझोर कर रख दिया. केंद्र ने ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से वीडियो हटाने के लिए बोला है. गवर्नमेंट की मांग के उत्तर में, वीडियो साझा करने वाले कुछ खातों के ट्वीट हिंदुस्तान में रोक दिए गए हैं. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने का निवेदन करते हुए बोला कि वीडियो को हटाने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों के साथ कुछ लिंक साझा किए गए हैं क्योंकि इससे राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति और बाधित हो सकती है. केंद्र के पास सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 (ए) के अनुसार सोशल मीडिया कंपनियों को सामग्री हटाने के आदेश जारी करने की शक्ति है. ऐसे में आइए जानते हैं कि धारा 69 (ए) क्या है और विभिन्न अदालतों ने इसके बारे में क्या बोला है?
धारा 69 (ए) क्या है?
आईटी अधिनियम की धारा 69 गवर्नमेंट को इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी), दूरसंचार सेवा प्रदाताओं, वेब होस्टिंग सेवाओं, खोज इंजन, औनलाइन मार्केटप्लेस इत्यादि जैसे औनलाइन मध्यस्थों को सामग्री-अवरुद्ध आदेश जारी करने की अनुमति देती है. धारा के मुताबिक अवरुद्ध की जाने वाली जानकारी या सामग्री को हिंदुस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता या सार्वजनिक प्रबंध के लिए खतरा माना जाता है. यदि केंद्र या राज्य गवर्नमेंट इस बात से संतुष्ट है कि हिंदुस्तान की संप्रभुता या अखंडता, हिंदुस्तान की रक्षा, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक प्रबंध या रोकथाम के आधार पर सामग्री को अवरुद्ध करना आवश्यक और समीचीन है. इन अवरोधक आदेशों को नियंत्रित करने वाले नियमों के अनुसार, गवर्नमेंट द्वारा किया गया कोई भी निवेदन एक समीक्षा समिति को भेजा जाता है, जो फिर ये निर्देश जारी करती है.
धारा 69(ए) को लेकर उच्चतम न्यायालय ने क्या कहा?
श्रेया सिंघल बनाम हिंदुस्तान संघ 2015 के एक ऐतिहासिक निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 66ए को रद्द कर दिया, जिसमें संचार सेवाओं आदि के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश भेजने के लिए सजा का प्रावधान था. याचिका में धारा 69ए को भी चुनौती दी गई थी. सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2009, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इसे संवैधानिक रूप से वैध माना.
कर्नाटक HC ने इस पर कैसे निर्णय सुनाया?
धारा 69ए पिछले वर्ष जुलाई में फिर से कानूनी जांच के दायरे में थी जब ट्विटर ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के विरूद्ध कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया. इस वर्ष जुलाई में, कर्नाटक HC की एकल-न्यायाधीश पीठ ने याचिका खारिज कर दी और बोला कि केंद्र के पास ट्वीट्स को ब्लॉक करने की शक्ति है.