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नई कोरोना वैक्सीन्स पर काम कर रहे साइंटिस्ट, सामने आया बड़ा अपडेट

Nilmani Pal
12 April 2022 1:58 AM GMT
नई कोरोना वैक्सीन्स पर काम कर रहे साइंटिस्ट, सामने आया बड़ा अपडेट
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कोरोना वायरस की महामारी से जूझते हुए दुनिया को करीब 28 महीने हो गए हैं. न तो इसके वैरिएंट रुक रहे हैं, ना ही संक्रमण और न वायरस का प्रसार थम रहा. चीन के शंघाई से वुहान की तरह फिर नई लहर शुरू हुई है तो भारत से लेकर दुनिया के हर हिस्से में बढ़ रहे केसेज ने लोगों में फिर भय उत्पन्न करना शुरू कर दिया है. भारत में अधिकांश लोग वैक्सीन की दो डोज लगवा चुके हैं और अब तीसरी यानी बूस्टर डोज का सिलसिला शुरू हो चुका है. वहीं, दुनिया के कई देश अपने लोगों को तीसरी डोज पहले ही लगवा चुके हैं और अमेरिका, ब्रिटेन, इजरायल जैसे देश अब लोगों को वैक्सीन की चौथी डोज लगवा रहे हैं.

चिंता की बात ये है कि कोरोना वायरस के नए वैरिएंट XE ने मुंबई-गुजरात समेत भारत के कई इलाकों में दस्तक दे दी है तो ओमिक्रॉन वैरिएंट चीन समेत कई देशों में तबाही मचा रहा है. लोगों के सामने अब बड़ा सवाल ये है कि क्या कोरोना के नए-नए वैरिएंट पैदा होना कभी रुकेगा? वैक्सीन की एक-दो-तीन-चार कितनी डोज वायरस से सेफ्टी देने में पूरी तरह सफल होगी? मतलब हम लोगों को वैक्सीन की कितनी डोज लगवानी होगी?

कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए जब वैक्सीनेशन की शुरुआत हुई थी तो माना जा रहा था कि कुछ वैक्सीन की दो डोज तो सिंगल डोज वैक्सीन की एक खुराक ही पर्याप्त होगी लेकिन आज सवा दो साल बाद महामारी के ट्रेंड को देखकर साइंटिस्ट इस बात को लेकर अब एकमत नहीं हैं. पहले ये उम्मीद थी कि खसरा और पोलियो जैसी बीमारियों की तरह Corona वैक्सीन भी आजीवन प्रोटेक्शन देगी.

लेकिन जिन देशों में वैक्सीन की चौथी डोज लोगों को लग रही है वहां भी हेल्थ से जुड़ी संस्थाएं इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि इसके बाद और डोज नहीं लगेंगी. मतलब टिटनेस, डिप्थीरिया और कुकुरखांसी जैसी बीमारियों जिसमें बूस्टर डोज की जरूरत पड़ती है वैसे ही कोरोना में भी बूस्टर डोज का सिलसिला चल पड़ा है. वैसे तो, अमेरिकी हेल्थ संस्था CDC के अनुसार वैक्सीन की दो डोज प्लस बूस्टर डोज ही Fully vaccinated मानी जाएगी लेकिन वहां भी लोगों को चौथी डोज लगाई जा रही है. अमेरिका, ब्रिटेन, इजरायल जैसे देशों ने अपने लोगों को तेजी से वैक्सीन लगवाई वहां भी समय के साथ स्टडीज में ये बात सामने आई कि वैक्सीन से पैदा एंटीबॉडीज का असर कुछ महीनों में ही कम होने लगता है और जिस तरह नए-नए वैरिएंट सामने आ रहे हैं उनसे प्रोटेक्शन के लिए बूस्टर डोज जरूरी है. बूस्टर डोज न केवल बुजुर्गों या कोरोना संक्रमितों या हार्ट-लंग्स की बीमारियों के शिकार लोगों के लिए ही जरूरी नहीं बल्कि हर उम्र के लोगों के लिए उतना ही जरूरी है ताकि वायरस के नए संक्रमण से या गंभीर संक्रमण के हालात से बचाव हो सके.

इस बीच, दुनियाभर की कई दवा कंपनियां नेक्स्ट जेनरेशन कोरोना वैक्सीन विकसित करने पर काम कर रही हैं. यानी ऐसी वैक्सीन जो नए-नए आ रहे वायरस के वैरिएंट्स पर भी प्रभावी होंगी. दरअसल जब महामारी की शुरुआत हुई थी तो कंपनियों ने बहुत तेजी से वैक्सीन विकसित की और लोगों को लगनी भी शुरू हो गईं. ये वैक्सीन 50 से 80 फीसदी तक असरदार पाई गईं लेकिन अब इससे भी आगे वैक्सीन अपडेशन पर कंपनियां काम कर रही हैं यानी ऐसी वैक्सीन बनाने पर जो कई वैरिएंट्स पर कारगर होंगी. जैसे Novavax वैक्सीन का ट्रायल दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में और नए-नए वैरिएंट के सेल्स पर हुआ है. इस वैक्सीन में Matrix M नामक adjuvant का इस्तेमाल हुआ है. इससे वैक्सीन में लंबे समय तक काम करने वाला इम्युन सिस्टम विकसित होता है. अमेरिकी कंपनी novelty ने पहली बार इंफ्लूएंजा वैक्सीन में adjuvant का इस्तेमाल किया था. हालांकि, फ्लू के खिलाफ बने वैक्सीन में adjuvant के इस्तेमाल से अच्छे नतीजे फेज-3 के ट्रायल में देखने को मिला. पाया गया कि इसके इस्तेमाल से फ्लू के कई स्ट्रेन के खिलाफ क्रॉस-प्रोटेक्शन विकसित करने में सफलता मिली. इसी तरह पुराने वर्जन को अपडेट करके बने CORBEVAX वैक्सीन को भी नए वैरिएंट्स के लिए कारगर माना जा रहा है.

कई देशों में सेकेंड जेनरेशन वैक्सीन्स पर काम हो रहा है. अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ विन्सकोसिन, ड्यूक यूनिवर्सिटी, हॉस्पिटल ऑफ बोस्टन जैसी कई संस्थाओं में यूनिवर्सल वैक्सीन पर काम चल रहा है जो हर वैरिएंट पर कारगर हो सके. Spike Ferritin Nanoparticle (SpFN) का ट्रायल ओमिक्रॉन समेत अलग-अलग वैरिएंट्स पर किया गया. इसे विकसित करने वाली टीम का कहना है कि इस साल के आखिर तक या अगले साल तक सेकेंड जेनरेशन वैक्सीन तैयार हो जाएगी. एक्सपर्ट्स को नई खूबियों वाली इन वैक्सीन्स से उम्मीद है कि वे संक्रमण को कंट्रोल कर पुराने समय के हालात में हमें ले जाएंगी. इसी तरह अमेरिकी कंपनी CureVac और GlaxoSmithKline नेक्स्ट जेनरेशन mRNA वैक्सीन पर काम कर रही हैं. इनका चूहों पर सिंगल डोज प्रयोग किया गया जिससे उच्च स्तर की इम्युनिटी डेवलप होने का पता लगाया जा सका.

CureVac की अपडेटेड वैक्सीन CV2CoV में नए mRNA बैकबोन का इस्तेमाल किया गया है जिससे नए वैरिएंट्स के खिलाफ प्रोटेक्शन तो मिलेगी ही, अभी की वैक्सीन की तुलना में कम डोज की भी जरूरत पड़ेगी. डेनमार्क, ब्रिटेन और साउथ अफ्रीका में अलग-अलग वैरिएंट पर चूहों पर इनका ट्रायल किया गया. कम डोज में भी हाई इम्युनिटी का रिजल्ट हासिल हुआ. CureVac और GSK की सेकेंड जेनरेशन वैक्सीन के ट्रायल से उत्साहित वैज्ञानिक मानते हैं कि इससे जहां लोगों को हाई इम्युनिटी मिल सकेगी वहीं दुनिया में वैक्सीन शॉर्टेज की समस्या से निजात दिलाने में भी मदद मिलेगी. स्विस बायोटेक कंपनी की नेक्स्ट जेन वैक्सीन MTX-COVAB ट्रायल में जहां कोरोना के ओरिजिनल वैरिएंट पर प्रभावी पाई गई वहीं ब्रिटेन में मिले नए वैरिएंट पर भी ये कारगर मिली. एक्सपर्ट बताते हैं कि 'हम इन नई तरह की वैक्सीन को विकसित करने के लिए उस तकनीक पर काम कर रहे हैं जिसमें वैक्सीन से मिली इम्युनिटी शरीर में एक्टिव एंटीबॉडिज की तुरंत पहचान करके उनके खिलाफ स्पाइक प्रोटीन विकसित कर सके. इस तरह यह नए-नए वैरिएंट पर कारगर होगी. क्योंकि वायरस बार-बार म्यूटेट होगा तो उनके लक्षणों को पहचानने की क्षमता वाली वैक्सीन ही उनपर कारगर हो सकेगी.'

नेक्स्ट जेनरेशन वैक्सीन का असर ये है कि इससे जहां बूस्टर डोज का दबाव कम होगा वहीं महामारी से मुकाबले के लिए लोगों के शरीर में लंबे समय तक एंटीबॉडिज भी एक्टिव रहेंगी. ये इसलिए भी जरूरी होंगी कि ऐसे वक्त में जब नए-नए वैरिएंट्स से संक्रमित लोग चारों ओर हमारे लिए खतरा बनेंगे तो जेन-नेक्स्ट वैक्सीन से बनी एंटीबॉडिज हमें उनसे प्रोटेक्शन देंगी. कोरोना वैक्सीनेशन में एक फैक्टर ये भी है कि वैक्सीन कहां लगाई जा रही है? अगर हाथ में इंजेक्शन के जरिए कोरोना वैक्सीन लगाई जा रही है तो खून में एंटीबॉडिज की हाई लेवल पैदा करने में कारगर होगी. ये लंबे समय तक प्रभावी भी रहेगा. हालांकि, अगर नाक के जरिए वैक्सीन डाली जा रही है यानी नैसल वैक्सीन तो वह उन वैसेल्स पर ज्यादा कारगर होंगी जहां कोरोना वायरस सबसे पहले असर करता है यानी नाक के वैसेल्स पर. हालांकि, बाहरी सतह पर इस्तेमाल होने के कारण इससे उत्पन्न एंटीबॉडिज इंजेक्शन के मुकाबले कम समय तक प्रभावी रहेगी. इसलिए नैसेल वैक्सीन विकसित कर रहे साइंटिस्ट इसे फुली वैक्सीनेटेड लोगों के लिए बूस्टर डोज के रूप में ज्यादा कारगर मानते हैं. बूस्टर डोज के रूप में इसके इस्तेमाल से बार-बार इंजेक्शन लगवाने के झंझट से भी लोगों को मुक्ति मिलेगी.

वैक्सीन अपडेशन के जरिए साइंटिस्ट उन कमियों को दूर कर रहे हैं जो जल्दबाजी में विकास के क्रम में शुरुआती दौर में रह गई थीं. यह न केवल शरीर में लंबे समय के लिए एंटीबॉडिज डेवलप करेंगी. वहीं नए-नए वैरिएंट्स पर प्रभावी होने के साथ-साथ तेज संक्रमण को थामने में भी ये मददगार होंगी. मोलेक्यूलर बायोलॉजिस्ट बताते हैं कि 'शुरुआती वैक्सीन डोज से जहां हमारे शरीर में कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता विकसित हुई और संक्रमण रोकने और मौतों के आंकड़े को कम करने में मदद मिली वहीं नेक्स्ट जेनरेशन वैक्सीन की अब हमें जरूरत है जो नए वैरिएंट्स पर कारगर हों.'

बायोलॉजिस्ट मानते हैं कि ओमिक्रॉन न तो अंतिम वैरिएंट होगा और ना ही कोरोना जानवरों से इंसान में फैलने वाला अंतिम वायरस. ये महामारी थम भी गई तो कोरोना वायरस के नए रूप नई महामारी को जन्म दे देंगे. इसलिए वैक्सीन निर्माता अब यूनिवर्सल वैक्सीन पर काम कर रहे हैं जो कोरोना वायरस के हर रूप पर कारगर हो. मोलेक्यूलर बायोलॉजिस्ट ये भी मानते हैं कि अफ्रीका जैसे इलाके जहां कम लोगों को वैक्सीन लगी हैं वहीं से नए-नए वैरिएंट पैदा क्यों हो रहे हैं. इसका कारण जाहिर तौर पर वैक्सीन से शरीर में पैदा एंटीबाडिज से मिले प्रोटेक्शन का अंतर है. इसलिए जरूरी है कि वायरस के बदलते रूप के अनुसार उससे मुकाबले की तैयारी भी हो और नेक्स्ट जेनरेशन वैक्सीन कोरोना से जंग में इसी चुनौती का जवाब साबित हो सकती हैं.


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