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SC ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक,बोले- 'कोरोना से मौत के डर से नहीं मिल सकती जमानत'
Deepa Sahu
25 May 2021 11:45 AM GMT
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सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर किसी अपराधी को कोरोना (Coronavirus) और उससे मौत होने का डर सता रहा है तो उसे अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) दी जा सकती है. हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति को जेल भेजने पर कोरोना से मौत होने के डर की वजह से अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती, इसके लिए अपराध के स्वरूप और गंभीरता पर विचार करना जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत पर फैसला मामले की गंभीरता के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि कोरोना संक्रमण होने से मौत के डर के आधार पर. कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के इस आदेश को अन्य अदालतों की तरफ से मिसाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. दरअसल, पिछले हफ्ते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि जेलों में कैदियों की ज्यादा संख्या होने और संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी के चलते कैदियों को अग्रिम जमानत दी जा सकती है. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की टिप्पणी पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में की गई टिप्पणी पर रोक लगा दी है, हालांकि हाईकोर्ट की तरफ से आरोपी को दी गई जमानत पर रोक नहीं लगाई है. मामले पर सुनवाई करते हुए जस्टिस विनीत सरन और बीआर गवई की पीठ ने कहा, 'यूपी सरकार को हाईकोर्ट की टिप्पणियों से परेशानी है. ये एकतरफा टिप्पणी है कि सभी लोगों को अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए, इसलिए हम इस पर नोटिस जारी करेंगे, लेकिन स्टे नहीं लगा रहे हैं.' दरअसल हाईकोर्ट ने प्रतीक जैन, जो कि एक ठग है और जिसके खिलाफ 130 मामले दर्ज हैं, जनवरी 2022 तक जमानत पर रिहा करने की अनुमति दे दी, जिसके बाद अग्रिम जमानत पर बहस शुरू हो गई.
अपने आदेश में हाईकोर्ट ने की थी ये टिप्पणी
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जिस तरह कोरोना के मामलों में तेजी देखी जा रही है, जेलों में भीड़भाड़ को देखते हुए मौत की आशंका के आधार पर अग्रिम जमानत दी जा सकती है. हाईकोर्ट ने कहा कि 'ऐसे समय में किसी आरोपी को जेल भेजना उसकी जान के लिए जोखिम भरा हो सकता है. इसके अलावा, पुलिसकर्मियों, जेल कर्मचारियों और अन्य लोगों के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है. ऐसे में आरोपियों को एक निश्चित अवधि के लिए अग्रिम जमानत दी जा सकती है'.
हाईकोर्ट ने किया था सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का जिक्र
इसके लिए, हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का भी जिक्र किया था, जिसमें कहा गया था कि 'भारत की जेलें भरी हुई हैं, ऐसे में कैदियों और पुलिसकर्मियों के स्वास्थ्य और जीवन को ध्यान में रखते हुए जेलों में भीड़भाड़ को कम किए जाने की जरूरत है, जिसके लिए ऐसा फैसला लिया जाना चाहिए'. चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उन कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया था, जिन्हें पिछले साल जमानत या पैरोल दी गई थी. हालांकि, ये फैसला उन कैदियों के अपराधों की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए लिया गया था.
मुकदमा चलने के लिए आरोपियों का जिंदा रहना जरूरी: हाईकोर्ट
इसी फैसले का जिक्र करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि 'हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि आरोपियों पर मुकदमा तो केवल तभी चलाया जा सकेगा जब वे जीवित रहेंगे. महामारी के दौरान भी उन्हें जेल में रखने से इस बात की आशंका बढ़ जाएगी कि ट्रायल शुरू होने से पहले ही उन आरोपियों की मौत हो जाए'. मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में मंगलवार सुबह कोरोना संक्रमण के 4000 नए मामले दर्ज किए गए हैं, साथ ही यहां एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 77,000 के करीब पहुंच गई है.
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