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इतना भव्य…अयोध्या की स्पेस से ली गई इमेज सामने आई, अंतरिक्ष से कैसा दिखता है दुल्हन की तरह सजा राम मंदिर?

21 Jan 2024 2:28 AM GMT
इतना भव्य…अयोध्या की स्पेस से ली गई इमेज सामने आई, अंतरिक्ष से कैसा दिखता है दुल्हन की तरह सजा राम मंदिर?
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नई दिल्ली: अयोध्या में कल यानी 22 जनवरी 2024 को श्रीराम मंदिर में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद यहां मौजूद रहेंगे. उससे पहले ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अंतरिक्ष से करवा दिया राम मंदिर का भव्य दर्शन. अंतरिक्ष से पहली बार श्रीराम मंदिर और अयोध्या की …

नई दिल्ली: अयोध्या में कल यानी 22 जनवरी 2024 को श्रीराम मंदिर में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद यहां मौजूद रहेंगे. उससे पहले ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अंतरिक्ष से करवा दिया राम मंदिर का भव्य दर्शन. अंतरिक्ष से पहली बार श्रीराम मंदिर और अयोध्या की तस्वीर ली है.

इस तस्वीर के लिए इसरो ने भारतीय रिमोट सेंसिंग सीरीज के एक स्वदेशी सैटेलाइट का इस्तेमाल किया है. इस तस्वीर में सिर्फ श्रीराम मंदिर ही नहीं बल्कि अयोध्या का बड़ा हिस्सा दिख रहा है. नीचे की रेलवे स्टेशन दिख रहा है. राम मंदिर के दाहिने की तरफ दशर महल दिख रहा है. ऊपर बाएं तरफ सरयू नदीं और उसका बाढ़ क्षेत्र दिख रहा है, जिसे कछार भी कहते हैं.

आपको हैरानी होगी यह जानकर की यह तस्वीर एक महीने पहले यानी 16 दिसंबर 2023 को ली गई थी. उसके बाद से अयोध्या का मौसम बदलता चला गया है. काफी ज्यादा कोहरा होने की वजह से सैटेलाइट दोबारा तस्वीर नहीं ले पाई. भारत के पास अंतरिक्ष में इस समय 50 से ज्यादा सैटेलाइट्स मौजूद है. जिनका रेजोल्यूशन एक मीटर से कम है.

यानी ये सैटेलाइट इतने ताकतवर हैं कि एक मीटर से कम आकार की वस्तु की भी स्पष्ट तस्वीर ले सकते हैं. इन तस्वीरों को प्रोसेस और संभालने का काम हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) में किया जाता है. तस्वीर भी वहीं से जारी होती है. सिर्फ इतना ही नहीं मंदिर के निर्माण में ISRO की तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.

आप जानना चाहेंगे कि कैसे? असल में मंदिर का निर्माण करने वाली कंपनी लार्सेन एंड टुर्बो (L&T) ने ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) आधारित को-ऑर्डिनेट्स हासिल किए. ताकि मंदिर परिसर की सही जानकारी मिल सके. ये कॉर्डिनेट्स 1-3 सेंटीमीटर तक सटीक थे. इस काम में इसरो के स्वदेशी जीपीएस यानी NavIC यानी नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टीलेशन का इस्तेमाल किया गया. इसके जरिए प्राप्त सिग्नल से ही नक्शा और कॉर्डिनेट्स बनाए गए हैं.

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