दिल्ली। जैसे निजिंस्की अपने नृत्य के दौरान धीरे धीरे नीचे उतरता था अर्थात वह नृत्य में उछलने के बाद सामान्य गति से नीचे नहीं उतरता था। मंच पर ठीक वैसे ही बिरजू महाराज अपनी अभिव्यक्ति में कभी बाहर धीरे और कभी अतिशय गतिशीलता से व्यक्त होते थे। निजिंस्की से किसी ने पूछा कि आप ऐसा कैसे कर लेते हैं तो उसने कहा था कि मैं ऐसा करता नहीं हूँ, ऐसा हो जाता है। अपनी नर्तकी मुद्राओं और संवेगों और भावोद्रगों के बारे में बिरजू महाराज ऐसा ही कुछ कहते थे और कहते थे नृत्य शरीर में उतरता है। इसलिए भी कि नृत्य मनुष्य की पहली आंगिक अभिव्यक्ति है यानि मनुष्य ने जब भी मन में झाँका तो उसे रिदम हासिल हुई और उसने जब रिदम को बताना चाहा होगा तो वह नृत्य करने लगा होगा।
बृजमोहन नाथ मिश्रा लखनऊ कालका बिंदादीन कत्थक घराने से थे। वे कत्थक नर्तकों के महाराज परिवार के वंशज थे। उनके दो चाचा शम्भू महाराज और लच्छू महाराज और उनके पिता और गुरु एखन महाराज शामिल हैं। कलाश्रम दिल्ली खोलने से पहले वे भारतीय कला केंद्र में वर्षों प्रमुख रहे। कत्थक की अत्यंत गौरवशाली परम्परा की खुशबू दुनिया भर में फैलाने का श्रेय बिरजू महाराज को ही है। कत्थक की ड्योढ़ी आज उनके अनंत में विलीन होने से सूनी हो गयी। हालांकि वे निजी चर्चाओं में कहा करते थे कि नृत्य मनुष्य की आत्यंतिक अभिव्यक्ति है। इसलिए जब तक मनुष्य रहेगा नृत्य रहेगा। मैं रहूँ न रहूँ। आज का दिन सदैव मानव इतिहास में कत्थक की इस रिक्ति को न भर पाने के लिए याद किया जायेगा।