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डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड लो पर पहुंचा रुपया, अर्थव्‍यवस्‍था और आम आदमी पर क्‍या होगा असर, कैसे खत्‍म होगी यह समस्‍या?

HARRY
29 Jun 2022 7:59 AM GMT
डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड लो पर पहुंचा रुपया, अर्थव्‍यवस्‍था और आम आदमी पर क्‍या होगा असर, कैसे खत्‍म होगी यह समस्‍या?
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नई दिल्‍ली. भारतीय बाजार से विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली से बुधवार को रुपया डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड लो स्‍तर पर पहुंच गया. आज सुबह एक डॉलर की कीमत भारतीय मुद्रा में 78.96 रुपये पहुंच गई, जो आदमी से लेकर अर्थव्‍यवसस्‍था तक के लिए मुश्किल पैदा करने वाला है.

दरअसल, रिजर्व बैंक ने रुपये की गिरावट को थामने के लिए कदम उठाए लेकिन ग्‍लोबल मार्केट में जारी उठापटक और घरेलू बाजार से विदेशी निवेशकों की लगातार निकासी से स्थिति पर काबू नहीं पाया जा सका. डॉलर के मुकाबले रुपये में इस महीने ही 1.87 फीसदी की गिरावट आ चुकी है, जबकि साल 2022 में अब तक भारतीय मुद्रा 6.28 फीसदी टूट चुकी है. एक्‍सपर्ट अभी 79.50 तक पहुंचने का अनुमान लगा रहे हैं. मंगलवार को रुपया 48 पैसे टूटा था, जबकि आज 11 पैसे कमजोर हुआ है.

क्‍या है गिरावट का प्रमुख कारण

रुपये में गिरावट का सबसे बड़ा कारण विदेशी निवेशकों की ताबड़तोड़ निकासी है. भारतीय शेयर बाजार से ही विदेशी संस्‍थागत निवेशकों ने जून में करीब 50 हजार करोड़ रुपये की निकासी की है, जबकि 2022 में अब तक 2.25 लाख करोड़ रुपये भारतीय बाजार से निकाल लिए. इसके अलावा पी-नोट के जरिये विदेशी निवेशकों के पैसे लगाने में भी कमी आई. अमेरिकी फेड रिजर्व ने अपनी ब्‍याज दरें बढ़ा दी जिसके बाद ग्‍लोबल मार्केट में डॉलर की मांग बढ़ गई और यह 20 साल के मजबूत स्थिति में पहुंच गया.

इतना ही नहीं रूस-यूक्रेन युद्ध व अन्‍य भूराजनैतिक कारणों से ग्‍लोबल मार्केट में अनिश्चितता का माहौल है और ऐसे में सभी निवेशक डॉलर की तरफ भाग रहे हैं. इसका सीधा असर रुपये की कमजोरी पर हो रहा. इसके अलावा कच्‍चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से भी रुपये पर दबाव बना हुआ है.

कहां और किस पर होगा असर

-सबसे पहले तो रुपया गिरने से आयात महंगा हो जाएगा, क्‍योंकि भारतीय आयातकों को अब डॉलर के मुकाबले ज्‍यादा रुपया खर्च करना पड़ेगा.

-भारत अपनी कुल खपत का 85 फीसदी कच्‍चा तेल आयात करता है, जो डॉलर महंगा होने और दबाव डालेगा.

-ईंधन महंगा हुआ तो माल ढुलाई की लागत बढ़ जाएगी जिससे रोजमर्रा की वस्‍तुओं के दाम बढ़ेंगे और आम आदमी पर महंगाई का बोझ भी और बढ़ जाएगा.

-विदेशों में पढ़ाई करने वालों पर भी इसका असर पड़ेगा और उनका खर्च बढ़ जाएगा, क्‍योंकि अब डॉलर के मुकाबले उन्‍हें ज्‍यादा रुपये खर्च करने पड़ेंगे.

-चालू खाते का घाटा बढ़ जाएगा, जो पहले ही 40 अरब डॉलर पहुंच गया है. पिछले साल समान अवधि में यह 55 अरब डॉलर सरप्‍लस था.
भारतीय बाजार से विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली से बुधवार को रुपया डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड लो स्‍तर पर पहुंच गया. आज सुबह एक डॉलर की कीमत भारतीय मुद्रा में 78.96 रुपये पहुंच गई, जो आदमी से लेकर अर्थव्‍यवसस्‍था तक के लिए मुश्किल पैदा करने वाला है.

दरअसल, रिजर्व बैंक ने रुपये की गिरावट को थामने के लिए कदम उठाए लेकिन ग्‍लोबल मार्केट में जारी उठापटक और घरेलू बाजार से विदेशी निवेशकों की लगातार निकासी से स्थिति पर काबू नहीं पाया जा सका. डॉलर के मुकाबले रुपये में इस महीने ही 1.87 फीसदी की गिरावट आ चुकी है, जबकि साल 2022 में अब तक भारतीय मुद्रा 6.28 फीसदी टूट चुकी है. एक्‍सपर्ट अभी 79.50 तक पहुंचने का अनुमान लगा रहे हैं. मंगलवार को रुपया 48 पैसे टूटा था, जबकि आज 11 पैसे कमजोर हुआ है.

क्‍या है गिरावट का प्रमुख कारण
रुपये में गिरावट का सबसे बड़ा कारण विदेशी निवेशकों की ताबड़तोड़ निकासी है. भारतीय शेयर बाजार से ही विदेशी संस्‍थागत निवेशकों ने जून में करीब 50 हजार करोड़ रुपये की निकासी की है, जबकि 2022 में अब तक 2.25 लाख करोड़ रुपये भारतीय बाजार से निकाल लिए. इसके अलावा पी-नोट के जरिये विदेशी निवेशकों के पैसे लगाने में भी कमी आई. अमेरिकी फेड रिजर्व ने अपनी ब्‍याज दरें बढ़ा दी जिसके बाद ग्‍लोबल मार्केट में डॉलर की मांग बढ़ गई और यह 20 साल के मजबूत स्थिति में पहुंच गया.

इतना ही नहीं रूस-यूक्रेन युद्ध व अन्‍य भूराजनैतिक कारणों से ग्‍लोबल मार्केट में अनिश्चितता का माहौल है और ऐसे में सभी निवेशक डॉलर की तरफ भाग रहे हैं. इसका सीधा असर रुपये की कमजोरी पर हो रहा. इसके अलावा कच्‍चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से भी रुपये पर दबाव बना हुआ है.

कहां और किस पर होगा असर
-सबसे पहले तो रुपया गिरने से आयात महंगा हो जाएगा, क्‍योंकि भारतीय आयातकों को अब डॉलर के मुकाबले ज्‍यादा रुपया खर्च करना पड़ेगा.
-भारत अपनी कुल खपत का 85 फीसदी कच्‍चा तेल आयात करता है, जो डॉलर महंगा होने और दबाव डालेगा.
-ईंधन महंगा हुआ तो माल ढुलाई की लागत बढ़ जाएगी जिससे रोजमर्रा की वस्‍तुओं के दाम बढ़ेंगे और आम आदमी पर महंगाई का बोझ भी और बढ़ जाएगा.
-विदेशों में पढ़ाई करने वालों पर भी इसका असर पड़ेगा और उनका खर्च बढ़ जाएगा, क्‍योंकि अब डॉलर के मुकाबले उन्‍हें ज्‍यादा रुपये खर्च करने पड़ेंगे.
-चालू खाते का घाटा बढ़ जाएगा, जो पहले ही 40 अरब डॉलर पहुंच गया है. पिछले साल समान अवधि में यह 55 अरब डॉलर सरप्‍लस था.


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