
वीर सावरकर पर पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उनसे जुड़ी कई बातें कहीं. संघ प्रमुख ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से ही वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चली है. आज के समय में वीर सावरकर के बारे में वास्तव में सही जानकारी का अभाव है. अपने संबोधन में मोहन भागवत ने कहा कि अभी संघ और वीर सावरकर पर टीका-टिप्पणी हो रही है पर आने वाले समय में विवेकानंद, दयानंद और स्वामी अरविंद... का नंबर आएगा.
उन्होंने कहा कि भारत को जोड़ने से जिसकी दुकान बंद हो जाए उनको अच्छा नहीं लगता है. ऐसे जोड़ने वाले विचार को धर्म माना जाता है, लेकिन ये धर्म जोड़ने वाला है ना की पूजा-पद्धति के आधार पर बांटने वाला. इसी को मानवता या संपूर्ण विश्व की एकता कहा जाता है. वीर सावरकर ने इसी को हिंदुत्व कहा. इतने वर्षों के बाद अब हम जब परिस्थिति को देखते हैं तो ध्यान में आता है कि जोर से बोलने की आवश्यकता तब थी, सब बोलते तो शायद विभाजन नहीं होता. वीर सावरकर का हिन्दुत्व, विवेकानंद का हिन्दुत्व ऐसा बोलने का फैशन हो गया, हिन्दुत्व एक ही है, वो पहले से है और आखिर तक वो ही रहेगा.
मोहन भागवत ने कहा कि सैयद अहमद को मुस्लिम असंतोष का जनक कहा जाता है. इतिहास में दारा शिकोह, अकबर हुए पर औरंगजेब भी हुए जिन्होंने चक्का उल्टा घुमाया. अशफाक उल्लाह खान ने कहा था कि मरने के बाद अगला जन्म भारत में लूंगा. ऐसे लोगों के नाम गूंजने चाहिए.
सावरकर का युग आ रहा है...
अपने संबोधन के दौरान संघ प्रमुख ने कहा कि संसद में क्या नहीं होता बस मारपीट नहीं होती, बाकि सब होता है पर बाहर आकर सब साथ में चाय पीते है और एक दूसरे के यहां शादी में जाते हैं. यहां सब समान हैं इसलिए अलगाव या विशेषाधिकार की बात ना करो. सुरक्षा नीति चलेगा, सुरक्षा की बात चलेगी पर राष्ट्रनीति के पीछे-पीछे. कुछ लोग मानते हैं कि 2014 के बाद सावरकर का युग आ रहा है तो ये सही है. सबकी जिम्मेदारी और भागीदारी होगी. यही हिंदुत्व है. हम एक हो रहे हैं ये अच्छी बात, पर इसका मतलब ये नहीं कि हम अलग हैं.