धर्म संसद पर RSS चीफ मोहन भागवत ने जताई असहमति, कहा -संघ का विश्वास लोगों को बांटने में नहीं
दिल्ली। धर्म संसद के बैनर तले आयोजित कार्यक्रमों में कथित तौर पर हिंदुत्व की बातों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने असहमति जताई है. मोहन भागवत ने कहा है कि धर्म संसद से निकली बातें हिंदू और हिंदुत्व की परिभाषा के अनुसार नहीं थीं. अगर कोई बात किसी समय गुस्से में कही जाए तो वह हिंदुत्व नहीं है. मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस और हिंदुत्व में विश्वास रखने वाले लोग इस तरह की बातों पर भरोसा नहीं करते हैं. दरअसल, पिछले साल दिसंबर महीने में हरिद्वार में हुई धर्म संसद में मुसलमानों को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया गया था जबकि रायपुर में हुई धर्म संसद में महात्मा गांधी को लेकर अमर्यादित टिप्पणी की गई थी.
संघ प्रमुख ने कहा कि वीर सावरकर ने हिंदू समुदाय की एकता और उसे संगठित करने की बात कही थी लेकिन उन्होंने यह बात भगवद गीता का संदर्भ लेते हुए कही थी, किसी को खत्म करने या नुकसान पहुंचाने के परिप्रेक्ष्य में नहीं.
क्या भारत 'हिंदू राष्ट्र' बनने की राह पर है. इस सवाल पर मोहन भागवत ने कहा- यह हिंदू राष्ट्र बनाने के बारे में नहीं है. भले ही इसे कोई स्वीकार करें या न करें. यह वही (हिंदू राष्ट्र) है. हमारे संविधान की प्रकृति हिंदुत्व वाली है. यह वैसी ही है जैसी कि देश की अखंडता की भावना. राष्ट्रीय अखंडता के लिए सामाजिक समानता कदापि जरूरी नहीं है. भिन्नता का मतलब अलगाव नहीं होता. मोहन भागवत ने स्पष्ट रूप से कहा कि संघ का विश्वास लोगों को बांटने में नहीं बल्कि उनके मतभेदों को दूर करने में है. इससे पैदा होने वाली एकता ज्यादा मजबूत होगी. यह कार्य हम हिंदुत्व के जरिए करना चाहते हैं.
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, 'यहां तक कि वीर सावरकर ने कहा था कि अगर हिंदू समुदाय एकजुट और संगठित हो जाता है तो वह भगवद् गीता के बारे में बोलेगा न कि किसी को खत्म करने या उसे नुकसान पहुंचाने के बारे में बोलेगा.'