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न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान | DEMO PIC
नई दिल्ली: फर्ज कीजिए कि आप विमान में बैठे हों और आपको कोई बता दे कि विमान का पायलट सो रहा है तो आप पर क्या बीतेगी। एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय एयरलाइन में काम करने वाले ज्यादातर पायलट नींद मार लेते हैं और अपने साथी क्रू मेंबर को इस बात की जानकारी भी नहीं देते हैं। इस सर्वे में 542 पायलटों को शामिल किया गया था जिनमें से 358 ने यह बात स्वीकार की है। उन्होंने कहा है कि थकान की वजह से वह कॉकपिट में सो जाते हैं।
यह सर्वे एक एनजीओ 'सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन' ने करवाया जिसमें घरेलू उड़ान के लिए काम करने वाले पायलटों को शामिल किया गया। आम तौर पर ये पायलट 4 घंटे के लिए उड़ान भरते हैं। उनकी प्रतिक्रिया के मुताबिक 54 प्रतिशत पायलटों को दिन में सोने की जबरदस्त आदत है। वहीं 41 फीसदी वैसे हैं जो कि कभी-कभार सो जाते हैं।
इस स्टडी में दावा किया गया है कि विमान दुर्घटना के पीछे मुख्य वजह भी यही होती है। बहुत सारे पायलट अपने जॉब के प्रेशर के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं। आजकल यह ट्रेंड देखा जा रहा है कि एयरलाइन्स कम वर्कफोर्स में काम करवाना चाहती हैं। ऐसे में पायलटों के लिए काम के घंटे भी बढ़ गए हैं।
पहले पायलटों को हफ्तेभर में 30 घंटे की उड़ान भरनी होती थी। हालांकि अब प्रेशर इतना ज्यादा है कि हफ्तेभर बैक टु बैक फ्लाइट ले जानी पड़ती हैं। ऐसे में पायलट ज्यादा तनाव और थकान में रहते हैं। अगर कोई पायलट बैक टु बैक मॉर्निंग फ्लाइट लेकर जाता है तो वह अकसर कॉकपिट में सो जाता है। स्टडी में यह भी कहा गया है कि सुबह की फ्लाइट ले जाने के लिए पायलट को 2 बजे रात में ही जागना पड़ता है।
सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन के संस्थापक कैप्टन अमित सिंह ने कहा, सेफ्टी कल्चर को सुधारने की जरूरत है। यह एक सामान्य बात है कि वर्कफोर्स कम करके सुरक्षा केसाथ समझौता नहीं किया जा सकता है। डीजीसीए ने फटिग रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम को अब तक अनिवार्य नहीं किया है। डीजीसीए ने जो नियम बनाए भी हैं उनका भी पालन एयरलाइन्स नहीं करती हैं।
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