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NIA जांच में खुलासा: हूप, थ्रेमा और रॉकेट चैट जैसे मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं आतंकी

Deepa Sahu
14 Aug 2021 12:47 PM GMT
NIA जांच में खुलासा: हूप, थ्रेमा और रॉकेट चैट जैसे मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं आतंकी
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केरल इस्लामिक स्टेट (आईएस) मॉड्यूल मामले की जांच कर रही।

केरल इस्लामिक स्टेट (आईएस) मॉड्यूल मामले की जांच कर रही। केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए ने खुलासा किया है कि भारत के जम्मू-कश्मीर में छिपे बैठे आतंकी पकड़े जाने के डर से हूप और रॉकेट चैट जैसे अधिक सुरक्षित मैसेजिंग एप्लीकेशन का इस्तेमाल कर रहे हैं. एनआईए की जांच में सामने आया कि मोहम्मद अमीन उर्फ ​​अबू याहया और उसके सहयोगियों की आतंकवादी गतिविधियों के लिए इन अतिसुरक्षित मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करते हैं.

मोबाइल ऐप के जरिए ये आतंकी ISIS की विचारधारा के प्रचार-प्रसार और नए दहशतगर्दों के रिक्रूटमेंट के लिए अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अलग-अलग ISIS प्रचार चैनल चला रहे हैं. जांच के दौरान ये पाया गया कि अमीन संचार के लिए हूप और रॉकेट चैट का इस्तेमाल कर रहा था. हूप ऐप में दूसरे सदस्य के साथ शेयर किए गए मैसेज अपने आप डिलीट हो जाते हैं. यहां तक कि रॉकेट चैट में यूजर को अपना मोबाइल नंबर या अपनी ईमेल आईडी सत्यापित करने की जरूरत नहीं होती है. एनआईए ने इस साल मार्च में तीन आरोपी व्यक्तियों अमीन, रहीस रशीद और मुशाब अनवर को गिरफ्तार किया था.
थ्रेमा के मैसेज या कॉल का पता लगाना मुश्किल
इससे पहले एनआईए ने आईएस इराक और सीरिया खुरासान प्रांत (आईएसआईएस-केपी) मामले की जांच के दौरान पाया था कि गिरफ्तार आरोपी जहांजैब सामी वानी और उसकी पत्नी हिना बशीर और बेंगलुरु के डॉक्टर अब्दुर रहमान उर्फ ​​'डॉ ब्रेव' थ्रेमा ऐप का इस्तेमाल कर रहा था. थ्रेमा एक सुरक्षित मैसेजिंग प्लेटफॉर्म माना जाता है. थ्रेमा के मैसेज या कॉल का पता लगाना मुश्किल है.
स्विट्जरलैंड में बना थ्रेमा ऐप आईफोन और एंड्रॉइड स्मार्टफोन के लिए एक ओपन-सोर्स एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड इंस्टेंट मैसेजिंग एप्लीकेशन है. थ्रेमा पर भी यूजर को अकाउंट बनाने के लिए ईमेल पता या फोन नंबर दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती है. हालांकि ये पहली बार नहीं है जब एनआईए को आईएस आतंकवादियों के साथ-साथ हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा और अल कायदा के आतंकवादियों की तरफ से इस्तेमाल किए जाने वाले सुरक्षित मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का सामना करना पड़ा है.
फरवरी 2019 में हुए पुलवामा आतंकी हमले के मामले की जांच के दौरान भी एनआईए और अन्य खुफिया एजेंसियों ने अपनी जांच में पहले पाया था कि जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी पीयर-टू-पीयर सॉफ्टवेयर सेवा का उपयोग कर रहे थे या भारत और विदेशों में अपने साथियों के साथ बात करने के लिए एक समान मोबाइल एप्लीकेशन का इस्तेमाल करते हैं.
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