खुलासा: पकड़े गए आरोपी के भाई ने जनता से रिश्ता को बताया कालाबाजारी का सच
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में इस्तेमाल की जा रही रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी के लिए अस्पतालों की भूमिका की जांच की जानी चाहिए। चूंकि सरकार सीधे अस्पतालों को इंजेक्शन मुहैया करा रही है और दवा दुकानों में इसकी बिक्री पर रोक लगा दी गई है बावजूद अगर इसकी कालाबाजारी हो रही है और लोग बाहरी लोगों से 25-30 हजार में इंजेक्शन खरीदने मजबूर हैं, ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि आखिर अस्पताल और दवा दुकानों से बाहर महंगी कीमत पर इंजेक्शन बेचने वालों को यह उपलब्ध कहां से हो रही है। साफ है कि अस्पताल प्रबंधन या उसके कर्मचारियों के माध्यम से ही रेमडेसिविर की कालाबाजारी हो रही है। पिछले दिनों रेमडेसिविर की कालाबाजारी करते राजधानी के मौदहापारा से गिरफ्तार किए गए एक आरोपी के भाई विक्की रतनानी जो कांग्रेस व्यापार प्रकोष्ठ के पदाधिकारी हैं ने भी जनता से रिश्ता प्रतिनिधि से चर्चा में सीधे तौर पर अस्पतालों को ही इस कालाबाजारी के लिए जिम्मेदार बताया और एक स्पेशल सेल बनाकर इसकी जांच करने की जरूरत बताई ताकि इस कालाबाजारी के पीछे सक्रिय बड़े चेहरे बेनकाब हो सके।
बिक्री पर रोक से पहले नहीं थी कमी : विक्की रतनानी का कहना था कि रेमडेसिविर की बिक्री पर रोक लगाने से पहले दवा दुकानों में इंजेक्शन की कमी नहीं थी और न ही लोगों को महंगे दामों पर खरीदने की मजबूरी थी। दवा कारोबारी जरूरत के अनुसार बाहर से मंगा कर भी 6-9 हजार तक में लोगों को इंजेक्शन उपलब्ध करा रहे थे। निजी अस्पताल वाले भी वितरकों से इंजेक्शन खरीद कर स्टाक कर रहे थे। लेकिन जैसे ही मरीजों की तादाद बढने के साथ इंजेक्शन की मांग बढ़ी अस्पताल वाले इससे मुनाफा कमाने लगे। मांग बढऩे और कालाबाजारी के बीच सरकार ने अस्पतालों को सीधे इंजेक्शन उपलब्ध कराने और बाजार में इसकी बिक्री पर रोक लगाने का फरमान जारी कर दिया। इससे अस्पतालों को सीधे सरकार से इंजेक्शन मिलने लगे।
जो इंजेक्शन मरीज को नहीं लगे उसका क्या? : उन्होंने कहा कि सरकार रेमडेसिविर अस्पतालों को सीधे उपलब्ध करा रही है। जरूरत मंद प्रत्येक मरीज के लिए 6 डोज के हिसाब से इंजेक्शन अस्पतालों को दी जा रही है। लेकिन अस्पताल में कितने मरीज को कितने डोज लगाए गए और कितने नहीं लगाए गए इसका रिकार्ड नहीं देखा जा रहा है। ऐसा भी हो सकता है मरीज को इंजेक्शन लगाए ही नहीं और चार्ट में इंजेक्शन लगाना दर्शा दिया हो। इससे बचे हुए डोज अस्पताल प्रवंधन या उसके कर्मचारी अपने लोगों के माध्यम से बाहर में लोगों को ऊंची कीमत पर बेच रहे हैं। वहीं अस्पतालों और दुकानों में इंजेक्शन नहीं मिलने के चलते ही लोग बाहर भटक रहे हैं और कालाबाजारियों के संपर्क में आ रहे हैं और मजबूरी में ऊंची कीमत पर इंजेक्शन खरीद रहे हैं।
बार कोड भी नहीं कर रहे स्कैन
विक्की रतनानी ने यह भी बताया कि अस्पतालों को इंजेक्शन उपलब्ध कराने से पहले उसका बार कोड भी स्कैन नहीं किया जा रहा है जिससे इसकी कालाबाजारी में और आसानी हो रही है। अस्पतालों को उपलब्ध कराने से पहले बार कोड स्कैन कराने से अगर उस इंजेक्शन की काला बाजारी होती तो कम-से कम यह तो पता चलता कि उक्त इंजेक्शन किस अस्पताल को उपलब्ध कराया गया था. इससे यह भी साफ हो जाता कि जिस अस्पताल को यह उपलब्ध कराया वहां यह इंजेक्शन बाहर लाकर जरुरतमंद को महंगी कीमत पर बेची गई। इसके बाद संबंधित अस्पताल के खिलाफ जांच कर कार्रवाई की जा सकती है। अस्पताल में लगे सीसीटीवी के माध्यम से भी यह देखा जा सकता है कि किस मरीज को कितने रेमडेसिविर या अन्य इंजेक्शन लगाए गए।
जिससे इंजेक्शन मिला, उसे रिमांड पर क्यों नहीं लिया?
विक्की रतनानी ने कहा कि पुलिस ने जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया था उसमें जो एक मुख्य आरोपी था उसके घर में सौ इंजेक्शन और लाखों रुपए नकदी थे, बावजूद पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और प्रतिबंधात्मक धारा लगाकर छोड़ दिया। जबकि उसे रिमांड पर लेकर कड़ी पूछताछ करना था। इससे इस कालाबाजारी के असली गुनहगारों की पहचान हो पाती। लेकिन पुलिस छोटे और जो इंजेक्शन बेचने वालों के साथ दिखे ऐसे लोगों पर कार्रवाई कर खानापूर्ति कर रही है। पुलिस को पकड़े गए लोगों के साथ कड़ी पूछताछ कर असली कालाबाजारियों को पकडऩा चाहिए।
बड़ी साजिश का अंदेशा
उन्होंने रेमडेसिविर की कालाबाजारी के पीछे बड़ी साजिश का अंदेशा जताते हुए कहा कि इस कालाबाजारी के पीछे अस्पतालों के साथ विभागीय अधिकारी और राजनीतिज्ञों की भी भागीदारी हो सकती है। जो आपदा को अवसर बनाकर मुनाफा कमाने में लगे हैं और तकलीफजदा लोगों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं। चर्चा है कि सरकार को बदनाम करने की नियत से एक लाबी पूर्ववर्ती सरकार में शामिल रहे एक बड़े रूतबे वाले से मिलकर यह खेल कर रही है जिसे एक बड़े अस्पताल के जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। ताकि सरकार की छबि खराब हो।
30 दिन की खरीदी बिक्री का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए -- कन्हैया
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री कन्हैया अग्रवाल ने रेमडेसीविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वालों पर कड़ी कार्रवाई के साथ सप्लाई चैन को बेनकाब करने के लिए रेमडेसीविर की छत्तीसगढ़ में आने वाली एक महीने की खेप का पूरा विवरण सार्वजनिक करने की मांग पुलिस प्रशासन और ड्रग कंट्रोलर से की है । उन्होंने कहा कालाबाजारी के लिए इंजेक्शन कहां से आया जानने के लिए रेमडेसीविर के जितने स्टॉकिस्ट हैं उनसे 01 अप्रैल से 30 अप्रैल तक की खरीदी बिक्री का पूरा ब्यौरा( बिल -- रिसीविंग ) लेकर उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए । श्री अग्रवाल ने कहा कि जब इंजेक्शन अस्पताल से बाहर सप्लाई नहीं हो सकते तो मार्केट में ब्लैक में कैसे उपलब्ध हो रहे हैं ,अफसरों और राजनीतिक दलों के नेताओं के पास कैसे पहुंच रहे हैं ? उन्होंने कहा कि पुलिस विभाग और ड्रग विभाग को जांच और कार्रवाई तुरंत करनी चाहिए .. कौन है जो जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी करने वालों को इंजेक्शन उपलब्ध करा रहा है और कौन हैं जो ऐसे जघन्य कृत्य को संरक्षण दे रहा है ? ऐसे दोनों प्रकार के लोगों के खिलाफ तत्काल और सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है ।
रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करते दो और गिरफ्तार
कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए बेहद जरूरी माने जा रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी बंद होने का नाम नहीं ले रही है। पिछले एक हफ्ते में तीन अलग-अलग कार्रवाई में 12 लोगों का पकड़ा जा चुका है। इसके बावजूद कालाबाजारी करने वाले डर नहीं रहे हैं। शनिवार को पुलिस ने दुर्ग के दो युवकों को पकड़ा। वे भिलाई सेक्टर-9 अस्पताल के स्टाफ से इंजेक्शन खरीदकर उसे रायपुर, दुर्ग-भिलाई और राजनांदगांव में 15-20 हजार में बेच रहे थे। वे सोशल मीडिया में इंजेक्शन के लिए मैसेज प्रसारित करते थे। एक महिला की शिकायत पर युवकों को पकड़ा। सेक्टर-9 अस्पताल के स्टाफ के उनके लिंक की तलाश की जा रही है। पुलिस के अफसरों के अनुसार दुर्ग केलाबाड़ी निवासी शाहरुख कुरैशी (28) और मोहसिन खान (29) दोनों पिछले दो माह से रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी कर रहे हैं। शाहरुख का परिचित भिलाई सेक्टर-9 अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ है। वह मरीजों का इंजेक्शन निकालकर शाहरुख को देता था। शाहरुख 6-8 हजार इंजेक्शन लेकर फिर सोशल मीडिया में पोस्ट करता था कि जिन्हें भी रेमडेसिविर इंजेक्शन चाहिए तो संपर्क करें। एक महिला ने आरोपी की लगातार पोस्ट देखकर पुलिस में शिकायत की। उसके बाद सायबर सेल ने जांच शुरू की। एक महिला स्टाफ ने आरोपी से इंजेक्शन के लिए संपर्क किया। आरोपी ने 17 हजार में एक इंजेक्शन देने का सौदा किया। उसने महिला को एम्स बुलाया जहां पुलिस ने रंगेहाथ पकड़ लिया। आरोपियों से दो रेमडेसिविर इंजेक्शन जब्त किया है। पुलिस उसके साथियों की तलाश कर रही है। पुलिस ने अब तक इंजेक्शन की कालाबाजारी करते हुए 12 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। सभी खिलाफ प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई। सभी आरोपी जमानत पर छूट गए हैं।
जो इंजेक्शन मरीज को नहीं लगे उसका क्या? : उन्होंने कहा कि सरकार रेमडेसिविर अस्पतालों को सीधे उपलब्ध करा रही है। जरूरत मंद प्रत्येक मरीज के लिए 6 डोज के हिसाब से इंजेक्शन अस्पतालों को दी जा रही है। लेकिन अस्पताल में कितने मरीज को कितने डोज लगाए गए और कितने नहीं लगाए गए इसका रिकार्ड नहीं देखा जा रहा है। ऐसा भी हो सकता है मरीज को इंजेक्शन लगाए ही नहीं और चार्ट में इंजेक्शन लगाना दर्शा दिया हो। इससे बचे हुए डोज अस्पताल प्रवंधन या उसके कर्मचारी अपने लोगों के माध्यम से बाहर में लोगों को ऊंची कीमत पर बेच रहे हैं। वहीं अस्पतालों और दुकानों में इंजेक्शन नहीं मिलने के चलते ही लोग बाहर भटक रहे हैं और कालाबाजारियों के संपर्क में आ रहे हैं और मजबूरी में ऊंची कीमत पर इंजेक्शन खरीद रहे हैं।
बार कोड भी नहीं कर रहे स्कैन
विक्की रतनानी ने यह भी बताया कि अस्पतालों को इंजेक्शन उपलब्ध कराने से पहले उसका बार कोड भी स्कैन नहीं किया जा रहा है जिससे इसकी कालाबाजारी में और आसानी हो रही है। अस्पतालों को उपलब्ध कराने से पहले बार कोड स्कैन कराने से अगर उस इंजेक्शन की काला बाजारी होती तो कम-से कम यह तो पता चलता कि उक्त इंजेक्शन किस अस्पताल को उपलब्ध कराया गया था. इससे यह भी साफ हो जाता कि जिस अस्पताल को यह उपलब्ध कराया वहां यह इंजेक्शन बाहर लाकर जरुरतमंद को महंगी कीमत पर बेची गई। इसके बाद संबंधित अस्पताल के खिलाफ जांच कर कार्रवाई की जा सकती है। अस्पताल में लगे सीसीटीवी के माध्यम से भी यह देखा जा सकता है कि किस मरीज को कितने रेमडेसिविर या अन्य इंजेक्शन लगाए गए।
जिससे इंजेक्शन मिला, उसे रिमांड पर क्यों नहीं लिया?
विक्की रतनानी ने कहा कि पुलिस ने जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया था उसमें जो एक मुख्य आरोपी था उसके घर में सौ इंजेक्शन और लाखों रुपए नकदी थे, बावजूद पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और प्रतिबंधात्मक धारा लगाकर छोड़ दिया। जबकि उसे रिमांड पर लेकर कड़ी पूछताछ करना था। इससे इस कालाबाजारी के असली गुनहगारों की पहचान हो पाती। लेकिन पुलिस छोटे और जो इंजेक्शन बेचने वालों के साथ दिखे ऐसे लोगों पर कार्रवाई कर खानापूर्ति कर रही है। पुलिस को पकड़े गए लोगों के साथ कड़ी पूछताछ कर असली कालाबाजारियों को पकडऩा चाहिए।
बड़ी साजिश का अंदेशा
उन्होंने रेमडेसिविर की कालाबाजारी के पीछे बड़ी साजिश का अंदेशा जताते हुए कहा कि इस कालाबाजारी के पीछे अस्पतालों के साथ विभागीय अधिकारी और राजनीतिज्ञों की भी भागीदारी हो सकती है। जो आपदा को अवसर बनाकर मुनाफा कमाने में लगे हैं और तकलीफजदा लोगों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं। चर्चा है कि सरकार को बदनाम करने की नियत से एक लाबी पूर्ववर्ती सरकार में शामिल रहे एक बड़े रूतबे वाले से मिलकर यह खेल कर रही है जिसे एक बड़े अस्पताल के जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। ताकि सरकार की छबि खराब हो।
30 दिन की खरीदी बिक्री का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए: कन्हैया
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री कन्हैया अग्रवाल ने रेमडेसीविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वालों पर कड़ी कार्रवाई के साथ सप्लाई चैन को बेनकाब करने के लिए रेमडेसीविर की छत्तीसगढ़ में आने वाली एक महीने की खेप का पूरा विवरण सार्वजनिक करने की मांग पुलिस प्रशासन और ड्रग कंट्रोलर से की है । उन्होंने कहा कालाबाजारी के लिए इंजेक्शन कहां से आया जानने के लिए रेमडेसीविर के जितने स्टॉकिस्ट हैं उनसे 01 अप्रैल से 30 अप्रैल तक की खरीदी बिक्री का पूरा ब्यौरा( बिल — रिसीविंग ) लेकर उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए । श्री अग्रवाल ने कहा कि जब इंजेक्शन अस्पताल से बाहर सप्लाई नहीं हो सकते तो मार्केट में ब्लैक में कैसे उपलब्ध हो रहे हैं ,अफसरों और राजनीतिक दलों के नेताओं के पास कैसे पहुंच रहे हैं ? उन्होंने कहा कि पुलिस विभाग और ड्रग विभाग को जांच और कार्रवाई तुरंत करनी चाहिए .. कौन है जो जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी करने वालों को इंजेक्शन उपलब्ध करा रहा है और कौन हैं जो ऐसे जघन्य कृत्य को संरक्षण दे रहा है ? ऐसे दोनों प्रकार के लोगों के खिलाफ तत्काल और सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है ।