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नई दिल्ली | लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 26 जुलाई को नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, जिसे कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने पेश किया था। मोर्चे के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि भारत के 26 विपक्षी दलों के गठबंधन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर हिंसा पर संसद में बोलने के लिए प्रस्ताव लाने का फैसला किया है। विपक्ष मणिपुर पर चर्चा की मांग कर रहा है जो 3 मई से जातीय हिंसा से प्रभावित है, जिसमें दो महिलाओं को नग्न घुमाने की घटना भी शामिल है। जिसके वीडियो की हर तरफ काफी आलोचना हो रही है। हालांकि, अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को कोई खतरा नहीं है।
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि यह कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव नहीं बल्कि I.N.D.I.A के घटक दलों द्वारा सामूहिक तौर पर लाया गया है। उन्होंने कहा कि पिछले 83-84 दिनों से मणिपुर में जो स्थिति बनी हुई है उस पर क़ानून-व्यवस्था चरमरा गई है, समुदाय के बीच विभाजन हो गया है। तिवारी ने दावा किया कि वहां सरकार नाम की चीज़ नहीं रह गई है। इन तथ्यों ने हमें अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए मजबूर किया है। उन्होंने कहा कि I.N.D.I.A के घटक दलों की सामूहिक मांग है कि सभी काम को एक तरफ रखते हुए कल ही इस प्रस्ताव के ऊपर, प्राथमिकता रखते हुए पर इस चर्चा होनी चाहिए। संख्याबल के सवाल पर कांग्रेस नेता ने कहा कि सवाल संख्या का नहीं बल्कि नैतिकता का है। बुनियादी सवाल यह है कि जवाबदारी किस की है। सदन में जब इस पर मतदान होगा तब नैतिकता की कसौटी पर कौन कहां खड़ा है। सवाल राष्ट्र की सुरक्षा का है।
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प्रस्ताव को सदन के कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन होना चाहिए। जबकि लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 543 है, प्रभावी सीटें 537 हैं और खाली सीटें केवल 6 हैं। अविश्वास प्रस्ताव को लेकर भी मोदी सरकार बेफिक्र है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय है। संख्याबल के आधार पर भाजपा मजबूत है। लोकसभा में विपक्ष के 150 से भी कम सांसद हैं। 272 बहुमत का आंकड़ा होता है। भाजपा अपने दम पर 303 है। जबकि भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन के पास 331 सदस्य हैं।
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