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युवती के साथ भागा था, अब आया ये फैसला

jantaserishta.com
10 July 2022 12:29 PM GMT
युवती के साथ भागा था, अब आया ये फैसला
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

उसके पिता ने अपहरण और दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया.

मुंबई: मुंबई की एक कोर्ट ने यूपी के गाजियाबाद के रहने वाले एक 42 वर्षीय फेरीवाले को बरी कर दिया, जो मुंबई में रहता था और साल 1997 में अपने पड़ोस की एक युवती के साथ भाग गया था. अक्टूबर, 1997 में युवती अपने माता-पिता और भाई-बहन के साथ रामलीला देखने गई थी. जब वो दादर इलाके में भीड़भाड़ वाले शिवाजी पार्क में रामलीला देखने में व्यस्त थे, तभी युवती अचानक लापता हो गई.

इस घटना के दो दिन बाद परिवार को पता चला कि उनके पड़ोस में रहने वाला एक युवक भी रामलीला के बाद से गायब था. उसके बाद युवती के पिता ने पड़ोसी के दोस्त से पूछताछ की, जिसने बताया कि युवक और युवती दोनों दिल्ली गए थे. इसके बाद उसके पिता ने अपहरण और दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया.
अदालत में आरोपी के एक दोस्त ने गवाही दी कि वह आरोपी को स्कूल के दिनों से जानता था और 11 अक्टूबर 1997 को वह आरोपी के साथ शिवाजी पार्क में रामलीला देखने गया था. उस समय पीड़िता जो आरोपी की प्रेमिका है, वह अपने परिवार के लोगों के साथ शिवाजी पार्क आई थी. उसने आगे बताया कि आरोपी पीड़िता के साथ मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन गया था और उस समय वह उनके साथ था.
चश्मदीद के मुताबिक, आरोपी और पीड़िता ट्रेन से गए थे. जस्टिस एबी शर्मा ने कहा कि चश्मदीद ने स्वीकार किया कि पीड़िता स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई थी और उसकी उसके साथ कोई बातचीत नहीं हुई. गवाह ने ये भी बताया कि वह पीड़िता को नहीं जानता था. वहीं जांच अधिकारी ने अदालत को यह भी बताया कि उसने अपनी जांच के दौरान पाया कि आरोपी और पीड़िता के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था. जस्टिस शर्मा ने कहा कि अधिकारी ने बताया कि घटना के समय पीड़िता नाबालिग थी, इसको लेकर भी कोई डॉक्यूमेंट नहीं मिला है. इसके अलावा जांच के दौरान पीड़िता ने यह भी खुलासा नहीं किया कि आरोपी और उसके बीच शारीरिक संबंध स्थापित किया गया था.
इन दो गवाहों के अलावा, अभियोजन पक्ष द्वारा कोई अन्य गवाह अदालत में नहीं लाया गया और न्यायाधीश ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़िता स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई थी. इसलिए इस गवाह के सबूत आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं." न्यायधीश शर्मा ने कहा कि मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि आरोपी को पकड़ने के लिए कोई ठोस, पुख्ता साक्ष्य रिकॉर्ड में नहीं लाया गया है. इसके साथ ही पीड़िता भी कोर्ट के सामने नहीं आई. नतीजन, आरोपी को बरी करते हुए मुकदमा खत्म किया जाता है.


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