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राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने ही जस्टिस के निर्देश को दी चुनौती, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

Deepa Sahu
25 May 2021 6:10 PM GMT
राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने ही जस्टिस के निर्देश को दी चुनौती, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
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अपनी तरह के एक अनोखे मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में अपने ही एक जस्टिस के आदेश को चुनौती देते हुए

अपनी तरह के एक अनोखे मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में अपने ही एक जस्टिस के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की। हाईकोर्ट के जस्टिस ने डीजीपी को निर्देश दिया था कि तीन साल कैद तक की सजा के प्रावधान वाले अपराध में जिन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज है उन्हें 17 जुलाई तक गिरफ्तार न किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आदेश पर रोक लगा दी।

हाईकोर्ट ने इस आधार पर आदेश को चुनौती दी थी कि इस निर्देश से अराजकता की स्थिति बनेगी। राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि सिंगल बेंच ने कानून के स्थापित सिद्धांतों की अनदेखी की कि चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं। hc ने कहा कि सिंगल बेंच ने जमानत याचिका पर विचार करते हुए चीफ जस्टिस के विशेष प्रशासनिक न्यायाधिकार में हस्तक्षेप करके कानून के सिद्धांत, नियमों और परिपाटी का उल्लंघन किया। है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने तीन साल की अधिकतम सजा के प्रावधान वाले अपराधों के आरोपियों को 17 जुलाई 2021 तक गिरफ्तार नहीं करने और उच्च न्यायालय व सत्र अदालतों के समक्ष अग्रिम जमानत याचिकाओं को सूचीबद्ध न करने के संदर्भ में तीन निर्देशों पर रोक लगा दी। राजस्थान hc की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विजन हंसारिया ने कहा कि सिंगल बेंच का आदेश उचित नहीं था।
राजस्थान सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष सिंघवी ने इस दलील का समर्थन किया और कहा कि आदेश पर रोक लगाए जाने की आवश्यकता है। hc ने कहा कि ipc की धारा 438 के तहत जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सिंगल बेंच ने निर्देश दिया कि जिन मामलों में अधिकतम सजा का प्रावधान तीन वर्ष तक का है और जिन मामलों की सुनवाई प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट कर सकते हैं उन मामलों में सत्र अदालतों या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ग्रीष्मावकाश के बाद अदालतों के खुलने तक अग्रिम जमानत याचिकाएं सूचीबद्ध न की जाएं। याचिका में कहा गया कि सिंगल बेंच ने राजस्थान के डीजीपी को निर्देश दिया कि वह सभी अधिकारियों को यह निर्देशित करें कि वह उस आरोप में आरोपी को 17 जुलाई 2021 तक गिरफ्तार न करें जहां अधिकतम सजा का प्रावधान तीन वर्ष तक का है, या जिन मामलों की सुनवाई प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।


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