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पंजाब चुनाव 2022: कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती, नवजोत सिंह सिद्धू को चुनाव के पहले तक करना होगा संयम का पालन
Apurva Srivastav
7 Feb 2022 5:37 PM GMT
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नवजोत सिंह सिद्धू की सियासी उछल-कूद के बीच चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कराने में कांग्रेस हाईकमान को मिली कामयाबी के बावजूद सिद्धू के तेवरों के फिर से उबाल लेने की आशंका पार्टी में अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई
नई दिल्ली। नवजोत सिंह सिद्धू की सियासी उछल-कूद के बीच चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कराने में कांग्रेस हाईकमान को मिली कामयाबी के बावजूद सिद्धू के तेवरों के फिर से उबाल लेने की आशंका पार्टी में अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई। पिछले छह महीने के दौरान पंजाब कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक के सबसे बड़े केंद्र रहे सिद्धू के सियासी तौर-तरीकों की वजह से पार्टी नेता अभी इसको लेकर आश्वस्त नहीं हो पा रहे कि पूर्व क्रिकेटर विधानसभा चुनाव तक संयम का पालन करेंगे।
पार्टी ने चन्नी को पंजाब के लिए घोषित किया है सीएम उम्मीदवार
पार्टी नेताओं का मानना है कि सिद्धू को दो हफ्ते तक संयत रखना भी कम बड़ी चुनौती नहीं है। पंजाब में काग्रेस के चुनाव अभियान में सक्रिय रूप से शामिल कुछ नेताओं ने अनौपचारिक चर्चा के दौरान सिद्धू जैसे सियासी प्रक्षेपास्त्र को थामते हुए चन्नी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किए जाने को पार्टी के चुनाव अभियान की अब तक की सबसे बड़ी सफलता बताया। लेकिन लगे हाथ सीएम रेस में पीछे छूट गए सिद्धू के उबाल के किसी भी मौके पर सामने आने की आशंका से इन्कार नहीं किया। कहा कि वोटिंग में अब केवल 12 दिन रह गए हैं। ऐसे में उनके शब्दों के गोले बाहर न आएं, इसका ध्यान चन्नी और कांग्रेस नेतृत्व दोनों को करना होगा।
सिद्धू की हामी के बावजूद उनके तेवरों को लेकर पार्टी नेता सशंकित
वैसे सिद्धू के अब तक के तेवरों से साफ रहा है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के अलावा वे किसी की बात को नहीं सुनते हैं। इसे देखते हुए पार्टी नेता भी मान रहे कि उनको काबू में रखने की बड़ी जिम्मेदारी पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर रहेगी। सिद्धू ने राहुल गांधी की मौजूदगी में मंच पर और फिर ट्वीट के जरिये चन्नी को सीएम उम्मीदवार बनाए जाने का समर्थन किया। मगर इसके बावजूद उनका यह रुख कायम रहेगा, पार्टी में इसको लेकर भरोसा नहीं हो रहा।
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थीं सिद्धू की निगाहें
बीते छह महीने के दौरान उन्होंने कांग्रेस की पूरी सियासत को अपनी धुरी पर ही नचाने की कोशिश की है। पंजाब चुनाव में कांग्रेस की चुनौती में इजाफे की वजह भी यह उठापटक ही मानी जा रही है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चेबंदी के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने में कामयाब रहे सिद्धू ने महीने भर बाद ही कैप्टन के खिलाफ विद्रोह करा दिया। इस विद्रोह के जरिये उनकी निगाहें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थीं। मगर कांग्रेस नेतृत्व ने सियासी चतुराई दिखाते हुए चन्नी को सीएम बना दिया।
सिद्धू ने बजाया विद्रोह का बिगुल
सिद्धू ने पहले तो इसे स्वीकार कर लिया, मगर चन्नी जब बतौर मुख्यमंत्री उनके प्रभाव में नहीं आए और स्वतंत्र रूप से फैसले करने लगे तब सिद्धू की उनसे ठन गई। नए डीजीपी से लेकर राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति को लेकर सिद्धू ने विद्रोह का बिगुल तेज करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा तक हाईकमान को भेज दिया। पार्टी नेतृत्व के समझाने-बुझाने के बाद इस्तीफा वापस लिया। लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में चन्नी की बढ़ रही लोकप्रियता ने एक बार फिर सिद्धू को ऐसा बेचैन किया कि वे अपनी सरकार के लोकप्रिय फैसलों पर यह कहकर सवाल उठाने लगे कि आखिर में रेवडि़यां बांटने से कोई चुनावी लाभ नहीं होगा।
विरोधी नेताओं के टिकट कटवाने की हर संभव कोशिश की
इतना ही नहीं सूबे की कांग्रेस सरकार से इतर पंजाब के विकास के लिए सिद्धू ने अपना माडल पेश कर पार्टी की दुविधाएं बढ़ाई। टिकट बंटवारे के समय भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने खुलेआम पार्टी में अपने विरोधी नेताओं के टिकट कटवाने की हर संभव कोशिश की और इस क्रम में सूबे के वरिष्ठ मंत्री राणा गुरजीत सिंह और उनके बीच खूब जुबानी जंग भी हुई। मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में चन्नी की लोकप्रियता की बात सामने आने के बाद उनके नाम के एलान से दो दिन पहले यहां तक कहा कि पार्टी में ऊपर बैठे लोग कमजोर मुख्यमंत्री चाहते हैं, जो उनकी धुन पर नाच सके। इन वाकयों से साफ है कि विरोधियों का मुकाबला करने के साथ ही सिद्धू को संयम में रखना भी कांग्रेस की बड़ी चुनावी चुनौती है।
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