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रेलवे में करोड़ों के प्रोजेक्ट को मिलते हैं 1-1 हजार, फंड के लिए तरसते रह जाते है प्रोजेक्ट

jantaserishta.com
31 Jan 2022 2:44 AM GMT
रेलवे में करोड़ों के प्रोजेक्ट को मिलते हैं 1-1 हजार, फंड के लिए तरसते रह जाते है प्रोजेक्ट
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नई दिल्ली: मोदी सरकार (Modi Govt) के कार्यकाल में हुए कुछ बड़े बदलावों में से रेल बजट (Rail Budget) का समाप्त होना भी अहम है. अलग से रेल बजट पेश किए जाने की परंपरा 2017 में समाप्त कर दी गई और इसे आम बजट (Union Budget) का ही हिस्सा बना दिया गया. इस फैसले के बाद रेलवे की कार्यप्रणाली में भी बदलाव आया है. नेताजी की सिफारिश पर नई रेलवे लाइन (New Rail Line) बिछाना अब विभाग के लिए प्रॉयरिटी नहीं रह गया है. सिफारिश से प्रोजेक्ट को मंजूरी भले ही मिल जाए, लेकिन सालों साल तक फंड के लिए ऐसे प्रोजेक्ट तरसते रह जाते हैं.

साल 2017 से पहले जब रेल मंत्रालय (Rail Ministry) का अलग से बजट पेश होता था, जनवरी-फरवरी महीने के दौरान रेल भवन में नेताओं की गहमागहमी बढ़ जाती थी. तमाम सांसद अपने-अपने इलाके में नई रेल लाइन बिछाने की सिफारिश लेकर पहुंचते थे. जिनकी बात बन जाती थी, रेल बजट में उनके क्षेत्र के लिए नई लाइन का ऐलान हो जाता था. अब चूंकि रेल बजट भी आम बजट का हिस्सा हो गया है, यह भी नॉर्थ ब्लॉक (North Block) के बेसमेंट में तैयार होता है, जहां इस प्रक्रिया में लगे अधिकारी अंडरग्राउंड होते हैं.
अब ऐसे प्रोजेक्ट की जानकारी रेलवे के विभागीय पिंक बुक (Railway Pink Book) में मिलती है. इंडियन रेलवे (Indian Railway) की वेबसाइट पर सारे जोन, विभाग और संबंधित यूनिट के पिंक बुक उपलब्ध हैं. पिंक बुक के आंकड़े छानने पर कई दिलचस्प जानकारियां सामने आती हैं. मसलन कई ऐसे प्रोजेक्ट, जिनकी अनुमानित लागत सैंकड़ों करोड़ में है, उनके लिए साल दर साल विभाग चंद हजार रुपये का प्रावधान करता है.
साल 2017 से लेकर अब तक के 5 पिंक बुक के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 5 साल में करीब 18 हजार किलोमीटर नई लाइन बिछाने का ऐलान तो हुआ, लेकिन ये सारे अभी अधर में लटके हुए हैं. इनमें से कुछ प्रोजेक्ट के लिए तो लगातार 3-3 बार महज 1-1 हजार रुपये मिले हैं. ये हाल तब है, जब इनकी अनुमानित लागत 500 से 1000 करोड़ रुपये तक है.
उदाहरण के लिए झारखंड के बासुकीनाथ-चित्रा ब्रॉडगेज प्रोजेक्ट को पिछली दो बार से 1-1 हजार रुपये दिए गए हैं. इस प्रोजेक्ट का ऐलान 2016 में ही हो गया था और तब इसके लिए 450 करोड़ रुपये आवंटित किए जाने की बात की गई थी. पिछले साल के पिंक बुक में नई लाइनों के लिए पूर्वी रेलवे ने 1,500,08 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया. ये प्रावधान 13 लाइनों के लिए किए गए. इनमें से 10 प्रोजेक्ट को महज 1-1 हजार रुपये दिए गए. इसी तरह लक्ष्मीकांतपुर-नामखाना-चंदानगर, काकद्वीप-बुडाखाली और चंदानगर-बखाली प्रोजेक्ट, भागीरथी नदी पर पुल समेत अजीमगंज-मुर्शिदाबाद लाइन, बरियारपुर-मननपुर बरास्ता खड़गपुर लक्ष्मीपुर-बरहट प्रोजेक्ट, सुल्तानगंज-कटोरिया लाइन, तारकेश्वर-मागरा लाइन, हसनाबाद-हिंगलगंज लाइन आदि भी 1-1 हजार रुपये वाले 13 प्रोजेक्ट में शामिल हैं.
रेलवे के इस ट्रेंड से पता चलता है कि सिफारिश वाले प्रोजेक्ट अब बेमतलब रह गए हैं. सिफारिश के दम पर नई लाइन का ऐलान भले ही करा लिया जाए, उन्हें कंप्लीट नहीं कराया जा सकता है. रेल विभाग की ओर से भले ही ये प्रोजेक्ट ऑफिशियली बंद नहीं किए जाते, लेकिन इनके ऊपर काम भी आगे नहीं बढ़ता है. इसका यही अर्थ निकाला जा सकता है कि रेलवे के लिए ये प्रोजेक्ट महत्व नहीं रखते हैं. पिछले 5 साल के दौरान विभाग से सिर्फ उन्हीं प्रोजेक्ट को पैसे मिले हैं, जिन्हें रेलवे के सर्वे में प्रॉफिटेबल माना गया है.
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