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प्रियंका गांधी ने उठाए सवाल, कहा - सरकार आंकड़ों की बाजीगरी नहीं करती तो बचाई जा सकती थीं हजारों जानें

Khushboo Dhruw
7 Jun 2021 7:12 AM GMT
प्रियंका गांधी ने उठाए सवाल, कहा - सरकार आंकड़ों की बाजीगरी नहीं करती तो बचाई जा सकती थीं हजारों जानें
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कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने केंद्र सरकार पर कोविड-19 से हुई मौतों के आकंड़े छुपाने का आरोप लगाया

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने केंद्र सरकार पर कोविड-19 से हुई मौतों के आकंड़े छुपाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि सरकार ने आंकड़ों में पारदर्शिता लाती तो इतनी भयावह स्थिति नहीं होती. प्रियंका गांधी 'जिम्मेदार कौन?' सीरीज के तहत कोविड-19 के प्रबंधन और वैक्सीनेशन को लेकर लगातार केंद्र सरकार पर सवाल उठा रही हैं. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस से जुड़े तमाम आंकड़ों को केवल सरकारी चैंबरों में कैद रखा गया और वैज्ञानिकों द्वारा पत्र लिखकर इन आकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग के बावजूद नहीं किया गया.

प्रियंका गांधी ने फेसबुक पर अपने पोस्ट में लिखा, "विशेषज्ञों का मानना है कि पहली लहर के दौरान आंकड़ों को सार्वजनिक न करना, दूसरी लहर में इतनी भयावह स्थिति पैदा होने का एक बड़ा कारण था. जागरूकता का साधन बनाने की बजाय सरकार ने आंकड़ों को बाजीगरी का माध्यम बना डाला. आंकड़ों की पारदर्शिता जरूरी है कि क्योंकि इससे ही पता लगता है- बीमारी का फैलाव क्या है, संक्रमण ज्यादा कहां है, किन जगहों को सील करना चाहिए या फिर कहां टेस्टिंग बढ़ानी चाहिए. लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ."
उन्होंने लिखा कि आज भी वैक्सीनेशन के आंकड़ों की कुल संख्या दी जा रही है, आबादी का अनुपात नहीं. उसमें पहली और दूसरी डोज को एक में ही जोड़कर बताया जा रहा है. ये आंकड़ों की बाजीगरी है. टेस्टिंग को लेकर गांधी ने लिखा कि उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों ने आंकड़ों में भारी हेरफेर की. सरकार ने कुल टेस्टों की संख्या में RTPCR और एंटीजन टेस्ट के आंकड़ों को अलग-अलग करके नहीं बताया, जिससे वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या का सही अंदाजा नहीं लग सका.
गुजरात में मृत्यु प्रमाण पत्र से अलग सरकारी आंकड़े- गांधी
उन्होंने गुजरात के 4 शहरों में जारी हुए मृत्यु प्रमाण पत्रों और सरकार के हिसाब से कोरोना से हुई मौतों के आंकड़ों को शेयर कर दावा किया कि सरकार ने आंकड़ों में हेराफेरी की है. कांग्रेस महासचिव ने आगे लिखा, "दिव्य भास्कर अखबार के हिसाब से दूसरी लहर के दौरान गुजरात में 71 दिनों में 1,24,000 मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किए गए. लेकिन गुजरात सरकार ने सिर्फ 4,218 कोविड मौतें बताईं."
उन्होंने लिखा, "अमहदाबाद में 13,593 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुए, लेकिन सरकारी आंकड़ों में सिर्फ 2,126 मौतें बताई गईं. इसी तरह सूरत में 8,851 प्रमाण पत्र जारी हुए और सरकार के आंकडों में 1,074 मौतें हुईं. राजकोट में 10,887 प्रमाण पत्र जारी हुए लेकिन कोविड से 208 मौतें बताई गई. और वड़ोदरा में 7,722 प्रमाण पत्र जारी हुए, लेकिन सरकार के मुताबिक, वहां 189 मौतें हुईं"
इसी तरह प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश के आकंड़ों को शेयर करते हुए लिखा, "खबरों के अनुसार UP के 27 जिलों में लगभग 1,100 किमी की दूरी में गंगा किनारे 2000 शव मिले. इनको सरकारी रजिस्टर में जगह नहीं मिली. जब प्रयागराज जैसे शहरों में गंगा के किनारे दफनाए गए शव टीवी में आने लगे तो उप्र सरकार ने तत्काल 'सफाई अभियान' चलाकर कब्रों के निशान मिटाते हुए उनपर पड़ी चादरें उतरवा लीं."
'सही आंकड़ों को बताने पर हजारों जानें बचाई जा सकती थीं'
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार आंकड़ों को बाजीगरी का माध्यम बनाना चाहती है या कोरोना को शिकस्त देने का एक अहम हथियार? उन्होंने कहा, "आखिर क्यों वैज्ञानिकों द्वारा बार-बार मांगने के बावजूद कोरोना वायरस के बर्ताव और बारीक अध्ययन से जुड़े आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया? जबकि इन आंकड़ों को सार्वजनिक करने से वायरस की गति और फैलाव की जानकारी ठीक तरह से होती और हजारों जानें बच सकती थीं."
कांग्रेस महासचिव ने लिखा कि केंद्र सरकार आंकड़ों को अपनी छवि बचाने के माध्यम की तरह क्यों प्रस्तुत करती है? उन्होंने कहा कि क्या इनके नेताओं की छवि, लाखों देशवासियों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण है? सही आंकड़ें अधिकतम भारतीयों को इस वायरस के प्रभाव से बचा सकते हैं. आखिर क्यों सरकार ने आंकड़ों को प्रोपेगैंडा का माध्यम बनाया न कि प्रोटेक्शन का?


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