
निजी क्षेत्र की बिजली ट्रांसमिशन कंपनियों ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह को पत्र लिखकर पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड को टैरिफ आधारित प्रतिस्पर्धी बोली के सभी मौजूदा और भविष्य के दौर में शामिल होने से रोकने का आग्रह किया है।
पत्र में लिखा गया है कि बोली में शामिल होने से पावर ग्रिड को तब तक के लिए रोक दिया जाए, जब तक कि राज्य के स्वामित्व वाली ट्रांसमिशन कंपनी और सेंट्रल ट्रांसमिशन यूटिलिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड के बीच अलगाव पूरा नहीं हो जाता। सेंट्रल ट्रांसमिशन यूटिलिटी ऑफ इंडिया देश भर में सभी ट्रांसमिशन परियोजनाओं के लिए नोडल एजेंसी है।
पत्र की प्रति शुक्रवार को यहां प्रेस को जारी की गयी।
बिजली मंत्री को 17 अक्टूबर को लिखे एक पत्र में, इलेक्ट्रिक पावर ट्रांसमिशन एसोसिएशन ने कहा है कि पीजीसीआईएल और सीटीयूआईएल के बीच हितों को लेकर टकराव की स्थिति है। इसे हल करने के लिए मंत्री से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया है।
ईपीटीए के निदेशक जनरल विजय छिब्बर ने अपने पत्र में कहा,''हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि आप हमारे अनुरोध पर योग्यता के आधार पर ध्यान देेंगे, लेकिन अंतरित तौर पर हम यह सुझाव देना चाहते हैं कि सीटीयू को कृपया निर्देश दें कि वह पीजीसीआईएल को वर्तमान में चल रही और भविष्य की टीबीसीबी बोलियों में आगे की भागीदारी से रोके। यह रोक तब तक के लिए होनी ही चाहिए, जब तक कि पीजीसीआईएल और सीटीयूआईएल के बीच अलगाव पूरा न हो जाए।''
इससे पहले तीन अक्टूबर को लिखे एक पत्र में ईपीटीए ने बिजली मंत्रालय से आग्रह किया था कि वह टैरिफ आधारित प्रतिस्पर्धी बोली को महत्व देने के लिए सीटीयूआईएल और सभी बोलीदाताओं के बीच संबंध सुनिश्चित करे। पत्र में एसोसिएशन ने कहा था कि टीबीसीबी उद्योग के साथ-साथ उन उपभोक्ताओं के लिए भी शुभ संकेत है जो प्रतिस्पर्धी बोली से लाभान्वित होंगे। लेकिन यह मैकेनिज्म पूरी तरह से पारदर्शी और सफल नहीं हो सकता क्योंकि सरकारी स्वामित्व वाली पावर ग्रिड कॉरपोरेशन का सीटीयूआईएल पर 'अनुपातहीन नियंत्रण और प्रभाव' है।
पत्र में कहा गया है, ''यह मामला ईपीटीए द्वारा हमारी पिछली बैठक में उठाया गया था, और आपने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के नौ मार्च, 2022 के आदेश के तहत 'डीमर्जर स्कीम्स' से संबंधित हमारी चिंताओं की सराहना की और स्वीकार किया। इस योजना के तहत, पीजीसीआईएल के सभी उपक्रमों, संपत्तियों, कर्मियों आदि को सीटीयू के कार्यों का निर्वहन करने के लिए नवगठित सीटीयूआईएल को चालू प्रतिष्ठान के आधार पर स्थानांतरित किया जाना था। पीजीसीआईएल को सीटीयूआईएल के साथ पूरी तरह से अलग करने के लिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के उपरोक्त स्पष्ट इरादे के बावजूद वास्तविक स्थिति यह है कि जहां प्रथम दृष्टया हितों के टकराव का संकेत देने वाली स्थिति बनी हुई है, जिसमें पीजीसीआईएल का अनुपात नियंत्रण और सीटीयूआईएल पर प्रभाव है।
हितों के टकराव के विशिष्ट उदाहरणों की ओर इशारा करते हुए एसोसिएशन ने कहा था कि पावर ग्रिड के निदेशक (परियोजनाएं) सीटीयूआईएल के निदेशक मंडल के अध्यक्ष हैं। दूसरी ओर, निदेशक (परियोजनाएं) पीजीसीआईएल द्वारा प्राप्त प्रत्येक सफल बोली के लिए स्थापित किए गए सभी स्पेशल पर्पज व्हीकल्स के भी प्रमुख हैं। इसके अलावा, सीटीयूआईएल के सभी खर्चों को पीजीसीआईएल की ओर से फंडिंग किया जाना जारी है और यह व्यवस्था भविष्य में भी जारी रहने की उम्मीद है।
एसोसिएशन के अनुसार, पावर ग्रिड सीटीयूआईएल की सिफारिशों के आधार पर तैयार डिजाइन और जारी की गई निविदाओं में भाग लेता है।
पत्र में आगे कहा गया है, ''पीजीसीआईएल की ट्रांसमिशन परियोजनाओं, जिनकी कल्पना और डिजाइन सीटीयूआईएल की सलाह पर की गई है, के लिए बोलियों में एक निविदाकर्ता के रूप में भागीदारी हितों के टकराव का सीधा सा मामला है, जिससे पीजीसीआईएल को बोलियों को तैयार करने और बाजार के बाकी हिस्सों की तुलना में पहले से ही अपनी व्यापार रणनीति का अनुचित लाभ मिलता है। ट्रांसमिशन डेवलपर्स के बीच धारणा यह है कि जहां ऊर्जा मंत्रालय द्वारा डी-जुरे डिमर्जर सुनिश्चित किया गया है, वहीं योजना के तहत परिकल्पित अलगाव का विरोध किया जा रहा है और पीजीसीआईएल और सीटीयूआईएल दोनों द्वारा इसमें देरी की जा रही है।''
एसोसिएशन ने मंत्रालय से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि निदेशक मंडल सहित कर्मियों का कोई साझाकरण नहीं है, और सीटीयूआईएल का अपना बजट/राजस्व स्ट्रीम है जो पावर ग्रिड से स्वतंत्र है।
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