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जेल में कैदी ने निगल लिया मोबाइल, डॉक्टरों ने एंडोस्कोपी तकनीक की मदद से निकाला

jantaserishta.com
19 Jan 2022 5:47 AM GMT
जेल में कैदी ने निगल लिया मोबाइल, डॉक्टरों ने एंडोस्कोपी तकनीक की मदद से निकाला
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नई दिल्ली: ड्रग्स की पोटली, टूथब्रश और सुई के बाद अब डॉक्टरों ने पेट से साढ़े छह इंच लंबा मोबाइल फोन भी निकाल लिया। बिना किसी चीर-फाड़ किए डॉक्टरों ने विशेषज्ञता का इस्तेमाल करते हुए एंडोस्कोपी के जरिए फोन को निकाल दिया।

हाल ही में तिहाड़ जेल में बंद एक कैदी ने प्रशासन से बचने के लिए मोबाइल फोन निगल लिया था। जेल से उसे डीडीयू अस्पताल भर्ती कराया गया लेकिन वहां से मरीज को जीबी पंत अस्पताल लाया गया जहां डॉक्टरों ने एंडोस्कोपी तकनीक की मदद लेकर मोबाइल फोन बाहर निकाला। डॉक्टरों ने जब मोबाइल फोन का आकार पैमाने से नापा तो यह करीब साढ़े छह इंच लंबा और तीन इंच चौड़ा फोन था।


अस्पताल के वरिष्ठ डॉ. सिद्धार्थ श्रीवास्तव व डॉ. मनीष तोमर ने बताया कि उनकी टीम अब तक ऐसे करीब 10 मामले देख चुकी है। अक्सर जेल में बंद कैदी कभी फोन तो कभी इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर नशीले पदार्थ की पोटलियां निगल लेते हैं। इन्हें बाहर निकालने के लिए उनके पास बगैर किसी ऑपरेशन का अनुभव है।
इसी तरह का एक मामला बीते 15 जनवरी को अस्पताल आया। डॉ. सिद्धार्थ ने यह जानकारी देते हुए बताया कि अस्पताल आने के बाद उन्हें पता चला कि मरीज ने मोबाइल फोन निगल लिया है। वे कुछ ही मिनट में पूरा मामला समझ गए और उन्होंने मरीज की एंडोस्कोपी करने का फैसला लिया। एंडोस्कोपी में लगे कैमरा के जरिए उन्होंने फोन की जगह को देख लिया और फिर एक अलग से पाइप लगाकर फोन को धीरे धीरे खींचते हुए बाहर निकाल लिया। इसी जब पैमाने से नापा गया तो यह फोन साढ़े छह से थोड़ा अधिक लेकिन सात इंच से थोड़ा कम लंबा था।
डॉक्टरों के अनुसार इस तरह के मामले काफी जटिल होते हैं। थोड़ी सी भी चूक होने पर मरीज का काफी नुकसान तक हो सकता है। पेट से जब किसी भारी वस्तु को ऊपर की ओर निकालते हैं तो हमें श्वास और आहार नलिका दोनों को बचाकर चलना पड़ता है।
50 ग्राम से कम भार वाली वस्तु में यह सावधानी थोड़ी कम होती है लेकिन 100 ग्राम तक के भार वाली वस्तु में यह काफी बढ़ जाती है। फोन का भार भी करीब 90 से 100 ग्राम के बीच था।
श्वास और आहार नलिका यह दोनों ही काफी मुलायम और संकरी होने के साथ ही थोड़े से स्पर्श से ही इन्हें काफी नुकसान पहुंच सकता है जिसे बाद में ठीक कर पाना भी आसान नहीं है। डॉक्टरों को इन चुनौतियों के बारे में पता था और फोन निकालने में करीब एक घंटा लग गया।
डॉक्टरों ने बताया कि एंडोस्कोपी करने से पहले जुबान और उसके आसपास को सुन्न किया जाता है। मरीज को एनेस्थिसिया नहीं दे सकते हैं। इसलिए जुबान और उसके आसपास के हिस्से को सुन्न करने के बाद फोन को बाहर निकाला। डॉक्टरों का कहना है कि तिहाड़ जेल का यह कोई पहला मामला नहीं है। अब तक करीब 10 फोन के केस उनके पास आए हैं और ये सभी तिहाड़ जेल से ही जुड़े हैं।
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