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दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 25 नवंबर को दिल्ली में अहोम जनरल लाचित बरफूकन की 400वीं जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह में पहुंचे। यहां PM मोदी समेत असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, राज्यपाल जगदीश मुखी, केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल और अन्य ने लचित बरफुकन को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद PM मोदी ने उनपर लिखी किताब का विमोचन किया। साथ ही लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती समारोह को संबोधित किया।
इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा- सबसे पहले मैं असम की उस महान धरती को प्रणाम करता हूं जिसने मां भारती को लचित जैसे वीर दिए हैं। ये मेरा सौभाग्य है कि, मुझे इस कार्यक्रम से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं इस अवसर पर असम की जनता और समस्त देशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।
हमें वीर लाचित की 400वीं जन्म जयंती मनाने का सौभाग्य उस कालखंड में मिला है जब देश अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। यह ऐतिहासिक महोत्सव असम के इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है: लाचित बरफूकन की 400वीं जयंती समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली pic.twitter.com/nui0SYGASs
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 25, 2022
आज भारत अपनी संस्कृति के ऐतिहासिक नायक-नायिकाओं को गर्व से याद कर रहा है। लचित जैसी मां भारती की अमर संतानें हमारी अविरल प्रेरणा हैं। मैं इस पुण्य अवसर पर लचित को नमन करता हूं।
आज देश ने औपनिवेशिक मानसिकता को त्याग दिया है और अपनी विरासत के लिए गर्व से भर गया है। भारत न केवल सांस्कृतिक विविधता का जश्न मना रहा है बल्कि इतिहास के नायकों को भी गर्व के साथ याद कर रहा है।
अगर कोई तलवार के जोर से हमें झुकाना चाहता है, हमारी शाश्वत पहचान को बदलना चाहता है तो हमें उसका जवाब भी देना आता है। असम और पूर्वोत्तर की धरती इसकी गवाह रही है। वीर लचित ने जो वीरता और साहस दिखाया वो मातृभूमि के लिए अगाध प्रेम की पराकाष्ठा थी।
असम के लोगों ने आक्रमणकारियों का सामना किया और उन्हें कई बार हराया। मुगलों ने गुवाहाटी पर अधिकार कर लिया, लेकिन लचित बोरफुकन जैसे वीरों ने इसे अत्याचारियों से मुक्त करा लिया।
सराईघाट में लचित बोरफुकन द्वारा दिखाई गई बहादुरी मातृभूमि के प्रति उनके गहरे प्रेम को दर्शाती है। लचित बोरफुकन की वीरता और उनकी निडरता असम की पहचान है।
लाचित बारफूकन भी ऐसे वीर थे। उन्होंने दिखाया कि कट्टरता और आतंक के हर आग का अंत हो जाता है, लेकिन भारत की जीवन ज्योती अमर बनी रहती है। जब कोई मुश्किल दौर, चुनौती खड़ी हुई तो उसका मुकाबला करने के लिए कोई न कोई विभूति अवतरित हुई। हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान बचाने के लिए संत और मनीषी आए। भारत को तलवार की जोर से कुचलने का मंसूबा पाले, आक्रमणकारियों का मां भारती की कोख से जन्मे वीरों ने सामना किया।
भारत का इतिहास सिर्फ गुलामी का इतिहास नहीं है, ये योद्धाओं का इतिहास है... भारत का इतिहास जय का है, वीरता का है, बलिदान का है, महान परंपरा का है। आजादी के बाद भी हमें वही इतिहास पढ़ाया गया जिसको गुलामी के कालखंड में साजिशन रचा गया। आजादी के बाद आवश्यकता थी कि गुलामी के एजेंडे को बदला जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
क्या लचित का शौर्य मायने नहीं रखता क्या? इतिहास को लेकर, पहले जो गलतियां हुई... अब देश उनको सुधार रहा है। यहां दिल्ली में हो रहा ये कार्यक्रम इसका प्रतिबिम्ब है। लचित का जीवन हमें प्रेरणा देता है कि हम व्यक्तिगत स्वार्थों को नहीं देश हित को प्राथमिकता दें। उनका जीवन प्रेरणा देता है कि हम परिवारवाद से ऊपर उठ देश के बारे में सोचें। उन्होंने कहा था कि कोई भी रिश्ता देश से बड़ा नहीं होता। आज का भारत 'राष्ट्र प्रथम' के आदर्श को लेकर आगे बढ़ रहा है। हमारी ये जिम्मेदारी है कि हम अपनी इतिहास की दृष्टि को केवल कुछ दशकों तक सीमित ना रखें।
हमें भारत को विकसित और पूर्वोत्तर को भारत के सामर्थ का केंद्र बिंदु बनाना है। मुझे विश्वास है कि वीर लचित की जन्म जयंती हमारे इन संकल्पों को मजबूत करेगी और देश अपने लक्ष्यों को प्राप्त करेगा।
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