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ISRO के पूर्व वैज्ञानिकों की प्रेस कांफ्रेंस, किया ये बड़ा दावा
jantaserishta.com
25 Aug 2022 3:19 AM GMT
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक
नई दिल्ली: आर माधवन की फिल्म 'रॉकेट्री: द नम्बि इफेक्ट' (Rocketry The Nambi Effect) ने देशभर में खूब तारीफें बटोरी, लेकिन अब फिल्म में किए गए दावों पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. ये प्रश्न किसी और ने नहीं, बल्कि इसरो के ही कुछ पूर्व वैज्ञानिकों ने उठाए हैं.
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में बुधवार को इसरो के पूर्व वैज्ञानिकों के ग्रुप ने कहा, 'फिल्म रॉकेट्री में दिखाया गया है कि नंबी नारायणन की गिरफ्तारी के कारण देश को क्रायोजेनिक इंजन बनाने में देरी का सामना करना पड़ा और इससे देश को वित्तीय नुकसान हुआ. लेकिन ये दावा पूरी तरह से गलत है.'
वैज्ञानिकों ने कहा, 'नंबी नारायणन ने दावा किया है कि रॉकेट्री में सब कुछ सच दिखाया गया है, लेकिन फिल्म में दिखाए गए बहुत से सीन का सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है'. उन्होंने यह भी दावा किया कि नंबी नारायण को इसरो में कि गए उनके कार्यों के आधार पर पद्म भूषण मिला है.
प्रेस कांफ्रेंस कर वैज्ञानिकों के ग्रुप ने बताया कि इसरो ने अस्सी के दशक के मध्य में क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. इसके प्रभारी ईवीएस नंबुथिरी थे. नंबूथिरी के नेतृत्व में एक ग्रुप ने इसके 12 खंड विकसित किए थे. उस समय नंबी नारायणन का क्रायोजेनिक्स से कोई लेना-देना नहीं था. बाद में वासुदेवन गांधी के नेतृत्व में क्रायोजेनिक इंजन का विकास शुरू हुआ, लेकिन नंबी नारायण उस टीम का हिस्सा नहीं थे.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, 'नंबी नारायणन ने यह भी दावा किया है कि विक्रम साराभाई ने उन्हें अमेरिका के प्रेस्टन यूनिवर्सिटी में पीजी के लिए भेजा था, लेकिन यह सच नहीं है. जिस वैज्ञानिक को भेजा गया था, वो एलपीएस के निदेशक मुथुनायकम थे.
वैज्ञानिकों के मुताबिक नंबी नारायणन ने 1968 में इसरो जॉइन किया.उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के अधीन केवल कुछ महीनों के लिए काम किया था. लेकिन आरोप के मुताबिक नंबी नारायणन ने फिल्म में दावा किया है कि उन्होंने एक बार अब्दुल कलाम को भी गलत फैसला लेने से रोका था.
एलपीएससी के पूर्व निदेशक मुथुनायकम ने कहा, 'जब 1990 में एलपीएससी में क्रायोजेनिक प्रोपल्शन सिस्टम परियोजना शुरू हुई थी, तब मैंने नंबी नारायणन को परियोजना निदेशक नियुक्त किया था'.
क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करने के लिए 1993 में रूस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. वासुदेवन गांधी को रूस के साथ समझौते की शर्तों पर बातचीत करने का काम सौंपा गया था. उनके ही नेतृत्व में एक दल रूस गया था.
हालांकि बाद में अमेरिका के दबाव के चलते रूस समझौते से पीछे हट गया था. दिसंबर 1993 में रूस के साथ फिर से बातचीत के बाद समझौते का नवीनीकरण किया गया. तकनीक को स्थानांतरित करने के बजाय, इंजन को स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया.
नंबी नारायणन ने नवंबर 1994 में सेवानिवृत्ति का आवेदन दिया था. उसी महीने गिरफ्तारी के बाद उन्हें क्रायोजेनिक टीम से बाहर कर दिया गया था. वैज्ञानिकों के मुताबिक 1994 में एलपीएससी छोड़ने के बाद नंबी नारायणन का क्रायोजेनिक विकास से कोई लेना-देना नहीं था.
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह दावा भी गलत है कि विकास इंजन को नंबी नारायणन ने विकसित किया था. इसे फ्रांस के वाइकिंग इंजन ने विकसित किया गया था. फ्रांस के साथ एक समझौते पर 1974 में हस्ताक्षर किए गए थे. नंबी नारायणन उस समूह के प्रबंधक थे जो फ्रांस गया था. नंबी नारायण ने फ्रांस में मैनेजमेंट का काम किया. वैज्ञानिकों के मुताबिक तकनीकी कार्य दूसरे लोगों ने किया है.
इस प्रेस कांफ्रेंस में डीआर एई मुथुनायकम संस्थापक निदेशक, एलपीएससी, इसरो, डी, शशिकुमार जो क्रायोजेनिक इंजन के निदेशक थे, ईवीएस नंबूथिरी जो क्रायोजेनिक इंजन के परियोजना निदेशक थे, श्रीधरदास (पूर्व सहयोगी निदेशक एलपीएसई), डॉ आदिमूर्ति (पूर्व सहयोगी निदेशक वीएसएससी) डॉ. मजीद (पूर्व उप निदेशक वीएसएससी), जॉर्ज कोसी (पूर्व परियोजना निदेशक पीएसएलवी), कैलासनाथन (पूर्व समूह निदेशक क्रायो स्टेज) और जयकुमार (पूर्व निदेशक गुणवत्ता आश्वासन) ने भाग लिया.
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