दिल्ली। पांच राज्यों के चुनावी-नतीजे आने के फौरन बाद ही देश की सियासत फिर गरमाने वाली है क्योंकि देश के दो महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों के लिए चुनाव होने हैं. जुलाई महीने में देश के राष्ट्रपति का और अगस्त में उप राष्ट्रपति का चुनाव होना है. लिहाज़ा, इन पांच राज्यों के नतीजों पर बहुत हद तक ये दारोमदार रहेगा कि इन दोनों पदों पर मोदी सरकार के नेतृत्व वाले एनडीए का ही व्यक्ति आसीन होगा या फिर उसे विपक्षी दल से चुनौती मिलेगी.
फिलहाल एनडीए को सांसद और राज्यों की विधानसभाओं में बहुमत हासिल है.लेकिन पंजाब को छोड़कर बाकी चार राज्यों यानी उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में नतीजे अगर बीजेपी के अनुकूल नहीं आये, तब इन दोनों अहम पदों के लिए होने वाले चुनाव का गणित कुछ गड़बड़ा सकता है, जिसके कारण एनडीए के लिए ये मुकाबला कड़ा भी बन सकता है.पांच साल पहले साल 2017 में जब इन दोनों पदों के लिए चुनाव हुए थे, तब पंजाब को छोड़ बाकी चारों राज्यों में बीजेपी यानी एनडीए की ही सरकार थी, लिहाज़ा उसके पास पूर्ण बहुमत था और विपक्ष के लिए वह चुनाव महज़ औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं था.
राष्ट्रपति के चुनाव में संसद के दोनों सदनों के अलावा राज्य के विधानसभा सदस्य भी मतदाता होते हैं, जबकि उपराष्ट्रपति का चुनाव दोनों सदनों के सांसद करते हैं. इसीलिये इन पांच राज्यों के चुनावी-नतीजे राष्ट्रपति चुनाव के लिहाज से भी मोदी सरकार के लिए बेहद अहम समझे जा रहे हैं.
हालांकि इन पांच विधानसभाओं के नतीजे चाहे जो आयें लेकिन नागपुर से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में अभी से ये सवालिया चर्चा छिड़ पड़ी है कि देश का अगला राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति आखिर कौन होगा? सवाल उठ रहा है कि मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ही पांच साल का दूसरा कार्यकाल मिलेगा या उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू को प्रमोशन देकर उन्हें राष्ट्रपति बनाया जायेगा या फिर इन दोनों ही पदों पर कोई नया चेहरा लाया जायेगा?
वैसे बता दें कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ही लगातार दो बार इस पद पर चुने गए थे.वे 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962 तक इस पद पर रहे.उनके बाद किसी और को यह मौका नहीं मिला.शायद इसलिये कि उस दौर के बाद आई सरकारों ने पांच साल का कार्यकाल पूर्ण होते ही राष्ट्रपति की सेवानिवृति को एक तरह की परंपरा बना दिया,जो अब तक जारी है.मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद आगामी 24 जुलाई को सेवानिवृत्त हो जायेंगे.
अगर वे दोबारा चुन लिए जाते हैं,तो वे भारतीय गणतंत्र के 15वें ऐसे राष्ट्रपति बन जाएंगे,जो डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की मिसाल बनेंगे. लेकिन कोविंद को फिर से एनडीए का उम्मीदवार बनाये जाने की संभावना इसलिये भी नही है कि वे पीएम मोदी के बनाये उस अलिखित नियम के दायरे से बाहर हो चुके हैं.सत्ता में आते ही उन्होंने नियम बनाया था कि 75 वर्ष से अधिक उम्र के नेता को कोई पद नहीं दिया जाएगा.जबकि राष्ट्रपति कोविंद पिछले साल 1 अक्टूबर को 76 वर्ष के हो गए हैं.लिहाज़ा,इस नियम के मुताबिक उन्हें तो इस रेस से बाहर ही समझा जाना चाहिए.
वैसे सच तो ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने किसी भी अहम सियासी फैसले की भनक कभी मीडिया को नहीं लगने दी और अक्सर उन्होंने अपने हर फ़ैसले से सबको चौंकाया भी है. लिहाज़ा माना जा रहा है कि इस बार भी इन दोनों पदों के लिए वे कोई ऐसे नाम सामने ले आयें कि जिसे सुनकर हर कोई चौंक जाये,तो उसमें हैरानी वाली बात नहीं होगी.
हालांकि बीजेपी के नेता भले ही सार्वजनिक रुप से न स्वीकारें लेकिन दबी जुबान से तो मानते ही रहे हैं कि संगठन और सत्ता से जुड़े महत्वपूर्ण फैसलों में आरएसएस यानी संघ का हस्तक्षेप हमेशा से ही रहा है और उनके दिए सुझाव को इतनी आसानी से ठुकराने की हिमाकत भी अभी तक तो कोई नहीं कर पाया है.दरअसल,पहले जनसंघ और उसके बाद साल 1980 में बीजेपी की स्थापना से लेकर अब तक संघ ही इसका 'भाग्यविधाता' रहा है और आगे भी रहेगा क्योंकि इस सच को कोई झुठला नहीं सकता कि अगर हर चुनाव में देश भर में फैले संघ के लाखों स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से सक्रिय न हुए होते,तो बीजेपी का केंद्र की सत्ता में आने का सपना भी अधूरा रह जाता.इसीलिये बलराज मधोक और उसके बाद अटल-आडवाणी के युग से लेकर अभी तक संघ प्रमुख से मिले किसी सुझाव को दरकिनार कर देने की हिम्मत चाहते हुए भी कोई जुटा नहीं पाया.
वैसे इन दोनों पदों के लिए चेहरे कौन होंगे,यह तो जून में शुरु होने वाली नामांकन प्रक्रिया से पहले ही पता चलेगा. लेकिन सियासी गलियारों में चल रही खुसर-फुसर पर गौर करें,तो दो नाम इस वक़्त चर्चा में हैं. पहला नाम लोकसभा के स्पीकर ओम बिड़ला का है,जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें इन दोनों में से किसी एक पद के लिए मैदान में लाया जा सकता है. अगर वैंकेया नायडू को प्रमोशन मिलता है,तो फिर ओम बिड़ला को उप राष्ट्रपति बनाये जाने के लिए संघ के एक खेमे की तरफ से पुरजोर वकालत किये जाने की बातें दिल्ली के गलियारों में तैर रही हैं.हालांकि ऐसी खबरों के सूत्रधार तो ये भी दावा करते हैं कि हो सकता है कि ओम बिड़ला ही अगले राष्ट्रपति के उम्मीदवार बन जाएं.
उस सूरत में उप राष्ट्रपति पद के लिए एक ऐसा नाम चर्चा में है,जो संवैधानिक पद पर रहते हुए अपने मुखर बयानों से देश-विदेश के मीडिया की सुर्खियों में हैं.वे हैं,पश्चिम बंगाल के गवर्नर जगदीप धनखड़ जो ममता बनर्जी सरकार के लिए गये कुछ फैसलों को कथित रुप से गलत ठहराते हुए उसकी सार्वजनिक आलोचना भी कर चुके हैं. लेकिन यहां एक पेंच ये है कि इन दोनों का ही नाता राजस्थान से है. ओम बिड़ला कोटा से हैं,तो जगदीप धनखड़ झुंझनू में जन्में हैं. लिहाज़ा दो उच्चतम संवैधानिक पदों पर एक ही राज्य के दो लोगों को आसीन कराने की गलती तो कोई भी सरकार नहीं करेगी. इसलिये कयास यही लगाए जा रहे हैं कि सियासत को चौंकाने वाली और अपनी ही बनाई चाणक्य नीति से हटकर पीएम मोदी अगर इस बार ऐसा कोई फैसला लेते हैं,तो इन दोनों में से किसी एक चेहरे को राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है.
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