दरअसल कांग्रेस और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के बीच संगठन को मजबूत बनाने और रणनीति को लेकर चर्चा अंतिम दौर में है। पार्टी प्रशांत किशोर की चुनावी कार्ययोजना को लेकर गंभीर है। यह तय है कि प्रशांत जल्द कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं, लेकिन पार्टी नेता के तौर पर रणनीति को अमलीजामा पहनाना आसान नहीं है, क्योंकि छह माह के भीतर ही गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव हैं। पार्टी के चुनाव रणनीतिकार के तौर पर प्रशांत किशोर की पहली परीक्षा गुजरात में होगी।
गुजरात चुनाव से पहले कांग्रेस के कई विधायक और नेता पार्टी छोड़ सकते हैं। इसलिए पार्टी के अंदर प्रशांत किशोर के विरोधियों का कहना है कि उन्हें सिर्फ इसलिए चुनाव रणनीतिकार की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है, ताकि गुजरात हारने की स्थिति में शीर्ष नेतृत्व पर कोई सवाल न उठे। यही वजह है कि पार्टी चुनाव में प्रशांत किशोर को अपनी रणनीति पर अमल करने की पूरी छूट देने को तैयार है। प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल करने की हिमायत करने वाले नेता इस दलील को खारिज करते हैं। उनका तर्क है कि ऐसा होता कि प्रशांत कांग्रेस के साथ इतनी लंबी चर्चा नहीं करते, क्योंकि वह हमेशा समझादारी से निर्णय लेते रहे हैं। साल 2017 के पंजाब चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के लिए काम किया और जीत दर्ज की। इस बार भी वह पार्टी से जुड़े थे, पर बाद में उन्होंने खुद को अलग कर लिया था।