निर्मल रानी
पिछले दिनों हरियाणा के मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने फ़रीदाबाद में एक कार्यक्रम में फ़रमाया कि -'हमें 5 एस के सिद्धांत पर चलते हुये आगे बढ़ना है। और इस 5 एस को उन्होंने शिक्षा ,स्वास्थ्य स्वावलंबन,सुरक्षा और स्वाभिमान जैसे शब्दों से परिभाषित किया। सुनने में तो मुख्यमंत्री महोदय की बातें किसी दार्शनिक के प्रवचन जैसी लगती हैं। परन्तु जब उनके इस 'प्रवचन ' की तुलना उन्हीं के द्वारा पूर्व में दिये गये उनके कई बयानों से की जाये तो उनके इस '5 एस' के सिद्धांत पर चलने की सलाह पर सवालिया निशान खड़ा होता है। उनका ताज़ा तरीन बयान जो पिछले दिनों उन्होंने भिवानी में एक कार्यक्रम के दौरान तब दिया जब उनसे एक पत्रकार द्वारा यह पूछा गया कि पुलिस भर्ती में अभी तक सभी उम्मीदवारों को नियुक्ति क्यों नहीं मिली? इस प्रश्न के जवाब ने मुख्यमंत्री ने कहा कि- 'आप में से ही कुछ लोग थे जो कोर्ट चले गए और जज ने स्टे लगा दिया। एक जज है उनके माथे में कुछ गड़बड़ है उसे जल्द ठीक करेंगे'। न्यायपालिका के जज के बारे में उनके द्वारा ऐसी निम्नस्तरीय व धमकी भरी भाषा का प्रयोग क्या उनके '5 एस' के सिद्धांत में से शिक्षा,सुरक्षा और स्वाभिमान की किसी श्रेणी में फ़िट बैठता है ? एक जज के विरुद्ध किसी मुख्यमंत्री जैसे ज़िम्मेदाराना पर बैठे व्यक्ति के बोल उस जज की सुरक्षा व स्वाभिमान तथा स्वयं मुख्यमंत्री की 'शिक्षा ' पर सवाल खड़ा नहीं करते ? इसके पहले भी फ़रीदाबाद में ही खट्टर की कश्मीर से हरियाणा के लिए बहू लाने के लिए दिए गए बयान को लेकर बहुत आलोचना हुई थी। खट्टर ने उस समय कहा था कि -'अब हरियाणा के लोग भी कश्मीरी बहू ला सकते हैं। आजकल लोग कह रहे हैं कि कश्मीर का रास्ता साफ़ हो गया है। अब हम कश्मीर से लड़कियां लाएंगे'। खट्टर के इस बयान की चौतरफ़ा निंदा की गयी थी तथा दिल्ली महिला आयोग ने खट्टर को नोटिस तक भेज दिया था। यहां भी इस महान दार्शनिक के '5 एस' के सिद्धांत में कश्मीरी लड़कियों के स्वावलंबन,सुरक्षा और स्वाभिमान चिंतनीय हैं । '5 एस' के सिद्धांत के इन्हीं प्रणेता मनोहर लाल खट्टर ने किसान आंदोलन के दौरान चंडीगढ़ में इकठ्ठा सत्ता के पक्ष के मुट्ठी भर किसानों को आंदोलनकारी किसानों के विरुद्ध उकसाते हुये कहा था कि-अपने-अपने इलाक़े के एक हज़ार लोग लट्ठ लेकर निकलें और आंदोलन कर रहे किसानों का इलाज करें। आगे उन्होंने यह भी कहा कि उग्र किसानों का जवाब दो। दो-चार महीने जेल में रह जाओगे तो बड़े नेता बन जाओगे। उन्होंने लोगों को भड़काते हुये यह भी कहा कि ज़मानत की परवाह न करो। तुम्हारा कुछ नहीं होगा,बल्कि दो चार महीने जेल में रहोगे और आकर बड़े नेता बन जाओगे।' दूसरी तरफ़ यही खट्टर साहब लोगों को सुरक्षा और स्वाभिमान के सिद्धांत पर चलते हुये आगे बढ़ने की सीख देते हैं?
अब ज़रा भारतीय जनता पार्टी के महासचिव और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर नज़रें गड़ाये बैठे कैलाश विजयवर्गीय के प्रवचन भी सुन लीजिये। आप फ़रमाते हैं कि - ‘‘मैं रात में जब (बाहर) निकलता हूं और पढे़-लिखे नौजवानों और बच्चों को (नशे में) झूमते हुए देखता हूं, तो सच में ऐसी इच्छा होती है कि (गाड़ी से) उतरकर इनको पांच-सात लगाकर नशा उतार दूं। एक अन्य कार्यक्रम में इन्हीं संस्कारी महासचिव महोदय ने कहा, कि ‘‘हम महिलाओं को देवी बोलते हैं, लेकिन लड़कियां भी इतने गंदे कपड़े पहनकर निकलती हैं कि उनमें देवी का स्वरूप ही नहीं दिखता, बिल्कुल शूर्पणखा लगती हैं..सच में। भगवान ने इतना अच्छा और सुंदर शरीर दिया है..तुम ज़रा अच्छे कपड़े पहनो यार।’’ विजयवर्गीय ने अपने 'प्रवचन ' में यह भी कहा कि ‘‘मैं तो दादा-दादी, मां-बाप सबसे कहता हूं कि शिक्षा जरूरी नहीं है, संस्कार ज़रूरी हैं।’’ याद रहे कि पौराणिक ग्रंथ रामायण में लंकापति रावण की बहन को शूर्पणखा के रूप में वर्णित किया गया है और इसी ग्रन्थ के अनुसार भगवान राम के प्रति शूर्पणखा के अमर्यादित आचरण के कारण राम के भाई लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काट दी थी। ज़रा सोचिये सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ने व पढ़ाने वाले इन नेताओं को नारी शक्ति शूर्पणखायें नज़र आती हैं? इन्हीं के 'संस्कारी' बेटे विधायक आकाश विजय वर्गीय ने जून 2019 में भोपाल के एक निगम अधिकारी की बल्ले से पिटाई कर दी थी। और अपने इस आपराधिक कारनामे पर उन्होंने गर्व से यह डायलॉग भी सुनाया था -'पहले आवेदन, फिर निवेदन और फिर दे दनादन के तहत कार्रवाई की जाएगी'। यानी आगे के लिये भी अधिकारियों को चेतावनी दी थी। इस आपराधिक कृत्य में विधायक जी जेल भी गये थे।
इसी तरह मार्च 2021 में उत्तरांचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीर्थ सिंह रावत ने एक विवादित बयान देते हुये कहा था कि -' एक तरफ़ जहां पश्चिम के देश भारत के योग और अपने तन को ढकने की परंपरा को देखते हैं, वहीं 'हम नग्नता के पीछे भागते हैं.' रावत ने कहा था कि , ' क़ैंची से संस्कार- घुटने दिखाना, फटी हुई डेनिम पहनना और अमीर बच्चों जैसे दिखना- ये सारे मूल्य बच्चों को सिखाए जा रहे हैं। अगर घर से नहीं आ रहा है, तो कहां से आ रहा है? इसमें स्कूल और टीचरों की क्या ग़लती है? हम फटी हुई जींस में, घुटना दिखा रहे अपने बेटे को लेकर कहां जा रहे हैं ? लड़कियां भी कम नहीं हैं, घुटने दिखा रही हैं, क्या ये अच्छी बात है?' उसके बाद उन्हीं के मंत्रिमंडल के सहयोगी गणेश जोशी ने तो यहाँ तक कहा था कि -'महिलाओं को अच्छे बच्चे पालने-पोसने पर ध्यान देना चाहिए। महिलाएं बात करती हैं कि वो जीवन में क्या-क्या करना चाहती हैं लेकिन उनके लिए सबसे जरूरी है कि वो अपने परिवार और अपने बच्चों का ख़याल रखें.'। फटी हुई जीन निश्चित रूप से हर एक को नहीं भाती,परन्तु जिन्हें यह फ़ैशन पसंद है उन्हें टोकने झाँकने का अधिकार भी किसी को नहीं न ही शूर्पणखा का सर्टीफ़िकेट देने का। रहा सवाल महिलाओं को परिवार और अपने बच्चों का ख़याल रखने की सलाह का तो इस विषय पर तालिबानी सोच और इन तथाकथित 'संस्कारियों ' की सोच में अंतर ही क्या है ?
कभी बिहार के मुख्यमंत्री फ़रमाते हैं कि ‘जो पीएगा वो मरेगा’ तो कभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि ’10 मार्च (चुनाव तिथि ) के बाद सारी गर्मी शांत करवा देंगे’। कभी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा राहुल गांधी की बढ़ी हुई दाढ़ी को लेकर उनकी तुलना सद्दाम हुसैन से करने लगते हैं। तो कभी किसी नेता का ख़ून खौलने लगता है तो कभी सत्ता में आने पर अपराधियों को उल्टा लटकाने की धमकी दी जाती है तो कभी मिट्टी में मिलाने की भाषा इस्तेमाल होती है। अभी पिछले दिनों एक केंद्रीय मंत्री ने तो चयनित आई ए एस अधिकारियों को डकैत तक कह डाला। इस तरह की भाषा सुनकर तो यही लगता है कि भले ही इनके पास पद ज़िम्मेदाराना क्यों न हों परन्तु इनके बोल जाहिलाना ही हैं।