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'रामचरित मानस पर राजनीति से लोगों की आस्था को पहुंच सकती है ठेस'

jantaserishta.com
29 Jan 2023 5:50 AM GMT
रामचरित मानस पर राजनीति से लोगों की आस्था को पहुंच सकती है ठेस
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लखनऊ (आईएएनएस)| श्रीरामचरित्र मानस को लेकर इन दिनों देश भर में सियासी तूफान मचा हुआ है। जानकारों की मानें तो राजनीतिक दलों के आपसी टकराव के बीच इस ग्रंथ को पीसा जा रहा है। कुछ लोग कहते हैं रामचरितमानस कहीं आस्था और अस्मिता के बीच के विवादों में तो नहीं फंस रही।
जानकारों की मानें तो पहली बार रामचरित मानस राजनीतिक आलोचना विमर्श का केंद्र बना है। हालांकि इसकी चौपाइयों पर सवाल पहले भी उठे हैं लेकिन इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई। शरद नवरात्रि में कहीं कहीं इसके सुन्दर कांड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। रामायण मंडलों द्वारा मंगलवार और शनिवार को इसके सुन्दरकांड का पाठ किया जाता है।
इतिहासकारों की मानें तो रामचरितमानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा 16वीं सदी में रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को अवधी साहित्य (हिंदी साहित्य) की एक महान कृति माना जाता है। रामचरितमानस की लोकप्रियता बहुत है। रामचरितमानस में 12,800 पंक्तियां हैं, जो 1,073 दोहों और सात कांड में विभाजित हैं। बालकांड, अयोध्याकांड, अरंयकांड, किष्किन्धाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड।
हालांकि उत्तरकांड को लेकर विवाद है। माना जाता है कि वाल्मीकि रामायण में यह बाद में जोड़ा गया तो मानस में भी यह बाद का कांड ही माना जाता है। जबकि वाल्मीकि रामायण लंकाकांड पर समाप्त हो जाती है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक के. विक्रम राव कहते हैं कि बुनियादी तौर पर इस पर सवाल उठना प्रसंगहीन है। 500 साल पुराना ग्रंथ है। यह हर घर में शादियों से प्रचलन में रहा है। अब अचानक 2023 में इस पर सवाल उठना मकसद को दर्शाता है। मकसद है जो हिंदू संगठित हो रहे हैं, उसकी दृष्टि यह उनके वोट पाने का प्रयास है। जो सेकुलर हिन्दू हैं वो इस कथन का समर्थन कर सकते हैं।
राव कहते हैं कि राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में देखें तो रामचरित मानस कभी विवाद का विषय नहीं रहा है। राममनोहर लोहिया खुद नास्तिक थे, उन्होंने रामायण मेला शुरू किया था। सपा संस्थापक मुलायम सिंह भी इस मेले में जाते थे। उनकी पार्टी के लोग पता नहीं क्यों अब सवाल उठा रहे हैं।
एक अन्य विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि राममंदिर की चर्चा अगले कुछ माह में शुरू हो जाएगी। जनवरी 2024 में उद्घाटन की बात सामने आ रही है। मंदिर निर्माण भी मुद्दा हो सकता है। ऐसे में हिंदू वर्ग का समर्थन सत्तारूढ़ दल को जा सकता है। विपक्ष इस समर्थन को कमजोर करने का प्रयास जरूर करेगा। इसीलिए वो लोग राममंदिर में सवाल न उठाकर उनके ग्रंथ और चरित्र पर प्रश्न कर रहे हैं।
साहित्य भूषण से सम्मानित और आध्यात्म के जानकर प्रमोदकान्त मिश्र कहते हैं कि भगवान राम के चरित्र पर प्रश्न उठाना मूर्खता है। यह राजनीति का विषय नहीं है। सस्ती लोकप्रियता पाने वाले इस पर राजनीति करते हैं। यह लोकास्था का विषय है। घर घर पढ़ी जाने वाली पुस्तक की लोकमान्यता है। 500 वर्ष पूर्व गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह महाकाव्य स्वार्थ सिद्ध का साधन नहीं बन सकता।
ढोल गवांर शूद्र पशु नारी। सकल ताड़न के अधिकारी।'' में ताड़न के अर्थ को समझने की जरूरत है। ऋषियों और कथावाचकों द्वारा की गई व्याख्या ताड़ना का अर्थ है ²ष्टि रखना। ढोलक के सुर के लिए अच्छी ²ष्टि रखने की जरूरत है, पीटने से फट सकता है। पशुओं पर नजर नहीं रखेंगे तो दूसरे का खेत की फसल खराब कर सकती है। मूर्ख व्यक्ति पर ²श्य रखना जरूरी है। नारी पर नजर रखना पड़ता है। अगर किसी की बहन बेटी स्कूल कालेज जाती है, उन्हें देखना पड़ता है। समय समय पर विद्यालय में उनके अभिवावक देख रेख करते हैं। धर्मग्रंथ पर सवाल उठना सस्ती लोकप्रियता पाने का तरीका है।
सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डाक्टर आशुतोष वर्मा कहते हैं कि राम के नाम से किसी को कोई परेशानी नहीं है। कोई ग्रंथ अगर समाज को विभाजित करता है तो उस पर आपत्ति होती है। लेकिन यह कार्य राजनीतिक व्यक्ति का नहीं बल्कि धर्मगुरुओं का है। वह अपने हिसाब से निर्णय लें।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अवनीश त्यागी कहते हैं। रामचरितमानस हिंदुओं की आस्था का ग्रंथ है। इसे महाकाव्य माना गया है। इसका विरोध करना मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है।
रामचरित मानस को लेकर कर्नाटक के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और लेखक केएस भगवान ने भगवान राम के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी कर विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा, वह सीता के साथ दिन में बैठकर शराब पीते थे इसलिए भगवान राम आदर्श नहीं हैं।
बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने पटना में नालंदा ओपन विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए रामचरितमानस को नफरत फैलाने वाला और समाज को बांटने वाला ग्रंथ बताया है।
यूपी के सपा नेता व विधानपरिषद सदस्य स्वामी प्रसाद ने कहा कि रामचरितमानस में शूद्रों का अपमान किया गया। उन्होंने यह कहा कि ऐसी पुस्तकों से इन दोहों चौपाइयों को हटाना चाहिए या फिर इन्हें प्रतिबंधित करना चाहिए।
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