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वारेन हेस्टिंग्ज़ के दिमाग की उपज थी पुलिसिंग, जानिए इतिहास से जुड़ी कुछ अहम बातें

Nilmani Pal
8 Feb 2022 2:21 AM GMT
वारेन हेस्टिंग्ज़ के दिमाग की उपज थी पुलिसिंग, जानिए इतिहास से जुड़ी कुछ अहम बातें
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भारत के आजाद होने से वर्षों पहले ही पुलिस व्यवस्था वजूद में आ गई थी. अंग्रेजों ने जब भारत में सत्ता पर काबिज होना शुरू किया तो विरोधियों के दमन के लिए अपनी बेरहम पुलिस का ही इस्तेमाल किया था. वही पुलिस व्यवस्था देश के आजाद होने के बाद भी लागू है. हालांकि समय-समय पर इसमें फेरबदल भी किए गए. आइए जानते हैं भारत में पुलिस के इतिहास से जुड़ी कुछ अहम बातें.

प्राचीन भारत के इतिहास को खंगाला जाए तो कहीं-कहीं दंडधारी शब्द का ज़िक्र मिलता है. ये शब्द कुछ खास तरह के लोगों के लिए इस्तेमाल होता था. जो आम जनता की समस्याओं का निदान और फैसले कराने में अहम भूमिका निभाते थे. फिर आगे चलकर गांव वजूद में आ गए. जहां धीरे-धीरे व्यवस्था ग्राम पंचायतों पर निर्भर होने लगी. इसके बाद राजा महाराजाओं के वक्त में गांव में आपसी झगड़ों को निपटारा करने के लिए ग्रामीक नामक अधिकारी की नियुक्ति होने लगी. इस काम में उसकी मदद गांव के बड़े बुजुर्ग किया करते थे.

ये जो ग्रामीक थे, इनका चुनाव पंचायत के बीच से ही होता था. इसी तरह से फिर आधा से एक दर्जन तक गांवों का समूह मिलाकर गोप व्यवस्था चलाई जाती थी. और नगरीय इलाकों में इसी काम के लिए स्थानिक नाम के अधिकारी होते थे. ग्रामीक और स्थानिक अधिकारियों के कंधों पर ही अपराध की रोकथाम की जिम्मेदारी हुआ करती थी. उनके भरोसे ही लोग अपना काम और कारोबारा किया करते थे. फिर मुगलों का राज आया. उनके जमाने में भी ग्रामीक और स्थानिक अधिकारियों की परंपरा चलती रही. मगर मुगल काल में ग्राम के मुखिया और चौकीदार भी वजूद में आ गए. मुगल शासन के लिए मुखिया लगान वसूलने और झगड़ों का निपटारा आदि करने का काम किया करते थे और वे चौकीदारों की मदद से गांव में शांति व्यवस्था बनाए रखते थे.

मुगल काल में चौकीदारों को दो श्रेणी में रखा गया था. एक उच्च होते थे और दूसरे साधारण. उच्च श्रेणी के चौकीदार अपराध और अपराधियों की जानकारी रखते थे. गांव में सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान देते थे. और सबसे अहम बात ये कि एक गांव से दूसरे गांव तक जाने वाले यात्रियों को हिफाजत से पहुंचाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होती थी. जबकि साधारण चौकीदार का काम भी साधारण ही था. वो खेतों और फसलों की रक्षा करते थे. खेतों की नापजोख का काम भी उनकी जिम्मेदारी था.

मुगल शासन में गांव का मुखिया अपराध की रोकथाम और शासन से जुड़े काम तो करता ही था, साथ ही वह नजदीक के गांवों के मुखियाओं के संपर्क में भी रहा करता था. वे सभी आपस में उनके इलाकों के अपराधियों और अपराध से जुड़े मामलों की जानकारी भी आपस में साझा करते थे. मुगल काल में ही राजदरबार के फरमान पर ग्रामीण इलाकों की देखरेख का काम करने के लिए फौजदार की तैनाती की जाने लगी. इसी तरह से मुगलों ने शहरी इलाकों की देखभाल के लिए कोतवाल की नियुक्ति करना शुरु किया. वहीं से कोतवाल शब्द चला आ रहा है. यही वजह के आज भी कई शहरों में नगर कोतवाली मौजूद हैं.

मुगलों के पतन के बाद भी भारत में चौकीदार, मुखिया, कोतवाल और फौजदार जैसी पुरानी परंपरा चलती रही. लेकिन जब अंग्रेजों ने सन् 1765 में बंगाल की दीवानी पर कब्जा कर लिया. तब आमजन से जुड़े मामले भी उनकी जिम्मेदारी हो गए. तभी वारेन हेस्टिंग्ज़ नाम के ब्रिटिश के दिमाग में पुलिसिंग का आइडिया आया, जिस पर वो काम करने लगे. नतीजा ये हुआ कि साल 1781 तक फौजदारों और चौकीदारों को मिलाकर उनकी मदद से पुलिस की रूपरेखा बनानी शुरु की गई. अंग्रेजों ने इस काम के लिए कुछ सामाजिक प्रयोग भी शुरु किए और आखिरकार वो सफल हो गए.

उस दौर के लार्ड कार्नवालिस का मानना था कि अपराध और अपराधियों की रोकथाम के लिए स्थायी पुलिस बल होना चाहिए. जिसे हर माह उसके काम के बदले में वेतन मिलना चाहिए. उनकी इसी सोच को अमली जामा पहनाया गया. जनपद के लिहाज से तैनात मजिस्ट्रेटों को फरमान जारी किया गया कि गर जिले को पुलिस के लिहाज से अलग-अलग इलाकों में बांटा जाए. हर इलाके की जिम्मेदारी दारोगा नामक अधिकारी को सौंपी जाए. माना ये भी जाता है कि वहीं से दारोगा पद और शब्द प्रचलन में आया. हालांकि दारोगा शब्द मुगलकालीन सेना में भी इस्तेमाल होता था. इसके बाद गांव के चौकीदारों को भी दारोगा के अधीन कर दिया गया.

यही वजह है कि आज हम जिस पुलिस व्यवस्था को देख रहे हैं, उसका जन्मदाता लॉर्ड कार्नवालिस को माना जाता है. ब्रिटिश काल से ही पुलिस व्यवस्था चली आ रही है. अब पुलिस अपराध की रोकथाम के साथ-साथ कानून व्यवस्था से जुड़े सभी काम देखती है. पुलिस के इस काम अहम इकाई है पुलिस थाने. वहीं से पुलिस के लिए बांटे गए इलाकों की निगरानी का काम होता है. थाने में तैनात थानेदार, कोतवाल या एसएचओ के आदेश पर थाने के अन्य पुलिस कर्मचारी अपने दायित्वों का पालन करते हैं.

अंग्रेजों ने पुलिस को ताकतवर और अनुशासित बनाने के लिए सन् 1861 में पुलिस एक्ट लागू किया था. उसी के आधार पर पुलिस व्यवस्था देश के सभी प्रदेशों में लागू की गई. इस व्यवस्था में प्रदेश पुलिस का मुखिया पुलिस महानिदेशक होता है. अंग्रेजों के वक्त में पुलिस का सबसे बड़ा पद पुलिस महानिरीक्षक का होता था. बाद में इसे निदेशक स्तर पर किया गया. और साथ ही उपमहानिरीक्षक, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और पुलिस अधीक्षक स्तर के जनपदीय पद सर्जित किए गए. अब हर जिले में पुलिस सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस यानी पुलिस अधीक्षक या डीसीपी के निर्देशन में काम करती है.


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