पुलिस ने तीन बाल मजदूरों को कराया मुक्त, बोले आर्थिक स्थिति ठीक नहीं
सिरोही। सिरोही आबूरोड, राजसमंद जन विकास संस्थान के प्रतिनिधियों ने कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन के सहयोग से जिले में विभिन्न बाल श्रम को लेकर जांच की। जिले के विभिन्न क्षेत्रों में लगे बच्चों एवं किशोरों की पहचान की गई, जिसकी सूचना आबूरोड थाना अधिकारी को दी गई.बलभद्र सिंह थाना अधिकारी ने तत्काल कार्रवाई करते हुए …
सिरोही। सिरोही आबूरोड, राजसमंद जन विकास संस्थान के प्रतिनिधियों ने कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन के सहयोग से जिले में विभिन्न बाल श्रम को लेकर जांच की। जिले के विभिन्न क्षेत्रों में लगे बच्चों एवं किशोरों की पहचान की गई, जिसकी सूचना आबूरोड थाना अधिकारी को दी गई.बलभद्र सिंह थाना अधिकारी ने तत्काल कार्रवाई करते हुए शनिवार को कैबहोटल बालाजी और कुणाल होटल में छापेमारी कर तीन बच्चों को बालश्रम से मुक्त कराया. जिनकी उम्र 13 से 15 साल है. बाल श्रम से मुक्त कराये गये बच्चों को संस्थान के प्रतिनिधियों द्वारा परामर्श दिया गया। जिसमें पाया गया कि परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण बच्चों को बाल मजदूरी करनी पड़ती है। नियोक्ताओं के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है और जांच जारी है। इसके बाद आगे की कार्यवाही जिला बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत की गई है.
राजसमंद जन विकास संस्थान, सिरोही की निदेशक शकुंतला पामेचा भी कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन के सहयोग से बाल श्रम और बंधुआ मजदूरी से निपटने के लिए ठोस प्रयास कर रही हैं। जो हमारे समाज को परेशान कर रहा है. दरअसल, संस्थान का उद्देश्य सिर्फ बच्चों को कठिन परिस्थितियों से बचाने तक ही सीमित नहीं है। एकीकृत बाल संरक्षण योजना के तहत, हमारा लक्ष्य प्रभावित बच्चों को तत्काल सहायता और बचाव प्रदान करना है और साथ ही उन्हें उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर समाज के ढांचे में एकीकृत करने का प्रयास करना है। उनका उद्देश्य और सामाजिक अधिकार इन बच्चों को सशक्त और शिक्षित करना है। ताकि किशोरावस्था के दौरान दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं या आपराधिक गतिविधियों के प्रति उनकी संवेदनशीलता कम हो सके। इसके अतिरिक्त, लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि इन बच्चों को विभिन्न सरकारी कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच प्राप्त हो जो उनके लिए उपलब्ध हैं, हालांकि बाल श्रम के पीछे का असली कारण परिवार की खराब आर्थिक स्थिति भी पाया गया है। ऐसे में विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं को ऐसे परिवारों की मदद करना जरूरी है।