भारत
देश में संसाधनों की किल्लत से जूझ रही पुलिस, 1 पुलिसकर्मी पर 641 व्यक्तियों की सुरक्षा का भार, पढ़े चौंकने वाले आंकड़े
jantaserishta.com
4 Feb 2021 9:26 AM GMT
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छत्तीसगढ़ की छलांग.
दुनिया के दूसरी सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश भारत में हर 100000 की आबादी पर औसतन 156 पुलिसकर्मी हैं. यानी कि देश में एक पुलिसकर्मी पर 641 व्यक्तियों की सुरक्षा का भार है.
हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर पुलिसकर्मियों की स्वीकृत संख्या प्रति एक लाख की आबादी पर 195 है. यानी कि सरकार ने 1 पुलिसकर्मी को 512 व्यक्तियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी है. लेकिन वास्तविकता कुछ और है. राष्ट्रीय स्तर पर प्रति एक लाख लोगों पर वास्तविक पुलिसकर्मियों की औसतन संख्या 151 ही है.
कई राज्यों में हालात और भी बुरे हैं. बिहार में मात्र 76 पुलिसकर्मियों पर 1 लाख लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है.
ये तथ्य इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 के अध्ययन में सामने आए हैं. हाल ही में टाटा ट्रस्ट ने इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 जारी की है. इस रिपोर्ट में राज्यों की न्याय करने की क्षमता का आकलन है. इंडिया जस्टिस रिपोर्ट हर राज्य में पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी मदद के रोल के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार करती है.
दरअसल भारत के राज्यों में पुलिसिंग व्यवस्था जवानों, अधिकारियों और संसाधनों की किल्लत से जूझ रही है. हालांकि पिछले तीन सालों में देश के आधे से अधिक राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में अधिकारियों की बहाली हुई है और स्थिति कुछ हद तक सुधरी है.
राष्ट्रीय स्तर पर हर 3 अधिकारी में 1 पद खाली
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2020 तक राष्ट्रीय स्तर पर 3 पुलिस अधिकारियों में से 1 पद खाली है. एमपी और बिहार में 2 में से 1 अधिकारी का पद खाली है.
कॉन्स्टेबल का हर 5 में से 1 पद खाली
राष्ट्रीय स्तर पर कॉन्स्टेबल का हर 5 में से 1 पद खाली है. तेलंगाना और पश्चिम बंगाल दोनों ही राज्यों में कॉन्स्टेबलों के 40 फीसदी पद भर्तियों का इंतजार कर रहे हैं.
पंजाब और महाराष्ट्र की पुलिस रैंकिंग में गिरावट
पिछले एक साल में पंजाब और महाराष्ट्र पुलिस रैंकिंग में जबर्दस्त रूप से पिछड़े हैं जबकि छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों ने छलांग लगाई है.
साल 2019 के इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में पंजाब जहां तीसरे नंबर पर था वहीं वो इस साल पिछड़कर 12 स्थान पर आ गया है. इसके पीछे की वजह बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में पुलिस पर सरकारी खर्च कम हुआ है, पिछले पांच साल में अधिकारियों और कॉन्स्टेबलों की वैकेंसी बढ़ी है. इसके अलावा यहां पुलिस आधुनिकीकरण पर होने वाला खर्च भी कम हुआ है.
महाराष्ट्र में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है. महाराष्ट्र 2019 में चौथे स्थान पर था जो इस बार पिछड़कर 13वें स्थान पर चला गया है. इंडिया जस्टिस रिपोर्ट कहती है कि महाराष्ट्र में पुलिस स्टेशनों तक गरीब आबादी नहीं पहुंच पा रही है. अधिकारियों और कॉन्स्टेबलों के खाली पदों की संख्या बढ़ रही है. पुलिसिंग सिस्टम में महिला अधिकारियों की हिस्सेदारी घट रही है.
छत्तीसगढ़ और झारखंड की छलांग
वहीं इस रैंकिंग में छत्तीसगढ़ ने जोरदार उछाल हासिल की है. छत्तीसगढ़ एक साल में 10 रैंक से ऊपर उठकर 10वें रैंक पर आ गया है. छत्तीसगढ़ ने अपने यहां कांस्टेबलों की भर्ती की है. यहां पर अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे को भरा गया है. राज्य में अधिकारियों और कॉन्स्टेबलों की रिक्तियां कम हुई है.
पुलिस रैंकिंग में कर्नाटक नंबर वन
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की पुलिस रैंकिंग में कर्नाटक को टॉप स्पॉट हासिल हुई है, कर्नाटक एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने अधिकारी और कॉन्स्टेबल भर्ती में SC/ST और ओबीसी कोटे की सभी सीटें भरी थी.
न्याय देने की क्षमता के आधार पर रैंकिंग
बता दें कि इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (भारतीय न्याय रिपोर्ट) एक पथप्रवर्तक प्रयास है जो भारतीय न्याय व्यवस्था में सुधार लाने की दिशा में अलग अलग संगठनों और व्यक्तियों के साथ मिलकर कार्य करता है. ये संस्था 18 बड़े और मध्य आकार के राज्यों और 7 छोटे राज्यों को उनके द्वारा न्याय प्रदान करने की क्षमता के अनुसार उनकी रैंकिंग करती है.
भारत के राज्यों की न्याय व्यवस्था की रैंकिंग करने के लिए टाटा ट्रस्ट सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, दक्ष, हाउ इंडिया लिव्स, टीआईएसएस, प्रयास और विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के साथ मिलकर काम करता है.
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