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सत्ता में पीएम नरेंद्र मोदी के हुए 20 साल, सावधानी से सोशल मीडिया पर गढ़ी अपनी छवि, ऐसे राजनीति के महानायक बनकर उभरे

jantaserishta.com
7 Oct 2021 3:39 AM GMT
सत्ता में पीएम नरेंद्र मोदी के हुए 20 साल, सावधानी से सोशल मीडिया पर गढ़ी अपनी छवि, ऐसे राजनीति के महानायक बनकर उभरे
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 7 अक्टूबर 2021 को सार्वजनिक जीवन में 20 साल पूरे कर लिए हैं. इन 20 सालों में वह 12 साल से ज्यादा गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और अभी 7 वर्षों से अधिक समय से देश के प्रधानमंत्री हैं. वो तारीख 7 अक्टूबर 2001 थी जब नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी. तब से लेकर अबतक पीएम मोदी बिना नागा किए लगातार संवैधानिक पद पर कायम हैं. इस समयावधि में वे एक भी चुनाव हारे नहीं हैं.



अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री कोंडालिजा राइस का एक मशहूर कथन है, 'There's no greater challenge and there is no greater honor than to be in public service' यानी कि लोक सेवा में रहने से न तो बड़ी कोई चुनौती है और न ही इससे बड़ा कोई सम्मान." पीएम मोदी के संदर्भ में ये कथन ठीक बैठता है. पब्लिक सर्विस के 20 साल के लंबे कालखंड में निजी से लेकर प्रशासनिक जीवन की कई चुनौतियां उन्हें झेलनी पड़ीं, तो इसी दौरान उन्हें जनता से अपार प्रेम मिला. भारत जैसे देश, जहां का सियासी धरातल बेहद उबड़खाबड़ है, वहां उन्होंने अपने दम पर लगातार 2 आम चुनाव रिकॉर्ड बहुमत से जीते. मोदी भारतीय राजनीति के वो बिंदू बन गए जहां से उनके समर्थक कहते हैं कि लाइन यहीं से शुरू होती है.
सोशल मीडिया के टॉप प्लेयर, अटेंशन कमांड करने की क्षमता
आज पीएम मोदी सोशल मीडिया के टॉप प्लेयर हैं. ट्विटर-फेसबुक पर उनके फॉलोअर्स कई देशों की जनसंख्या से ज्यादा हैं. कुछ साल पहले जब उन्होंने महिला दिवस से पहले मात्र इशारा किया था कि वे सोशल मीडिया छोड़ने की सोच रहे हैं तो हड़कंप मच गया था. पीएम मोदी गजब के कम्युनिकेटर हैं, वे लोगों के अटेंशन को कमांड करना जानते हैं और इसी दम पर अभी भारतीय राजनीति की धुरी बने हुए हैं.
26 मई 2014 को पीएम पद की शपथ लेने वाले नरेंद्र मोदी 2692 दिनों से शासन कर रहे हैं. अगर सीएम पद की बात करें तो उन्होंने 7 अक्टूबर 2001 को सीएम पद की शपथ ली और 22 मई 2014 तक इस पद पर रहे. इस तरह वह बतौर सीएम 4607 दिन पद पर रहे.
अभी भी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और डॉ मनमोहन सिंह का कार्यकाल नरेंद्र मोदी के मौजूदा कार्यकाल से ज्यादा है. नेहरू कुल 6130 दिन देश के पीएम रहे. इसके बाद नंबर आता है इंदिरा गांधी का, जो 5829 दिन पीएम रहीं. फिर तीसरा नंबर है डॉ मनमोहन सिंह का, जो 3656 दिन पीएम रहे.
समय मोदी का इंतजार कर रहा था, या फिर मोदी का भाग्य समय का
पीएम मोदी के इन 20 सालों के सफर पर बात करें इससे पहले राजनीति में उनके पदार्पण की चर्चा जरूरी है. सोशल मीडिया में जब पीएम मोदी की पुरानी तस्वीर नजर आती है तो मोदी की सादगी देख उनके समर्थक और आलोचक इतना जरूर कहते हैं कि इन तस्वीरों से इतना जरूर लगता है कि यो तो समय मोदी का इंतजार कर रहा था. या फिर मोदी का भाग्य समय का इंतजार कर रहा था.
80 और 90 के दशक में नरेंद्र मोदी बीजेपी के साधारण नेता हुआ करते थे. संघ से तो उनका पहले से ही नाता था. दो दिन पहले ही पीएम मोदी ने गांधीनगर चुनाव में बीजेपी की जीत पर लोगों को बधाई दी थी. 1987 में खुद मोदी ने अहमदाबाद निगम चुनाव में बीजेपी के जीत की स्क्रिप्ट लिखी थी. उन्होंने यहां अपनी प्रबंधन क्षमता का कमाल दिखाया था और पार्टी को जीत दिलाई थी. उनके कौशल ने पार्टी का ध्यान खींचा. वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी 1986 में पार्टी अध्यक्ष बन चुके थे. अहमदाबाद में इस जीत के बाद 1987 में बीजेपी ने उन्हें गुजरात का संगठन सचिव बना दिया.
बीजेपी में मोदी का उदय जारी रहा. उन्होंने 1990 में एलके आडवाणी की रथ यात्रा और 1991-92 में मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा को सफल बनाने में बड़ा रोल निभाया. ये यात्राएं और इनका अनुभव मोदी को जन नेता के रूप में गढ़ने में बड़ा कारगर रहा.
गुजरात से दिल्ली प्रस्थान
1995 के गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अपनी मैनेजमेंट स्किल दिखाई. पार्टी को इस चुनाव में जीत मिली, इसी के साथ मोदी का बीजेपी में प्रमोशन हुआ और उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाकर दिल्ली भेज दिया गया.
यहां पर उन्हें हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में पार्टी गतिविधियों की जिम्मेदारी दी गई. 1998 में गुजरात की राजनीति तेजी से बदली, बीजेपी के बड़े नेता शंकर सिंह बघेला कांग्रेस में चले गए. राज्य में मध्यावधि चुनाव हुए और सीएम केशुभाई पटेल बने. राज्य में केशुभाई पटेल की सरकार चल रही थी कि जनवरी 2001 में गुजरात के भुज में भीषण भूकंप आया.
इस आपदा से निपटने के दौरान सरकार की छवि को भारी नुकसान हुआ. बीजेपी नेतृत्व को गुजरात की चिंता सता रही थी. तब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. राज्य में अगले साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने थे.
नरेंद्र मोदी को श्मशान घाट में फोन आने का किस्सा
बीजेपी नेतृत्व ने गुजरात का सीएम चेहरा बदलने का फैसला ले लिया था. योग्य चेहरे की तलाश की गई तो पार्टी की नजरें नरेंद्र मोदी पर गईं. दरअसल इससे पहले केशुभाई पटेल नरेंद्र मोदी को गुजरात की राजनीति में हाशिये पर धकेल चुके थे. गुजरात बीजेपी में बगावत जैसी स्थिति थी. इसी उधेड़बुन में मोदी साल 2000 में अमेरिका की यात्रा पर निकल गए थे.
नरेंद्र मोदी का 'शून्‍य' से 'शिखर' तक का सफर...
2001 में गुजरात भूकंप के बाद बीजेपी ने जब राज्य का नेतृत्व बदलने की ठानी तो वाजपेयी को मोदी याद आए. वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी एक घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं. 'बात 1 अक्टूबर की है, नरेंद्र मोदी दिल्ली में एक कैमरामैन के अंतिम संस्कार में भाग लेने आए थे. तभी उनके फोन की घंटी, नरेंद्र मोदी ने जब फोन उठाया तो उनसे कहा गया कि वे पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात कर लें.'
नरेंद्र मोदी ने जब अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात की तो उन्हें गुजरात की जिम्मेदारी दी गई. वाजपेयी ने मोदी की राजनीतिक घुमक्कड़ी को खत्म कर दिया. दरअसल इस फोन कॉल ने सक्रिय राजनीति में मोदी के प्रवेश का रास्ता खोल दिया और इसी के साथ भारत की राजनीति एक प्रस्थान बिंदु पर पहुंच चुकी थी.
गुजरात दंगे और राजधर्म निभाने की सलाह
7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के सीएम पद की शपथ ली. मोदी भुज भूकंप के प्रभावों से निपट ही रहे थे कि फरवरी 2002 में गोधरा ट्रेन कांड हो गया. इसके बाद गुजरात साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस पड़ा. गुजरात दंगों ने देश के सामाजिक ताने-बाने को गहरा नुकसान पहुंचाया. इन्हीं दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी ने सीएम नरेंद्र मोदी को 'राजधर्म' निभाने की सलाह दी थी.
गरवी गुजरात को बनाया USP
गुजरात हिंसा की सख्त आलोचनाओं, न्यायिक प्रक्रिया से बाहर निकलकर मोदी ने अपने लिए सख्त प्रशासक (Tough administrator) की छवि बनाई. उन्होंने राज्य में बिजली की समस्या, पेयजल की किल्लत दूर की. साबरमती नदी का कायाकल्प करवाया. मोदी ने गुजरात में निवेश आकर्षित करने लिए वाइब्रेंट गुजरात समिट का आयोजन करवाया.
राज्य में निवेश बढ़ाने में वह सफल रहे. सीएम मोदी ने यहां से ही गुजरात मॉडल का कॉन्सेप्ट गढ़ा. गुजरात की छवि को नरेंद्र मोदी ने ब्रांड की शक्ल दी. उन्होंने अपने शासन की सबसे शक्तिशाली USP गुजरात मॉडल को बनाया. गुजरात के गर्व (गरवी गुजरात), गुजरात की कामयाबी की कहानी को नरेंद्र मोदी ने खूब भुनाया.
3 चुनाव जीतकर गांधी परिवार को चैलेंज करने का आधार तैयार किया
यूपीए-2 के दौरान गुजरात मॉडल वो स्केल बन गया, जिसके आधार पर दूसरे राज्यों का विकास मापा जाने लगा. गुजरात मॉडल की इतनी चर्चा हुई कि मोदी 2014 के आम चुनाव के लिए पीएम का चेहरा बनकर उभरे. 2009 में 'पीएम इन वेटिंग' रहे आडवाणी नरेंद्र मोदी के उत्कर्ष से नाराज हो रहे थे, लेकिन वे उन्हें रोक नहीं सके. मोदी 2002, 2007 और 2012 का गुजरात चुनाव लगातार जीतकर कांग्रेस और गांधी परिवार को तगड़ी चुनौती देने का आधार बना चुके थे. 2013 में बीजेपी ने मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया.
2014: जब सोशल मीडिया बना मोदी का बैटलग्राउंड
मई 2014 में पीएम मोदी ने गुजरात से दिल्ली की सनसनीखेज सियासी यात्रा की. उनके नेतृत्व में हुए इस चुनाव में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया. कहा तो जाता है कि इस चुनाव में बीजेपी का चुनाव चिह्न भले ही कमल रहा हो, लेकिन चेहरा तो एक मात्र नरेंद्र मोदी थे. ये वो चुनाव था जो बूथ पर लड़ा तो गया ही सोशल मीडिया भी इस इलेक्शन का बैटलग्राउंड रहा. ये भारत का पहला चुनाव था जहां, फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्एप इस कदर प्रभावी हुए थे. नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया को अपने फायदे में शामिल करने के हुनर के उस्ताद साबित हुए.
मोदी के दिल्ली में आते ही शासन का एक नया तौर तरीका शुरू हुआ. पीएम मोदी ने सत्ता को अपनी मुट्ठी में सीमित किया तो शासन के परिणाम की जिम्मेदारियां भी अपने सिर पर लीं. उन्होंने देश को चलाने वाले कई कानूनों को तिलांजलि दे दी. पीएमओ में नई कार्य संस्कृति विकसित की. बीजेपी का कहना है कि पीएम मोदी ने विकास और जनकल्याणकारी नीतियों को अपना आधार बनाया.
पीएम मोदी ने जनधन योजना जैसा नवाचार शुरू किया और देश की करोड़ों की आबादी का खाता खुलाकर उन्हें बैकिंग सिस्टम से जोड़ दिया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 41 करोड़ लोगों के जन-धन खाते खुले हैं. इन खातों की वजह से सरकारी योजनाओं का फायदा सीधे लाभुक के खाते में पहुंचने लगा.
नोटबंदी के ऐलान से चौंकाया
8 नवंबर 2016 को पीएम मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की और पुराने 500 और 1000 के नोटों को अवैध घोषित कर दिया. इसके उद्देश्यों और इसकी कामयाबी को लेकर आज भी चर्चा होती है, लेकिन बीजेपी का कहना है कि इस फैसले ने देश में काले धन से संचालित इकोनॉमी की कमर तोड़ दी.
20 साल एक लंबा समय होता है. लोक प्रशासक के लिए ये इतना वक्त तो होता है कि उसकी नीतियों की झलक और असर आम लोगों की जिंदगी में दिखने लगे. प्रधानमंत्री के कामकाज भी इसी आईने में समीक्षा होती है.
पीएम मोदी ने उज्ज्वला योजना की शुरुआत की और करोड़ों महिलाओं को रसोई गैस दीं. बीजेपी का दावा है कि इस योजना से 8.70 करोड़ महिलाओं को रसोई गैस दिए गए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी योजनाओं को समाज के सबसे निचले तबके के लोगों को ध्यान में रखकर डिजाइन करवाया. बीजेपी का दावा है कि स्वच्छता अभियान, उज्ज्वला योजना, मुफ्त शौचालय योजना से देश के करोडों गरीब लाभान्वित हुए. पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से शौचालय के मुद्दे को उठाया और गरीबों के सम्मान की बात की.
वोटों में तब्दील हुईं जनकल्याणकारी योजनाएं
इसके अलावा पीएम मोदी ने मुद्रा योजना, जन सुरक्षा बीमा योजना, उजाला योजना, यूपीआई, पीएम आवास योजना, सौभाग्य योजना, आयुष्मान भारत और PM किसान जैसी योजनाएं लॉन्च की हैं. इन योजनाओं का लाभुक वो वर्ग है जो अमूमन हाशिये पर रहा है. इसके अलावा पीएम ने साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का भी लक्ष्य रखा है.
नरेंद्र मोदी ने इन योजनाओं की बदौलत वोटों की फसल खूब काटी. 2019 के लोकसभा चुनाव, यूपी विधानसभा चुनाव, बिहार विधानसभा चुनाव, झारखंड, हिमाचल और उत्तराखंड के चुनाव में उन्हें इस वर्ग से एकमुश्त वोट मिले.
स्वच्छता को लेकर पीएम मोदी का खास आग्रह रहा है, हाल ही में उन्होंने देश के शहरों को कचरों के पहाड़ से मुक्ति दिलाने के लिए पहल शुरू करने की कोशिश की है और इसमें सभी का सहयोग माना है. कुछ साल पहले दक्षिण भारत के एक शहर में समंदर के किनारे जब पीएम मोदी कचरा उठाते नजर आए तो उन्होंने देश-विदेश के लोगों का ध्यान खींचा.
उदंड पड़ोसी को दंड
बीजेपी और पीएम मोदी के समर्थकों का तर्क है कि मोदी सरकार की मजबूत नीतियों ने पल पल भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाले उदंड पड़ोसी पाकिस्तान को दंड दिया है. 2016 में जब जम्मू-कश्मीर के उरी में आतंकी हमला हुआ तो, तो भारत ने नियंत्रण रेखा पार कर पीओके में छिपे आतंकियों को मारने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किया और उनके ठिकाने ध्वस्त कर दिए. बीजेपी समर्थक यह भी कहते हैं कि चीन के साथ जब डोकलाम का मुद्दा आया तो भारत अपने स्टैंड पर कायम रहा, इसके अलावा गलवान संकट के दौरान भी सरकार ने चीन को माकूल जवाब दिया.
पुलवामा हमले से 2019 के चुनाव में लगा राष्ट्रवाद का तड़का
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पाकिस्तान ने 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमला करवाया. इस हमले में हमारे 40 जवान शहीद हुए. भारत गुस्से से उबल पड़ा. भारत ने एक बार फिर से लीक से हटकर कदम उठाया और पाकिस्तान की सीमा में घुसकर बालाकोट में मौजूद आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को तबाह कर दिया.
बंपर बहुमत के साथ कमबैक
इस एपिसोड ने 2019 चुनाव का परिदृश्य ही बदल दिया. कांग्रेस और राहुल गांधी राफेल डील में करप्शन का मुद्दा उठाकर सरकार को घेरने की फिराक में थे, इधर बीजेपी और पीएम मोदी राष्ट्रवाद की लहर पर सवार थे. पीएम मोदी ने खुद को देश का चौकीदार कहा, तो राहुल गांधी ने कहा-चौकीदार चोर है. पीएम मोदी की इलेक्शन कैम्पेन मशीनरी ने इसे खूब कैश किया. इस चुनाव में मोदी फिर बंपर बहुमत के साथ सत्ता में कमबैक किया.
राम मंदिर, 370, तीन तलाक, और CAA...संवदेनशील मुद्दों को छूने से गुरेज नहीं
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटकर बीजेपी आत्मविश्वास से लबरेज है. पीएम मोदी ने अपने विश्वस्त अमित शाह को अपनी टीम में शामिल कर लिया है. इसके साथ ही मोदी-शाह की टीम उन मसलों के इलाज में लग गई जिन मुद्दों के इर्द-गिर्द सालों से राजनीति चल रही थी.
पीएम मोदी ने सत्ता में आते ही जम्मू-कश्मीर को अपने टॉप एजेंडे में रखा. बीजेपी ने पहले तो महबूबा मुफ्ती की सरकार से समर्थन वापस लिया इसके बाद अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35-A को खत्म करने में जुट गई. ये वो धाराएं थीं जो जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देती थीं. बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में इन्हें खत्म करने का वादा किया था. 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर में अभूतपूर्व सुरक्षा के बीच केंद्र ने संसद में एक कानून पास कराकर इन धाराओं को खत्म कर दिया. राजनीतिक दल हैरान थे, कश्मीर की पार्टियां स्तब्ध थीं. लेकिन मोदी अपने कमिटमेंट का परिचय दे चुके थे.
2002 के गुजरात दंगों पर मोदी को दुख है
भारतीय राजनीति के बेहद संवेदनशील मुद्दों में शामिल रहे राम जन्मभूमि का मसला वर्ष 2019 में मोदी सरकार के कार्यकाल में अपने मुकाम पर पहुंचा. पीएम मोदी ने खुद अपने हाथों से राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रख राजनीतिक संदेश दिया. बीजेपी इस मुद्दे पर ही सत्ता में आई थी. राम मंदिर के अटल और आडवाणी के वायदे को पीएम मोदी ने अपने कार्यकाल में हकीकत में बदला.
नरेंद्र मोदी अब हर उस मुद्दे को हाथ में ले रहे हैं, जिस पर पूर्व की सरकार फैसला लेने से कतराती रही हों, इसके पीछे वजह चाहे कुछ भी हो. इसी तरह मोदी भी निश्चित रूप से चुनावी गणना को ख्याल में रखकर ही फैसले रहे हैं.
मोदी सरकार ने संसद में कानून बनाकर मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को अवैध घोषित कर दिया. एक दूसरा मुद्दा नागरिकता संशोधन कानून का भी था. इस कानून के विरोध में मुस्लिम समुदाय की ओर से व्यापक प्रदर्शन किया गया. दिल्ली में शाहीन बाग का धरना महीनों चला, लेकिन सरकार इस कानून को लेकर अडिग रही.
विपक्ष के सवाल
इन सात सालों में नरेंद्र मोदी भले ही अपने फैसलों को अपनी कामयाबियां बता रहे हों, लेकिन विपक्ष उनसे लगातार सवाल पूछ रहा है. ये सवाल नोटबंदी को लेकर रहा है, ये सवाल राफेल डील में घोटाले को लेकर रहा है. विपक्ष का ये प्रश्न देश में मॉब लिंचिंग के सिलसिले को लेकर रहा है, जिसके बारे में उसका आरोप है कि सरकार की नीतियां ऐसी घटनाओं को बढ़ावा दे रही हैं. विपक्ष किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेर रहा है तो रोजगार, महंगाई, चीन की दादागीरी पर पीएम मोदी से जवाब मांग रहा है.
कहां हैं नौकरियां, सरकार बेच रही संपत्तियां
नरेंद्र मोदी के पीएम बनते ही वे विपक्ष के निशाने पर तब आए जब राहुल गांधी ने उन्हें सूटबूट की सरकार कहा. राहुल गांधी नरेंद्र मोदी को किसानों के मुद्दे, लद्दाख में चीन की घुसपैठ, पूंजीपतियों के हक में देश के हितों की बलि जैसे मुद्दे पर पीएम मोदी को घेरते रहे हैं. पिछले 7 सालों में राहुल ये लगातार कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी पूंजीपतियों की हितैषी है न कि किसानों और गरीबों की.
राहुल ने सरकार पर देश की सुरक्षा में चूकने का आरोप लगााया है. राहुल ने कहा है कि केंद्र सरकार लद्दाख में चीन को रोक पाने में असफल रही है. इसके अलावा राहुल गांधी नियमित अंतराल में नौकरी का मुद्दा उठा रहे हैं और सरकार से पूछ रहे हैं कि कॉरपोरेट को देश की संपत्तियां बेचने वाली सरकारी बेरोजगारों को नौकरी क्यों नहीं दे पा रही है. सरकार द्वारा बडी पब्लिक कंपनियों के विनिवेश और इसे लंबे समय के लिए लीज पर देने की सरकार मोनेटाइजेशन योजना का भी राहुल समेत तमाम विपक्ष विरोध कर रहा है.
ममता का वार
बंगाल पर बीजेपी के दावे की शुरुआत से ममता बनर्जी नरेंद्र मोदी पर आक्रामक रही हैं. ममता बनर्जी किसानों के मुद्दे, कोरोना, नौकरी के सवाल पर लगातार केंद्र से टकराती रहती है. पश्चिम बंगाल चुनाव में जीत के बाद ममता के तेवर और भी आक्रामक हो गए हैं. ममता बनर्जी ने चुनाव में बंगाली अस्मिता का मुद्दा उठाया और कहा कि बंगाल में गुजरात के लोगों का कोई काम नहीं है. 2024 के चुनाव से पहले वो गोलबंदी की कोशिश कर रही हैं.
कोरोना की दूसरी लहर
कोरोना महामारी पीएम मोदी की लोकप्रियता पर ग्रहण बनकर आई. विपक्ष ने पहली लहर में लॉकडाउन और दूसरी लहर में चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा उठाया और पीएम मोदी की सरकार को फेल करार दिया. लॉकडाउन के दौरान सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते मजदूर, भूख से तड़पते बच्चे, और इस बार श्मशान घाट में बेबस लोगों की तस्वीरें, ऑक्सीजन के लिए छटपटाते लोग, इन तस्वीरों ने सरकार की खूब किरकिरी करवाई. विपक्ष ने सरकार से सीधा सवाल दागा और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए.
लिंचिंग
लिंचिंग के मुद्दे पर भी नरेंद्र मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर रही. विपक्ष का आरोप है कि अखलाक से शुरू हुई लिंचिंग की ये घटिया हरकत अलग अलग नाम से अलग अलग प्रदेशों में आती ही रहती है. विपक्ष का आरोप है कि कभी प्रतिबंधित मांस, तो कभी जानवरों को ले जाने के नाम पर लोगों की हत्याएं हो रही हैं. विपक्ष ने कहा है कि सरकार ने देश में ऐसा माहौल पैदा कर दिया है कि लोग कानून हाथ में लेने लगे हैं, उन्हें सिस्टम का डर नहीं है.
किसान प्रदर्शन
हाल ही में पीएम मोदी के विरोध में जो नया वर्ग तैयार हुआ है वो है किसानों का. पिछले 10 महीने से किसान नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों का ये विरोध पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा तीव्र है. ये प्रदर्शन कई बार हिंसक हो चुका है. चुनाव से पहले किसानों के प्रदर्शन से सरकार की चिंता बढ़ गई है. बता दें कि पीएम मोदी ने साल 2022 तक किसानों की आय को डबल करने का भरोसा दिया है, इसके अलावा करोड़ों किसानों को किसान सम्मान निधि के तहत हर साल सरकार 6 हजार रुपये तीन किश्तों में देती है, इसके बावजूद किसानों की नाराजगी सरकार के लिए चिंताजनक है.
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