एक पल को सोचिए कि आप फ्लाइट की यात्रा कर रहे हैं और आप जैसे प्लेन में सवार सौ, दो सौ से अधिक यात्रियों की सुरक्षा किसी पायटल के हाथ में नहीं बल्कि एक मशीन के हाथ में हो... यानी ऑटोमेटिक फ्लाइट सिस्टम या दूसरे शब्दों में कहें तो Roboplanes. हां, वो दिन दूर नहीं जब हम-आप पायलटलेस प्लेन में यात्रा कर पाएंगे. सेल्फ ड्राइविंग कारों और ड्राइवरलेस मेट्रो के बाद जल्द ही लोगों को पायलटलेस प्लेन में यात्रा करने को मिल सकता है. ऐसा करना संभव दिखने लगा है. ड्राइवरलेस कारों-पॉड्स और मेट्रो के बाद अब पैसेंजर प्लेन को ऑटोनोमस करने की दिशा में कई कंपनियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं.
ऐसे वक्त में जब एयर ट्रैफिक और एयर कार्गो सेवाओं की डिमांड दुनियाभर में बढ़ती जा रही है इंडस्ट्री के लिए ह्यूमैन पावर से आगे अब तकनीक बेस्ड ऑटोनोमस पायलट की ओर बढ़ने का वक्त आ रहा है. मतलब रोबोप्लेन्स... जो न सिर्फ कार्गो के काम में सामान एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने बल्कि पैसेंजर प्लेन को भी चलाने में सक्षम हो सकें. एविएशन कंसल्टेंसी कंपनी AIA और Avascent के अनुमान के अनुसार दुनिया में सेल्फ फ्लाइंग एयरक्राफ्ट का बाजार हर साल 25 फीसदी की दर से आगे बढ़ेगा और साल 2040 तक 325 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. इस फील्ड में काम करने के लिए दर्जनों स्टार्टअप्स ने 7 बिलियन डॉलर तक का फंड जुटाया है.
अमेरिका में कैलिफोर्निया के बे एरिया में एक्स विंग और रिलायबल रोबोटिक्स और बोस्टन में मर्लिन लैब्स जैसी कंपनियां इस सपने को सच करने की दिशा में तेजी से काम कर रही हैं. जहां कई स्टार्टअप इस दिशा में काम कर रही हैं, वहीं एयरबस और बोइंग जैसी दिग्गज कंपनियां भी इस दिशा में इनोवेशन में जुट गई हैं. एयरबस ने 350 एयरलाइनर के सिस्टम का डेमोन्स्ट्रेशन दिया था जो ऑटोमेटिक तरीके से पार्क, टेक ऑफ और लैंड कर सकता है. इसी तरह बोइंग के पास ऑटोनोमस मिलिटरी एविएशन सिस्टम है लेकिन अब पैसेंजर एविएशन की दिशा में कंपनी काम को आगे बढ़ा रही है.
Xwing और Reliable Robotics के एक्सपेरिमेंट के दौरान एक ऑपरेटर ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल के पूरे कम्युनिकेशन ऑपरेशन को ग्राउंड से कंट्रोल किया. खास बात ये भी थी कि ये ऑपरेटर सीधे तौर पर फ्लाइट को उड़ा नहीं रहा था बल्कि सिंपल ग्राफिक्स इंटरफेस के जरिए ये ऑपरेटर प्लेन उड़ाने के निर्देशों को ऑटोनोमस कंट्रोल सिस्टम के लिए बस रिले कर रहा था. इसमें ऑटोनोमस फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम को निर्देश दिए जा रहे थे कि कब फ्लाइट को कहां पोजिशन करना है. इस सिस्टम में ऑपरेटर को ये जानने की जरूरत नहीं है कि फ्लाइट को असल में उड़ाते कैसे हैं, या लैंड और टेक ऑफ कैसे करते हैं. इसके लिए ऑपरेटर को ट्रेंड पायलट होना जरूरी नहीं है बल्कि उसे एयर ट्रैफिक कंट्रोल प्रोसिजर के बारे में जानकारी होनी चाहिए.
इसी तरह मर्लिन लैब्स के एक्सपेरिमेंट में वॉयस रिकॉग्निशन और जेनरेशन के जरिए ऑटोनोमस फ्लाइट सिस्टम को एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम के निर्देशों को समझना था और उसे फॉलो करके प्लेन को खुद टेक ऑफ या लैंड कराना था. ये तीनों ही स्टार्टअप्स शुरुआत में लाइट कार्गो सेवाओं के साथ शुरुआत करने के पक्षधर हैं. FedEx, UPS, DHL और Amazon जैसी कंपनियां इस तरह की फ्लाइट्स की बड़ी कस्टमर हो सकती हैं. कंपनियों को उम्मीद है कि पायलटों की बड़ी डिमांड की समस्या को इससे हल किया जा सकेगा. इसके साथ ही, एक पायटल एक तरह की फ्लाइट को उड़ाने के लिए ट्रेंड होता है लेकिन ये ऑटोनोमस सिस्टम हर तरह की फ्लाइट को कंट्रोल करने में सक्षम होगा. खासकर दूरदराज या पहाड़ी और समंदर के इलाकों में भी. इस ऑटोनोमस सिस्टम का इस्तेमाल कभी भी और कहीं भी और लगातार लंबे समय तक किया जा सकेगा. जो कि ह्यूमैन एंगेजमेंट में संभव नहीं है.
इसी तरह फ्रेंच एविएशन कंपनी एयरबस ने भी A350-1000 XWB जेट पर ट्रायल किया था. जिसमें टैक्सिंग, टेक ऑफ और लैंडिंग सब कुछ ऑटोमेटिक सिस्टम से कराया गया. अभी भी जब फ्लाइट हवा में होती है तो कई फंक्शन ऑटोपायलट सिस्टम से संचालित करने का सिस्टम कई कंपनियां इस्तेमाल करती हैं. लेकिन अब निगाह पूरी तरह ऑटोमेशन वाली फ्लाइट्स को विकसित करने की है. कंपनी ने इस सिस्टम को नाम दिया है ऑटोनोमस टैक्सी. दिसंबर 2019 में भी इसी तरह का एक प्रयोग कंपनी ने किया था. इस प्रयोग में पायलट ने प्लेन को रनवे पर लाकर छोड़ दिया और फिर सिर्फ एक दर्शक की तरह सिर्फ देखता रहा. ऑटोमेशन सिस्टम ने आगे की पूरी प्रक्रिया को पूरा किया. बाकी सारा ऑपरेशन और नेविगेशन का काम कंप्यूटर संचालित सिस्टम ने किया.
इसी तरह ब्रिटिश डिफेंस फर्म BAE सिस्टम्स ने कई टेस्ट फ्लाइट उड़ाईं. जिसमें एक कंप्यूटर के जरिए विमान के पूरे ऑपरेशन को संचालित किया गया. कंट्रोल रूम से एक ऑपरेटर इस पूरे ऑपरेशन को संचालित कर रहा था. इसके लिए कंपनी ने 16 लोगों के बैठने की क्षमता वाले एक एयरक्राफ्ट को प्रोटोटाइप ऑटोमेटेड प्लेन में कंवर्ट किया. Jetstream 31 नाम इस फ्लाइट में कोई पायलट मौजूद नहीं था. एक इंफ्रा रेड कैमरे के जरिए इसे निर्देशित किया जा रहा था.
इसी तरह ब्रिटेन 264 किलोमीटर लंबा एयर कॉरिडोर विकसित करने की तैयारी में है जिसमें सेंसर और ऑटोनोमस सिस्टम से फ्लाइट्स ऑपरेट की जा सकेंगी. इसे ड्रोन सुपरहाइवे का नाम गया है और इसकी सुविधाएं कमोबेश अमेजॉन के डिलिवरी कॉप्टर की तरह होगी. इस स्काईवे में साल 2030 तक एक करोड़ कमर्शियल यूएवी या बिना पायलट वाले ड्रोन्स का लक्ष्य हासिल करने की तैयारी है. इतना ही नहीं ड्रोन्स से आगे बढ़कर रोबोट तकनीक के इस्तेमाल से ऑटोमेटेड एयरक्राफ्ट डेवलप करने का लक्ष्य है.
न्यूयॉर्क में हुई पायलटलेस प्लेन की टेस्टिंग की जैसी डिटेल सामने आई उसके मुताबिक प्लेन के कॉकपिट में कोई पायलट मौजूद नहीं था. सब कुछ ऑटोमेटेड रिप्ले निर्देशों के अनुसार संचालित हो रहा था. इसमें कई सेंसर और एडवांस स्विच प्रमुख रोल निभा रही थीं. पायलटलेस ऑपरेशन के दौरान फ्लाइट का कंट्रोल सटीक रहे इसके लिए रिमोट ऑपरेशन को सैटेलाइट कम्युनिकेशन और हाई परफॉर्मेंस कम्प्यूटिंग की सुविधा से लैस किया जा रहा है. कॉकपिट में लगा कस्टम कंट्रोल सेंसर इस बात के लिए खास तौर पर लगाई गई थी कि अगर ऑटोमेशन सिस्टम में फ्लाइट कंट्रोल, प्रोपल्शन, फ्लूड मैनेजमेंट से जुड़ी कुछ भी गड़बड़ी होती भी है तो वह तुरंत कंट्रोल रूम में मौजूद ऑपरेटर को अलर्ट करेगा. एक्सपर्ट्स का मानना है कि दुनिया में ज्यादातर विमान हादसे ह्यूमैन एरर के कारण होते हैं. अब ऑटोमेशन सिस्टम के आने से इसे कम करने में मदद मिलेगी.
पायलटलेस फ्लाइट सर्विस की दिशा में काम कर रहीं कंपनियों का दावा है कि यह सिस्टम आता है तो कर्म खर्च में और ज्यादा सुरक्षित यात्रा की सुविधा मुहैया करा पाना संभव हो सकेगा. क्योंकि इसमें कम से कम मैनपावर की जरूरत पड़ेगी. साथ ही ह्यूमैन एरर से होने वाले विमान हादसों से भी सुरक्षा मिल सकेगी. क्योंकि इस सिस्टम में टेक ऑफ से लेकर लैंडिंग तक सब पायलटलेस होगा और कंट्रोल रूम से एयर ट्रैफिक को और प्लेन को दोनों को संचालित किया जा सकेगा. इसकी शुरुआत लाइट एविएशन टेक्नीक से होने की संभावना है. मतलब छोटे प्लेन्स से. XWing और Reliable Robotics इन प्रयोगों के लिए Cessna Caravans का, जबकि मर्लिन लैब्स Beechcraft King Air का इस्तेमाल कर रही हैं. इन तीनों ने अपने प्रयोगों में ऑटोनोमस तरीके से टैक्सी, टेक ऑफ और लैंडिंग को प्रदर्शित किया. हालांकि, इन एक्सपेरिमेंट्स के दौरान एक पायलट विमान में मौजूद था ताकि सिस्टम के फेल होने की स्थिति में वह खुद कंट्रोल कर सके.