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बचपन बचाओ आंदोलन की जनहित याचिका: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार को बाल सुरक्षा तंत्र पर अमल के निर्देश दिए

Shantanu Roy
19 Aug 2023 11:43 AM GMT
बचपन बचाओ आंदोलन की जनहित याचिका: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार को बाल सुरक्षा तंत्र पर अमल के निर्देश दिए
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को पॉस्को कानून के तहत लागू किए जाने वाले नियमों और प्रावधानों पर अमल और इनकी निगरानी के वास्ते दिशानिर्देश तय करने के लिए सभी हितधारकों की एक समिति बनाने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति जे अरविंद कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश उत्तर प्रदेश के ललितपुर में 13 साल की नाबालिग से सामूहिक बलात्कार के घिनौने मामले में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) की ओर से अगस्त 2022 में दायर की गई समादेश याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सभी सहायक व्यक्तियों (सपोर्ट पर्संस), उनकी शैक्षणिक योग्यता और अब तक कितने मामलों में उनकी नियुक्ति हुई है, की सूची तैयार करने के आदेश भी दिए। शीर्ष अदालत ने सहायक व्यक्तियों की योग्यता के मानदंड तय करने की रूपरेखा बनाने और उनके नियमित अंतराल पर प्रशिक्षण पर भी जोर दिया। साथ ही उसने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि सहायक व्यक्तियों के वेतन-भत्ते तय करते समय वह उनके कौशल और अनुभव को भी ध्यान में रखे। खंडपीठ ने जिला बाल सुरक्षा इकाइयों से बाल सुरक्षा संगठनों से जुड़े सहायक व्यक्तियों के नाम साझा करने को भी कहा है। आदेश में यह भी कहा गया है कि नियम 12 के तहत बाल कल्याण समितियों द्वारा पॉक्सो के मामलों की रिपोर्टिंग के मानदंडों पर समुचित अमल सुनिश्चित करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया बनाई जाए। साथ ही शीर्ष अदालत ने महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय को चार अक्तूबर से पहले सहायक व्यक्तियों की ड्यूटी और सेवाशर्तों से जुड़ी चीजें तय करने के लिए राष्ट्रव्यापी दिशानिर्देश तैयार करने को कहा है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमडब्लूसीडी) जैसे सभी हितधारकों को पॉक्सो अधिनियम के खंड 39 के तहत सभी प्रासंगिक नियमों व प्रावधानों पर सख्ती से अमल सुनिश्चित करने को कहा गया है। सभी सहायक व्यक्तियों को कुशल मजदूर मानते हुए उन्हें न्यूनतम वेतन कानून, 1948 के नियमों के अनुसार भुगतान करने को कहा गया है। आदेश में कहा गया है कि सहायक व्यक्ति की उपलब्धता सुनिश्चित करना सिर्फ एक सलाह या निर्देशिका नहीं बल्कि पीड़ित का कानूनी अधिकार है। खंडपीठ ने कहा कि यौन शोषण के शिकार बच्चों की सहायता के लिए पॉक्सो अधिनियम के तहत तैयार किया गया नियमों -कानूनों का यह ढांचा प्रशंसनीय है लेकिन आवश्यकता कागज पर मिले इन कानूनी अधिकारों और इन पर अमल की जमीनी हकीकत के फासले को पाटने की है। इसके लिए सरकारों को अग्रसक्रिय तरीके से ढांचागत तंत्र को मजबूत करने और मानव संसाधनों को इसके हिसाब से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।


आदेश में यह भी कहा गया है कि बच्चों के कोमल मन को यौन शोषण और उत्पीड़न से पहुंचा सदमा अपने आप में भयावह तो है ही, इस घाव को भरने के लिए किसी तरह की सहायता और सुरक्षा नहीं मिल पाने से स्थिति और गंभीर हो जाती है। इस तरह के अपराधों में मुजरिम को कानून के तहत कड़े से कड़ा दंड मिल जाने भर से बच्चे को न्याय नहीं मिल जाता बल्कि सरकारी मशीनरी द्वारा जांच व मुकदमे की पूरी प्रक्रिया के दौरान उसकी सहायता, देखभाल और उसकी सुरक्षा का विश्वास दिलाने से मिलता है। बच्चे के साथ सचमुच में न्याय हुआ है, यह तभी माना जा सकता है जब उसका अपना गरिमा बोध वापस मिल जाए, वह समाज की मुख्य धारा में लौट आए, खुद को सुरक्षित महसूस करे और भविष्य के प्रति एक उम्मीद जाग जाए।
बीबीए ने बच्चों की सुरक्षा से जुड़े नियमों -कानूनों पर अमल में राज्य सरकारों की घोर विफलता, यौन शोषण के शिकार बच्चों को उनके कानूनी हक दिलाने में लापरवाही और उनकी सुरक्षा से समझौतों को उजागर करते हुए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत 2022 में यह समादेश याचिका दायर की थी। याचिका में शीर्ष अदालत को उत्तर प्रदेश के ललितपुर में सामूहिक बलात्कार की शिकार उस दलित लड़की के साथ हुई भयावह घटना से भी अवगत कराया गया जिसमें पांच महीने तक कोई एफआईआर तक नहीं दर्ज की गई। पांच महीने तक भटकने के बाद पीड़ित बच्ची शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंची। लेकिन न्याय में कोई मदद तो दूर थाना प्रभारी ने थाने में ही उसके साथ बलात्कार किया। ऐसे में पहले से ही सदमे की शिकार बच्ची की क्या हालत हुई होगी, यह अकल्पनीय है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील और जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु ने कहा, "राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2021 के आंकड़ों के अनुसार पॉक्सो अदालतों में सिर्फ दो फीसद मामलों में ही अपराधियों को सजा मिल पाती है। इस संदर्भ में देखें तो यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों और उनके परिवारों के लिए न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। एक व्यक्ति जो सदमे के शिकार बच्चों को ढाढस बंधाए, इलाज कराने और क्षतिपूर्ति दिलाने में उसकी मदद करे और इससे भी कहीं ज्यादा बच्चे व उसके परिवार को जटिल कानूनी प्रक्रिया का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करे, ऐसे सहायक व्यक्ति की उपलब्धता पूरी आपराधिक न्याय प्रक्रिया के लिए उत्प्रेरक का काम करेगी। अब जरूरत सिर्फ इस पर पूरी ईमानदारी से अमल करने की है।"
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